लैपटॉप व मोबाइल से खत्म हो रहे शुक्राणु

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पैर पर लैपटॉप रखकर काम करना हो या फिर पैंट की जेब में मोबाइल रखना, दोनों ही आदतें पुरुषों के लिए घातक हैं। कारण, इन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से निकलने वाली रेज स्पर्म (शुक्राणु) को नुकसान पहुंचाती हैं। ये बातें डॉ. गीता खन्ना ने कहीं। होटल अवध क्लार्क में अजंता होप सोसाइटी ऑफ ह्यूमन रीप्रोडक्शन एंड रिसर्च द्वारा इंफटीलिर्टी मैनेजमेंट पर आयोजित की गई।
घंटों पैंट की जेब में रखना नुकसान दायक है
इसका उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि उपस्थिति लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. दीपक मालवीय ने किया। इस दौरान डॉ. गीता खन्ना ने कहा कि पुरुषों में लैपटॉप पैर पर रखकर देर तक काम करना व मोबाइल घंटों पैंट की जेब में रखना नुकसान दायक है। स्टडी में पाया गया है इन गैजेट से निकलने वाली रेज टेस्टिस (अंडकोष) में एक्सपोज होती हैं। वहीं स्पर्म काफी सेंसिटव होते हैं, ऐसे में देर तक रेज की चपेट में आने से उनकी क्वॉलिटी व क्वांटिटी कम हो जाती है। ऐसे में पुरुषों में इंफर्टीलिटी की समस्या हो जाती है।
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दिल्ली के डॉ. कुलदीप जैन ने कहा कि जिन पुरुषों में इलेक्टिक-मैग्नेटिक रेज से स्पर्म की क्वॉलिटी खराब होती है या फिर कम हो जाती है। उनमें सर्जिकल स्पर्म स्ट्रीवल (पीएसए) तकनीक संतान उत्पन्न में सहायक हो सकती है। इसमें सीधे टेस्टिस से स्पर्म लेकर महिला में इंजेक्ट किए जाते हैं। इस तकनीक से खुद के केंद्र पर 300 सौ से अधिक बच्चे होने का उन्होंने दावा किया। राजधानी की डॉ. तनुश्री गुप्ता ने कहा कि देर से शादी करना व देर से बच्चा पैदा करना भी बांझपन का एक कारक है। कारण, नेचुरल प्रेगनेंसी के लिए आवश्यक एंटी मुलेरियन हार्मोन (एएमएच) कम हो जाते हैं। इसके लिए महिला में 2.5 यूनिट एएमएच हार्मोन होने जरूरी हैं।
महिला के एग रिलीज करते वक्त इंजेक्ट कर देते हैं
वहीं जब एक यूनिट एएमएच ही रह जाते हैं, तो टेस्ट्यूब बेबी ही विकल्प बचता है। दिल्ली की डॉ. सोनिया मलिक ने कहा कि यदि महिला की फेलोपियन ट्यूब खुली हैं। उसमें कोई ब्लॉकेज नहीं है,ऐसे में आइवीएफ के बजाय आइयूआइ तकनीक से संतान का विकल्प चुनना चाहिए। इसमें स्पर्म लेकर लैबोरेटरी में फ्रेश शुक्राणु निकालकर महिला के एग रिलीज करते वक्त इंजेक्ट कर देते हैं। ऐसे में इंट्रायूट्राइन इन सेमीनेशन (आइयूआइ) में सिर्फ 10 हजार रुपये तक का खर्चा होता है। वहीं आइवीएफ में डेढ़ लाख तक खर्च होता है। राजधानी की डॉ. प्रीति कुमार ने कहा कि पोलेसिस्टक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओडी) किशोरियों के लिए मुसीबत है।
करियर के चक्कर में अपनी फैमिली प्लानिंग न गड़बड़ाएं
इसमें उनके पीरियड देर से आना या फिर अधिक आने जैसी समस्या होती है। वहीं इसी के चलते उनकी ओवरी में कभी-कभी सिस्ट बन जाती है, जोकि इंफर्टीलिटी का कारण बन जाता है। हैदराबाद की डॉ. ममता ने कहा कि महिलाएं व पुरुष करियर के चक्कर में अपनी फैमिली प्लानिंग न गड़बड़ाएं। 25 उम्र तक दंपती को पहला बच्चा अवश्य करना चाहिए। इससे बाद में आने वाली दिक्कतों से छुटकारा पाया जा सकता है। मुंबई के डॉ. जतिन शाह ने कहा कि सेरोगेसी बिल के साथ-साथ सरकार अब एआरटी बिल भी लाने जा रही है। असिस्टेट रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी बिल का ड्राफ्ट लगभग तैयार हो गया है। लोकसभा में पास होते ही यह कानून बन जाएगा।
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जिसकी राज्य स्तर पर भी एक सेल होगी। इसके तहत आइवीएफ सेंटरों की निगरानी व मानक तय हो जाएंगे। अभी तक इन सेंटरों को आइसीएमआर के तहत दर्ज किए जाते हैं। मगर आइसीमएआर ने 800 सेंटरों को पंजीकृत करने के बाद बंद कर दिया, जबकि देश में 4500 करीब सेंटर हैं। डॉ. जतिन शाह ने बताया कि देर से शादी करने से इंफर्टीलिटी की समस्या बढ़ रही है। ऐसे में युवतियां अब एग फ्रीजिंग कराने लगी हैं। यह आठ दिन इंजेक्शन देकर फिर पांच मिनट के प्रोसीजर की प्रक्रिया है। जिसे पांच से दस वर्ष तक सुरक्षित किया जा सकता है। यह एग लिक्विड नाइट्रोजन टैंक में माइनस 196 डिग्री पर रखे जाते हैं। वहीं मिट्रीफिकेशन तकनीक के जरिए एग को डैमेज होने से बचाया जाता है।
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