Janmashtami special : कृष्ण से बिछड़कर कहां गयी राधा, क्या फिर कभी मिले राधा से कान्हा ….

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आज हमारे देश के हर हिस्से में जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। प्रभु कृष्ण का नाम आते ही प्रेम और त्याग की बात शुरू हो जाती है और जहां प्रेम, कृष्ण की बात हो रही हो वहां राधा का जिक्र न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता है। शायद यही वजह है कि, जहां कृष्ण का नाम लेना होता है वहां लोग आज भी राधे – राधे कहते है। लेकिन राधा की इस अन्रय भक्ति और प्रेम ने राधा को क्या दिया ? क्या उन्होने कभी कान्हा पाया यदि नहीं तो कान्हा से बिछड़कर राधा का क्या हुआ ? वे कहां गयी और कैसी रही उनकी जिंदगी…..आज जन्माष्टमी स्पेशल में हम आपको इस बारे में बताने वाले है । आइए जानते है कान्हा से बिछड़ राधा का क्या हुआ…..

कान्हा से बिछड़ राधा ने ऐसे काटी जिंदगी

8 साल की उम्र से ही कान्हा और राधा में एक दूसरे के प्रति लगाव था, वे दोनो एक दूसरे को चाहते थे। राधा और कृष्ण दैवीय गुणों की वजह से एक दूसरे से परिचित थे । उन दोनो ने अलग होने के बाद भी प्रेम की स्मृतियों को संजो कर रखा, यही वजह था कि, एक दूसरे से अलग होने के बाद भी दोनों का प्रेम जीवित रहा। कृष्ण कथा में वृंदावन को छोडने के बाद राधा का जिक्र बहुत कम मिलता है। कहा जाता है कि, जब राधा कृष्ण आखिरी बार एक – दूसरे को मिले तो राधा ने कृष्ण से कहा था कि, भले ही वो उनसे दूर जा रहे हैं, लेकिन मन से कृष्ण हमेशा उनके साथ ही रहेंगे।

इसके बाद कृष्ण मथुरा पहुंचे और कंस के साथ कई राक्षसों का वध किया, इसके बाद वे प्रजा की रक्षा के लिए कृष्ण द्वारका चले गए और द्वारकाधीश के नाम से जाने गए। इधर राधा के जीवन में कृष्ण के जाने के बाद राधा की जिंदगी ने अलग ही मोड़ ले लिया, राधा का विवाह किसी और के साथ हो गया । राधा ने अपने दांपत्य जीवन की सारी रस्में निभाईं। वो बूढ़ी हो गई, लेकिन मन कृष्ण के लिए प्रेम कभी कम नहीं रहा।

वृंदावन से जाने के बाद कान्हा से कहां मिली राधा

बताते है कि, अपने जीवन के सभी कर्तव्यों का निर्वाह करने के बाद राधा आखिरी बार कृष्ण से मिलने के लिए द्वारका पहुंची थी। वहां पहुंचने के बाद राधा को कृष्ण के विवाह के बारे में पता चला, वहां वे रुक्मिनी और सत्यभामा से मिली। लेकिन वे दुखी नहीं हुई, कृष्ण भी राधा से मिलकर काफी खुश हुए । कहते वे दोनो इस दौरान सांकेतिक भाषा में बात करते थे। हालांकि, द्वारका नगरी में राधा को कोई भी नहीं जानता था , ऐसे में राधा कृष्ण के पास ही रहना चाहती थी।

इसलिए कृष्ण ने उन्हे अपने महल में देविका के रूप में नियुक्ति दे दी। राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही कृष्ण को निहार लेती थीं। लेकिन महल में राधा ने श्रीकृष्ण के साथ पहले की तरह का आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थीं, इसलिए राधा ने महल से दूर जाना तय किया। उन्होंने सोचा कि वह दूर जाकर दोबारा श्रीकृष्ण के साथ गहरा आत्मीय संबंध स्थापित कर पाएंगी।

कृष्ण ने राधा के निधन के बाद तोड़ दी थी बांसुरी

द्वारका में कान्हा को पाकर भी न पाने के बाद राधा बिना ये सोचे निकल पड़ी थी कि, कहां जाना है, लेकिन कृष्ण को सब मालूम था। इसके बाद समय गुजरने के साथ ही राधा अकेली और कमजोर भी हो गयी थी। उस समय उन्हे कृष्ण की जरूरत का एहसास हुआ, जिसके बाद आखिरी पलों में कृष्ण राधा से मिलने आए भी थे। उस समय कृष्ण ने राधा से खुद को मांगने को कहा था, लेकिन राधा ने इससे इंकार कर दिया। जिसके बाद कान्हा ने राधा से दुबारा इस बात का अनुरोध भी नहीं किया । लेकिन राधा ने कान्हा से अपने जीवन के अंतिम पलों में बांसुरी बजाने का आग्रह किया था।

राधा के आग्रह पर कृष्ण ने बांसुरी की धुन छेड़ दी। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई, जब तक राधा आध्यात्मिक रूप से कृष्ण में विलीन नहीं हो गईं। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया। कृष्ण जानते थे कि उनका प्रेम अमर है, बावजूद वे राधा की मृत्यु को बर्दाश्त नहीं कर सके. कृष्ण ने प्रेम के प्रतीकात्मक अंत के रूप में बांसुरी तोड़कर फेंक दी। कहते हैं कि इस घटना के बाद से श्रीकृष्ण ने कभी बांसुरी नहीं बजाई।

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