Jallikattu : तमिलनाडु के जल्लीकट्टू खेल से हटा बैन, चली जाती है जान फिर भी खेलने की इजाज़त
लखनऊ : तमिलनाडु के प्राचीन खेल जल्लीकट्टू को आज सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिल गई। कोर्ट ने कहा कि इस खेल से सांडों को कोई नुकसान नहीं। खेल में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं की जाती है। ये पारंपरिक है इसलिए इसपर रोक नहीं लगाई जा सकती। लेकिन बावजूद इसके ये खेल बेहद ही खतरनाक खेलों में से एक है। इस खेल में व्यक्ति की जान तक चली जाती है। फिर भी जल्लीकट्टू खेल तमिलनाडु में बड़े चाव से खेला जाता है।
पोंगल त्योहार के दिन खेला जाता है जल्लीकट्टू
तमिलनाडु में पोंगल के दिन आयोजित होने वाले पारंपरिक खेल जल्लीकट्टू को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। पांच जजों की पीठ ने इस खेल को हरी झंडी दे दी है। तमिलनाडु सरकार की दलील को मानते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि इससे सांडों पर कोई क्रूरता नहीं की जाती है।
क्या है जल्लीकट्टू खेल
जल्लीकट्टू तमिलनाडु का प्राचीन खेल है, जिसमें सांडों को काबू करने की जद्दोजहद होती है। जल्लीकट्टू को तमिलनाडु में पोंगल के पावन त्योहार पर मनाया जाता है। तकरीबन 2500 साल पहले इस खेल को शुरू किया गया था और इसे गौरव और संस्कृति का पर्व माना जाता है। तमिल के दो शब्द जली और कट्टू से जल्लीकट्टू बना है। जली का अर्थ सिक्के और कट्टू सांड के सिंग को कहा जाता है।
दरअसल, इसे मनाने की एक और वजह ये बताई जाती है कि पोंगल का पर्व फसल की कटाई से जुड़ा है। फसल में बैलों का इस्तेमाल काफी होता है, इसलिए उन्हें संरक्षित करने का भाव पैदा करने के लिए इसका आयोजन किया जाता था। इन खेलों को कई राज्यों में खेला जाता है, जैसे महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ होती है।
कैसे खेला जाता है खेल
इस खेल की शुरुआत सबसे पहले तीन सांडों को छोड़ने से होती है। ये सांड़ गांव के सबसे बुजुर्ग होते हैं, जिन्हें कोई नहीं पकड़ता क्योंकि इन्हें शान माना जाता है। इन तीनों सांडों के जाने के बाद मुख्य खेल शुरू होता है। बाकी के सांडों के सिंगों में सिक्कों की थैली बांधकर उन्हें भीड़ के बीच छोड़ दिया जाता है।
कैसे चुना जाता है खेल का विजेता
सांडों की दौड़ पूरी होने के बाद जो व्यक्ति सांड के सींग से सिक्कों की थैली को निश्चित समय में निकाल लेता है। उसे विजेता बताया जाता है।
जल्लीकट्टू खेलने के नियम
जल्लीकट्टू को खेलने के कई नियम भी हैं। इसके लिए सांड के कूबड़ को पकड़कर उसपर काबू पाना होता है। सांड की पूंछ और उसके सींग को पकड़कर उसे पकड़ना होता है। सांड को एक नियत समय में काबू में लाना होता है और ऐसा न होने पर व्यक्ति हारा माना जाता है।
जलीकट्टू खेल पर क्यों छिड़ा विवाद
दरअसल, तमिलनाडु में कुछ साल पहले जल्लीकट्टू के दौरान का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें दावा किया था कि सांडों को खेल से पहले शराब पिलाई जाती है और फिर उनकी पिटाई की जाती है। इसके चलते ही वो बिना होश के बेहताश होकर दौड़ते हैं। इस दावे के बाद एनीमल वेल्फेयर बोर्ड ऑफ इंडिया और पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स (पेटा) इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में इस खेल के खिलाफ याचिका दायर की और कहा कि इससे सांडों पर क्रूरता बरती जा रही है।
खेल के साये में पल रहें सांड
सांडों के पालकों का कहना है कि इस खेल के कारण राज्य में मादा और नर मवेशियों का अनुपात संतुलित बना हुआ है। उनका कहना है कि यदि इस पर बैन लगता है तो किसान इन सांडों का ख्याल नहीं रखेंगे। सांडों की इन स्थानीय प्रजातियां ही अक्सर इस खेल में हिस्सा लेती हैं। सिवागंगई के पुलिकुलम गांव की इन नस्लों में कमी के कारण इनका संरक्षण करने की मुहीम चली थी।
With immense delight, as I join entire #Tamilnadu in welcoming the Hon'ble SC's verdict lifting the ban on our #Jallikattu, I express my sincere gratitude to the Hon'ble PM
Thiru @narendramodi avl, for his unwavering support towards the efforts taken to protect Jallikattu law.… pic.twitter.com/CscdeXBXU9— Dr.R.Ananda Priya (@APriya_Official) May 19, 2023
2014 में लगा था जल्लीकट्टू पर बैन
सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई 2014 को जल्लीकट्टू पर रोक लगाते हुए कहा था कि इसे देश में कहीं भी खेला नहीं जाना चाहिए। इसके बाद केंद्र ने साल 2016 में अध्यादेश लाकर इसको कुछ शर्तों के साथ हरी झंडी दे दी। तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसे कोर्ट ने पहले खारिज कर दिया और बाद में पुनर्विचार याचिका के समय सुनवाई को राजी हो गया। कई सालों की सुनवाई के बाद आखिरकार कोर्ट ने आज फिर से जल्लीकट्टू को जारी रखने की इजाजत ये कहते हुए दे दी कि इससे सांडों को कोई खतरा नहीं है।
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