झारखंड: सत्ता खोने का संकट, अंकिता हत्याकांड पर हंगामा, सीएम हेमंत सोरेन के ऊपर मंडरा रही मुसीबतें

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झारखंड की राजनीति में सीएम हेमंत सोरेन लगातार घिरते जा रहे हैं. तेजी से करवट लेती सियासत ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक और सीएम सोरेन के लिए मुसीबतें बढ़ा दी है. एक तरफ सीएम सोरेन की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है तो दूसरी तरफ परिवार से लेकर पार्टी तक में सियासी वर्चस्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है. ऐसे में अंकिता हत्याकांड को लेकर बीजेपी ने आक्रमक रुख अपना रखा है.

अंकिता हत्याकांड से बढ़ी परेशानी…

झारखंड के दुमका में शाहरुख हुसैन ने 12वीं की छात्रा अंकिता पर पेट्रोल डाल कर आग लगा दी, जिससे उसकी मौत हो गई. आरोपी शाहरुख को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है, लेकिन लोगों में आक्रोश कम होने का नाम नही ले रहा. ऐसे में मामले ने सियासी रंग ले लिया है. बीजेपी इस मुद्दे को लेकर आक्रमक है और हेमंत सोरेन की सरकार को कठघरे में खड़े करने में जुट गई है.

बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया तो बीजेपी नेता रघुबर दास ने इसे लव जिहाद से जोड़ दिया है. सीएम सोरेन के लिए यह मामला टेंशन बनता जा रहा है. उन्होंने पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का आर्थिक मुआवजा देने का वादा किया. साथ ही कहा कि ऐसे लोगों को किसी भी सूरत में माफ नहीं किया जाना चाहिए, उन्हें सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए.

कई करीबी जांच एजेंसियों के निशाने पर…

केंद्रीय जांच एजेंसी और ईडी के निशाने पर सीएम सोरेन के कई करीबी हैं. अवैध खनन मामले में ईडी ने प्रेम प्रकाश को गिरफ्तार किया है, जिनके घर पर छापेमारी के दौरान दो एके-47 राइफल बरामद की गई थीं. सीएम सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा और उनके करीबी बच्चू यादव पहले से ईडी के गिरफ्त में है. सीएम सोरेन के मीडिया सलाहकार अभिषेक प्रसाद को अवैध खनन घोटाला मामले में नोटिस दिया गया था. इस तरह सोरेन के तमाम करीबियों पर ईडी का शिकंजा कसता जा रहा है.

सीएम सोरेन ने कहा कि सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स से झारखंड के लोग डरने वाले नहीं हैं. हमें बंदूक का जवाब तीर-धनुष से देना आता है. खुद को आदिवासी का बेटा बताते हुए सोरेन ने कहा कि इनकी चाल से हमारा न कभी रास्ता रुका है, न हम लोग कभी इन लोगों से डरे हैं. हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही हमारे मन से डर-भय को निकाल दिया है. हम आदिवासियों के डीएनए में डर और भय के लिए कोई जगह ही नहीं है.

खतरे में विधायकी…

लाभ के पद के मामले में सीएम सोरेन की विधानसभा सदस्यता खतरे में पड़ गई है. इसे लेकर चुनाव आयोग ने अपनी राय भेज दी है, जिस पर राज्यपाल रमेश बैस को अपना फैसला सुनाना है. सोरेन की सदस्यता जाती है तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा. ऐसे में उन्होंने अपने सभी विधायकों को 2 बसों में भरकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर शिफ्ट कर दिया गया है ताकि किसी तरह का कोई सियासी उलटफेर न हो सके. इसके लिए चार्टर्ड फ्लाइट बुक की गई थ.  हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर भी खतरा मंडरा रहा है.

आरोप है कि बसंत सोरेन ने अपने चुनावी हलफनामे में ये जानकारी छिपाई कि वो एक खनन कंपनी में निदेशक हैं. बीजेपी ने दावा किया कि सोरेन निदेशक के पद पर हैं, जो लाभ के पद के अंतर्गत आता है. आरोप ये भी है कि, बसंत सोरेन ने खनन और अन्य व्यावसायिक अधिकार प्राप्त करने के लिए अपने दबदबे का इस्तेमाल किया.ऐसी उम्मीद है कि हेमंत सोरेन के बारे में फैसला सुनाए जाने के बाद बसंत सोरेन के मामले में फैसला सुनाया जा सकता है.

सीएम बनने के बाद से हेमंत सोरेन अपनी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा से लेकर अपने परिवार तक में सियासी वर्चस्व की जंग लड़ रहे हैं. सीएम सोरेन की भाभी व जामा से विधायक सीता सोरेन तो पहले से ही बागी रुख अपना रखी है. वो अपने पति दुर्गा सोरेन के नाम से एक संगठन भी बना रखा है. पिछले दिनों राज्यपाल से लेकर केंद्र तक चिट्ठी लिखकर उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों को उठाया था. इसके अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक लेबिन हेम्ब्रम खुलकर पहले से नाराज हैं. वो लगातार सरकार की घेराबंदी कर रहे हैं. ऐसे में सीएम सोरेन के लिए अपने विधायकों के बचाए रखने की चुनौती है तो परिवार को भी एकजुट रखने की चुनौती है.

कांग्रेस में सियासी संकट…

झारखंड की हेमंत सोरेन के अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार जब से बनी है, उसके बाद से सियासी संकट बना हुआ है. यह बात खुद हेमंत सोरेन कह चुके हैं कि बीजेपी उनकी सरकार गिराने के लिए षड्यंत्र रच रही है. सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. जेएमएम की सहयोगी कांग्रेस पर सबसे ज्यादा संकट बना हुआ है. इसकी वजह यह है कि 30 जुलाई को बंगाल के हावड़ा में झारखंड कांग्रेस के तीन विधायक इरफान अंसारी, राजेश कच्छप और नमन बिक्सल को भारी कैश के साथ पकड़ा गया था, जिन पर आरोप था कि वो असम जा रहे हैं.

राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी कांग्रेस के 11 विधायकों ने पार्टी लाइन से हटकर एनडीए की कैंडिडेट रहीं द्रौपदी मुर्मू को वोट किया था. माना जा रहा है कि कांग्रेस के 18 में से आधे विधायक अलग-अलग कारणों से नाराज हैं, जिसके चलते वो बागी रुख अपना सकते हैं. कांग्रेस कैश के साथ पकड़े गए अपने तीन विधायकों को निष्कासित कर चुकी है, जिसके चलते वो अब पूरी तरह से आजाद हैं. ऐसे में कांग्रेस में टूट की सबसे ज्यादा चुनौती है, जिसका असर हेमंत सोरेन की सरकार पर भी पड़ सकता है.

बता दें झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार पर बड़ा क्वेस्चन मार्क लगा है. चुनाव आयोग के मुताबिक, सीएम सोरेन ने अपने नाम पर स्टोन माइनिंग का अलॉट्मेंट कर दिया था. झारखंड के 22 साल में इतिहास में 11 सरकारें आ चुकी हैं और 3 बार राष्ट्रपति शासन भी लगा है. झारखंड के पास भारत का 40 पर्सेंट मिनरल रिज़र्व और 30 पर्सेंट कोल माइन है. प्रदेश के पास इतना बड़ा ऐसेट होने बावजूद इसे कई बार स्कैम और सरकार की उथल-पुथल का शिकार बनना पड़ा है. झारखंड में ऐसी परिस्थितियों का जन्म होना प्रदेश के राजनीतिक इतिहास के लिए नया नहीं है. लेकिन, क्या हेमंत सोरेन की राजनीति पर इस बार ताला लग जाएगा?

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