‘दादा फ्रीडम फाइटर…नाना सेना में ब्रिगेडियर’

मुख्तार अंसारी कैसे बन गया जरायम की दुनिया का बाहुबली

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बांदा जेल में बंद बाहुबली मुख्तार अंसारी की कार्डियक अरेस्ट की वजह से मौत हो गई. जेल में अचानक तबीयत खराब होने के बाद उन्हें दुर्गावती मेडिकल कॉलेज ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई. मुख्तार की मौत के साथ ही अपराध की दुनिया के एक अध्याय का अंत हो गया. लेकिन आपको जान कर हैरानी होगी कि मुख्तार अंसारी, एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखता था जो देश सेवा करने से लेकर देश को अंग्रेजों से आजाद कराने में शामिल रहा.

देश सेवा में रहा पूरा परिवार

मुख़्तार अंसारी के दादा डॉक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे. गांधी जी के साथ काम करते हुए वह 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. मुख़्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत के लिए महावीर चक्र से नवाज़ा गया था. मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह अंसारी गाजीपुर में अपनी साफ सुधरी छवि के साथ राजनीति में सक्रिय रहे थे. भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख़्तार अंसारी के चाचा लगते थे.

कुछ लोग रॉबिनहुड मानते थे मुख्तार को

मुख्तार अंसारी के बारे में लोगों की अलग-अलग धारणाएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि मुख्तार अंसारी रॉबिनहुड था. अमीरों से लूटकर गरीबों में दान करना, उनकी मदद करना, और किसी भी जरूरतमंद को घर के दरवाजे से खाली हाथ नहीं लौटाने वाला शख्स था. लेकिन ये तो हर कोई जानता है है कि ठेकेदारी, खनन, शराब, रेलवे के ठेके से लेकर अवैध कब्जा करना उसका पेशा था.

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मुख्तार अंसारी के दादा स्वतंत्रता सेनानी थे और उसके फौज में नाना ब्रिगेडियर. तो फिर मुख्तार अंसारी माफिया कैसे बन गया. रौबदार मूंछों वाला ये विधायक आज भले ही दुनिया से चल बसा हो लेकिन मऊ और उसके आसपास के इलाके में मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी. कभी वक्त था जब पूरा सूबा मुख्तार के नाम से कांपता था. मुख्तार अंसारी करीब 24 साल तक अलग-अलग पार्टियों से विधायक बनकर विधानसभा पहुंचा.

ये था मुख्तार का सियासी सफर

1996 में BSP के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले मुख़्तार अंसारी ने 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की. इनमें से आखिरी 3 चुनाव उसने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़ा और जीता.

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