जानें जापान की कोइ मछली जिसने जिया था 226 साल का जीवन

0

जापान के लोग बड़े रुचि के साथ मछलियों को पालते हैं. 17वीं सदी के बाद से ही इसका प्रचलन पूरे देश में फैलने लगा था. जापान की ‘कोइ मछली’ अपने सजावटी मूल्य के अलावा कई मायनों में विशेष है. कोइ प्रजाति की मछली का औसत जीवनकाल लगभग 40 वर्ष का होता है, लेकिन इसी प्रजाति की ‘हनाको’ नाम की एक विशेष मछली, जो 1751 में तोकुगावा युग के मध्य में पैदा हुई थी. 226 वर्षों तक जीवन जीने के बाद जुलाई,1977 में इसकी मृत्यु हो गई थी.

Also Read : ब्रिटेन ने प्रवासियों को रोकने के लिये उठाया सख्त कदम, भारत समेत कई देशों पर पड़ सकता है असर

हनाको की कहानी सबसे पहले उसके आखिरी मालिक, नागोया महिला कॉलेज की अध्यक्ष डॉ. कोमी कोशिहारा ने साझा की थी, जिन्होंने 1966 में निप्पॉन होसो क्योकाई रेडियो स्टेशन पर एक राष्ट्रीय प्रसारण किया था. प्रसारण में कोशीहारा ने दावा किया कि वह हनाको की उम्र जानती थी क्योंकि उन्होंने इसे प्रोफेसर मासायुकी हीरो से सत्यापित कराया था, जो नागोया महिला कॉलेज के पशु विज्ञान प्रयोगशाला में काम करते थे.
प्रोफेसर ने उसकी उम्र निर्धारित करने के लिए उसके तराजू पर विकास के छल्ले गिने. जिसके द्वारा हनाको की आयु की जानकारी मिल सकी. कोशिहारा ने बताया कि परिवार की पिछली 2-3 पीड़ियों से इसकी पालन-पोषण किया जा रहा था.

जापान में ‘फ्लावर गर्ल’ से थी प्रचलित

जापानी भाषा में हनाको नाम का अर्थ “फूलों वाला बच्चा” होता है. वह एक स्कार्लेट कोइ थी, जिसका औसत जीवनकाल लगभग 45 वर्ष होता है. वह अभी तक रिकार्ड की गई सबसे उम्रदराज़ कोइ मछली है. हनाको का वजन लगभग 7.5 किलोग्राम था और उसकी लंबाई 70 सेंटीमीटर थी. वह टोक्यो से 200 किलोमीटर पश्चिम में ओनटेक पहाड़ के पास अन्य मछलियों के साथ एक तालाब में रहती थी. जब पांच अन्य मछलियाँ मरीं तो उनकी उम्र भी 100 वर्ष से अधिक थी.

लंबी आयु का कारण

– तालाब जिसमें हनाको ने अपना जीवनकाल बिताया वह ओनटेक पहाड़ के पास था जिसके कारण तालाब का पानी साफ था.
– ताजे पानी की नियमित आपूर्ति.
– मछलियों की देखभाल काफी अच्छे से की गयी.
– कोइ नस्ल की मछली अन्य मछलियों की तुलना में अधिक जीती हैं हालांकि निश्चित तौर पर हनाको एक दुर्लभ कोइ मछली थी.

जापान में आयोजित होती है कोइ मछली से जुड़ी प्रतियोगिता

जापान में मछली पालना काफी मशहूर है. इसको लेकर वहां हर साल प्रतियोगिता का आयोजन होता है. मछली पालने वाले लोग प्रतिभागी के तौर पर हिस्सा लेते हैं. ‘टॉप कोइ’ नामक प्रतियोगिता में मौजूद जज सबसे बेहतर मछली का चुनते हैं. इसको चुनने के लिये कोइ मछली का आकार, लंबाई, रंग आदि का निरीक्षण किया जाता है. हालांकि रंग व इसके पैटर्न की जांच मुख्य रूप से की जाती है. हल्के नीले, लाल रंग के गहरे धब्बे पीछे की तरफ और सुनहरे रंग के कोइ मछली की अधिक मांग रहती है.


Kohaku, Sanke, Showa प्रकार की कोइ मछली की जीतने की संभावना सबसे अधिक होती है. उपयुक्त प्रतियोगिता में अधिकतम पुरस्कार इन्हीं मछलियों के द्वारा जीता जाता है.

क्यों होते है इतने मूल्यवान

कोइ मछली की कीमत हजार रुपये से शुरु होकर करोड़ों में होती है. इन मछलियों में 6 प्रकार की कलर सेल पाई जाती है. लाल, पीला, काला, सफेद, नीला और धात्विक रंग. इनमें लाल नारंगी कोइ मछली की मांग सबसे अधिक होती है. साथ ही कोइ मछली के त्वचा की चमक की गहराई से भी इसकी मूल्य निर्धारित होती है. 2018 के एक नीलामी में इसी रंग की कोई मछली ₹ 15 करोड़ ($1.8 Million) में बिकी थी.


जापान में लाल सफेद रंग को काफी अहमियत दी जाती है. जापान के झंडे में भी यही दो रंगो का प्रयोग किया गया है. जापान की संस्कृति में यह दो रंग आनंद और पवित्रता के प्रतीक हैं.

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More