जोशीमठ संकट: क्या होता है भू-धंसाव, इसके लिए क्या ये प्रोजेक्ट है जिम्मेदार, विस्तार से जानें
उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे भूस्खलन और भू-धंसाव के चलते जिले को प्रभावित जोन घोषित कर दिया गया. केंद्र सरकार ने लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता दिए जाने पर जोर दिया है. इसके अलावा, विशेषज्ञों से लघु और दीर्घकालिक संरक्षण और पुनर्वास के लिए लिए योजना तैयार करने के लिए कहा है. उत्तराखंड सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने बुरी तरह प्रभावित इलाकों का दौरा किया और लोगों से अस्थायी तौर पर बनाए गए राहत शिविरों में जाने की गुजारिश की है. भू-धंसाव की वजह से 13 घरों में बहुत बड़ी-बड़ी दरारें आ गई थी, उन परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है. वहीं, राहत व बचाव कार्य भी जारी है.
अब सवाल उठता है कि आखिर जोशीमठ में जमीन क्यों धंसती है? भू-धंसाव के क्या कारण होते हैं? इसके लिए कौन सा प्रोजेक्ट जिम्मेदार है? आइये विस्तार से जानते हैं इसके बारे में…
क्या है भूस्खलन या भू-धंसाव…
जमीन का धंसना एक प्रकार से उसका डूबना होता है. जमीन के भीतर उपस्थित पदार्थों की हलचल भी इसकी एक वजह होती है, लेकिन आमतौर पर इसका मुख्य कारण पंपिग, फ्रेकिंग होता है. यह एक तरह की प्रक्रिया होती है, जिसमें पहाड़ या जमीन में इंजेक्शन के जरिये पानी या हवा का दबाव डाला जाता है. पंपिग, फ्रेकिंग खदान गतिविधियों के जरिये पानी, तेल, प्राकृतिक गैस या खनिज संसाधनों को निकालना होता है.
नेशनल ओसिनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राकृतिक घटनाएं जैसे भूकंप, मिट्टी का दबाव या जबरन की गई गतिविधियों की वजह से एक जगह जमना, ग्लेशियल आईसोस्टेटिक एडजस्टमेंट, हवाओं के जरिए आई मिट्टी के जमाव पर पानी का मिलना भी भू-धंसाव की वजह हो सकता है. भू-धंसाव बहुत बड़े इलाके, जैसे पूरे राज्य या प्रांत को प्रभावित कर सकता है या फिर यह इतना छोटा हो सकता है कि इससे किसी आंगन के कोई कोने पर ही असर पड़े.
यूएसजीएस की रिपोर्ट के अनुसार, जमीन से अत्यधिक मात्रा में पानी निकालने की वजह से कुछ भूजल स्रोत में मिट्टी का भराव हो जाता है और भू-धंसाव की यह सबसे आम वजह बनती है. इन भूजल स्रोत से बहुत ज्यादा मात्रा में पंपिंग करके पानी निकालने की वजह से जमीन का धसकना स्थायी हो जाता है. जब इन जलस्रोतों से बड़ी मात्रा में पानी निकाला जाता है तो इससे एक जगह पर ज्यादा मिट्टी एकत्रित होती है, जिससे मिट्टी के वो छिद्र बंद हो जाते हैं जो पहले पानी को अपने अंदर रोक कर रखते हैं. जिससे भूजल स्रोत स्थायी तौर पर घटना शुरू हो जाते हैं और इसकी कुल क्षमता कम होने लगती है.
कौन प्रोजेक्ट है जिम्मेदार…
जोशीमठ में जमीन धसान के लिए तपोवन-विष्णुगढ़ बिजली परियोजना की एक सुरंग को मुख्य रूप से जिम्मेदार बताया जा रहा है. 12 किमी लंबी इस सुरंग की नदी को पन-बिजली स्टेशन के टरबाइन तक जाती है. स्थानीय लोगों के दावे के मुताबिक, जोशीमठ की जमीन के भीतर से पास हो रहे हैं. सुरंग तैयार करने के लिए जो ‘ब्लास्ट’ किया जा रहा है उसके कारण धरती के भीतर मौजूद कोई प्राकृतिक जलस्रोत फट गया है, जिसके बाद शहर के एक हिस्से से बेहद तेज कीचड़ वाला पानी पूरे वेग से लगातार बह रहा है और शहर तेजी से धंसने लगा है.
हालांकि, इस परियोजना पर कार्यरत कंपनी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) ने इन आशंकाओं से साफ इंकार किया है. एनटीपीसी ने एक बयान में कहा है ‘सुरंग शहर के नीचे से नहीं गुजर रही है. ये सुरंग टनल बोरिंग मशीन की मदद से तैयार हो रही है और इसके लिए किसी तरह के विस्फोटक का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है.’
वहीं, ‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति’ के अतुल सती ने दावा करते हुए कहा
‘कंपनी की टीबीएम मशीन पिछले 4 सालों से किसी कारण फंस गई है. अब बाई-पास टनल तैयार की जा रही है और उसमें विस्फोटकों का प्रयोग हो रहा है. सुरंग को लेकर कंपनी की क्या नीति है ये तो फरवरी 2021 में तपोवन आपदा के समय साफ हो गया था, जिसमें 100 से अधिक मजदूरों की मौत हो गई थी. इनमें से बहुतों के शव तक नहीं मिल पाए थे.’
सती ने आगे कहा
‘हम भी सरकार के कहने पर गए थे, लेकिन वहां जाने के क्रम में ये बात सामने आई कि कंपनी के पास तो सुरंग का कोई नक्शा तक नहीं था, लोगों को सेना और दूसरी संस्थाओं की मदद से निकालने की जो बातें हो रही थीं वो सब कोरे दावों के सिवा कुछ नहीं था.’
सती ने बताया
‘जोशीमठ में दो-तीन फीट लंबी दरारें दिखने लगी हैं, जमीन कितनी नीचे धंस रही है ये तो अभी साफ नहीं हो रहा है, लेकिन शहर पूरी तरह जमींदोज हो जाएगा. अब प्राचीन आध्यात्मिक शहर रहने लायक नहीं रह गया है.’
तपोवन प्रोजेक्ट में हुई थी दुर्घटना…
दरअसल, एनटीपीसी की परियोजना तपोवन प्रोजेक्ट में दो साल पहले ग्लेशियर के तेज बहाव के कारण दुर्घटना हुई थी. उस टीम का हिस्सा रहे सती ने तपोवन दुर्घटना के बाद जोशीमठ का दौरा किया था और उस पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी. खबरों की माने तो तपोवन-विष्णुगढ़ के लिए जो सुरंग तैयार हो रही है उसमें तपोवन और सेलंग गांव की साइड से दोतरफा काम हो रहा है. सुरंग बनाने के लिए एक यूरोपीय कंपनी की मदद ली जा रही है. वहीं, कुछ स्थानीय लोगों का दावा है कि सुरंग तैयार करने वाली मशीन से सुरंग बनाने का काम भी कंपनी ने बेहद दबाव के बाद शुरू किया था.
पहले भी आ चुकी है आपदा…
वर्ष 1970 में भी जोशीमठ में जमीन धंसने की घटना सामने आई थी. उस दौरान वर्ष 1978 में दी गई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि शहर और नीति व माणा घाटी में बड़े स्तर पर निर्माण कार्य नहीं किया जाना चाहिए. क्योंकि यह क्षेत्र मोरेन पर मौजूद है. हेइम, अर्नाल्ड और ऑगस्त गेनस्सर की किताब, सेंट्रल हिमालय के मुताबिक, जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बना है. इसके बाद वर्ष 1971 में कुछ घरों में दरार पाई गयी थी तो कुछ कार्यों को करने का सुझाव दिया गया था. इसमें मौजूदा पेड़ों का संरक्षण और नया वृक्षारोपण, इसके साथ जिस बोल्डर पर यह शहर बना है उसका संरक्षण करने की सलाह दी गई थी. लेकिन दावा किया जाता है कि इसमें किसी भी सुझाव पर कार्य नहीं किया गया.
जोशीमठ की वर्तमान स्थिति…
बीते दिनों से घरों और अन्य स्थानों पर पड़ने वाली दरारों और धंसने की घटना में तेजी आने के बाद उत्तराखंड प्रशासन ने अब तक 100 से अधिक परिवारों को सरकारी शिविरों में शिफ्ट करवाया है. वहीं, कई अन्य लोगों ने दूसरे सुरक्षित स्थानों पर किराये के मकान लिए हैं, जिसके लिए उत्तराखंड सरकार प्रति परिवार 4 हजार रुपये किराये के तौर पर दे रही है. इसके अलावा, आपदा प्रबंधन के लिए उत्तराखंड सरकार ने 11 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की है.
बता दें यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे ने एक फोटो शेयर की, जिसमें बताया गया है कि आखिर भू-धंसाव क्या होता है? फोटो में दिख रहे स्तंभ में जो संकेत हैं, वह 1925, 1955 और 1977 में जमीन की सतह की अनुमानित ऊंचाई को दर्शाते हैं.
यह जगह कैलिफोर्निया में मैंडोटा के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में सैन जोकिन घाटी में मौजूद है.
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