कोरोना: लगातार टूट रही पत्रकारों की सांस

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पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। कितना इतराते हैं हम पत्रकार जब हमें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा दिया जाता है। लेकिन कभी भी शासन या प्रशासन ने हमें ये एहसास नहीं कराया है हम पत्रकार देश के फोर्थ पीलर्स में से एक हैं।

अकेला पड़ा देश का चौथा स्तंभ
जब-जब मीडिया संस्थानों या दूर-दराज के इलाके में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर मुसीबत आई तो देश के तीनों स्तंभों ने कभी मदद के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया या यूं कहें कि चौथे स्तंभ का साथ नहीं दिया। कोरोना काल में भी ये चौथा स्तंभ बिलकुल अकेला पड़ गया है।

जान जोखिम में डाल कर हैं रिपोर्टिंग
कोरोना से जिन पत्रकारों की मौत हुई ये वो पत्रकार हैं जो लगातार आपको कोरोना काल की खबरों को पहुंचा रहे थे। चाहे वो रोहित सरदाना हो, विकास शर्मा हो या अमित विराट हो…और भी सैकड़ों नाम इस फेहरिस्त शामिल हैं। पत्रकार अपनी जान को जोखिम में डालकर अपनी ड्यूटी को निभा रहा है। जिससे आप तक कोरोना की खबरें पहुंच सकें। लेकिन आज कई सारे पत्रकार खुद ही खबर बन गए।

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लखनऊ में 16 पत्रकार हुए शिकार
यूपी की राजधानी लखनऊ में कोरोना से करीब 16 पत्रकारों की मौत हो गई। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी कई पत्रकारों को कोरोना ने अपना शिकार बना लिया। दिल्ली-एनसीआर का हाल तो और बुरा है। एक पत्रकार अपने दूसरे पत्रकार साथियों के लिए अफसरों, नेताओं और स्वास्थ्य सेवाओं से जूड़ें लोगों से दवां, ऑक्सीजन, बेड, वेंटीलेटर और आईसीयू के लिए सोशल मीडिया से लेकर उनके दफ्तरों तक गिड़गिड़ाते नजर आ रहे हैं।

पत्रकार कोरोना वॉरियर्स के नाम से अछूता क्यों ?
स्वास्थ्य सेवाओं और प्रशासन के लोगों को कोरोना वॉरियर्स के नाम से पुकारा जा रहा है। लेकिन क्या पत्रकार कोरोना से आंख में आंख मिलाकर बात नहीं करतें, क्या कोरोना पत्रकारों पर अटैक नहीं करता या पत्रकार कोरोना महामारी के इस महायुद्ध में अपनी बली नहीं दे रहा है ? फिर पत्रकारों से कैसा बैर ? आखिर पत्रकारों को कोरोना वॉरियर्स का नाम ऑफिशियल रुप से क्यों नहीं दिया जा रहा है। वैक्सीनेशन की शुरूआत हुई तब भी पत्रकारों को अछूता कर दिया गया। पत्रकार भी तो पहली पक्ति में रहकर कोरोना से युद्ध ही कर रहे थे।

 तत्पर होकर कर रहे हैं रिपोर्टिंग
खैर मीडिया के कुछ बड़े नाम जब कोरोना की भेंट चढ़ गए तो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्रियों तक ने सोशल मीडिया पर सच्ची श्रद्धांजलि अपर्ण की। लेकिन मीडिया में तहसील, जिले और राज्य स्तर के पत्रकारों का सुध लेने वाला कोई नहीं है। बावजूद इसके यह पत्रकार ना उम्मीद होकर भी अपने संस्थान के लिए, समाज के लिए तत्पर होकर रिपोर्टिंग कर रहा है और कोरोना के काल के गाल में समाता चला जा रहा है।

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