स्टिक से चिपक जाती थी बॉल, यूं ही नहीं हॉकी के जादूगर कहलाते हैं Major Dhyan Chand

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देश में ऐसे बहुत से लोग हुए हैं, जिन्होंने देश को गौरवान्वित होने का अवसर भी दिया और वैश्विक स्तर पर देश का नाम रोशन किया। ऐसा ही एक नाम है मेजर ध्यानचंद का।

उन्होंने न केवल अपने खेल से भारत को ओलिंपिक खेलों की हॉकी स्पर्धा में स्वर्णिम सफलता दिलाई बल्कि परंपरागत एशियाई हॉकी का भी दबदबा कायम किया।

मेजर ध्यानचंद का इस दिन जन्म 29 अगस्त 1905 में हुआ था। यह दिन भारत में हर साल खेल को बढ़ावा देने के लिए 2021 से राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा।

इसलिए कहा जाता है हॉकी का जादूगर-

dhyanchand

ध्यानचंद ने ओलंपिक खेलों में भारत का झंड़ा लहराया था और तीन बार हॉकी में देश को इन खेलों में गोल्ड मेडल जिताया था।

ध्यानचंद को भारत में हॉकी का जादूगर कहा जाता है। जब वह बॉल लेकर आगे निकलते तो हॉकी में बॉल ऐसे चलती थी, जैसे चिपक गई हो। ऐसा ही संदेह होने पर एकबार उनकी स्टिक को तोड़कर जांच भी की गई थी।

अब ध्यानचंद पर सर्वोच्च खेल पुरस्कार का नाम-

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केंद्र सरकार ने खेल के क्षेत्र में दिए जाने वाले सबसे बड़े अवॉर्ड राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर अब हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर कर दिया गया है।

बता दें कि हर साल मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन पर खेल से जुड़े अवॉर्ड्स दिए जाते हैं। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार को अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के नाम से जाना जाएगा।

हिटलर के ऑफर को ध्यानचंद ने ठुकराया-

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बदायूं में रहने वालीं ध्यानचंद की भतीजी चंद्रकला ने वो किस्सा सुनाया जब जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ऑफर को ध्यानचंद ने ठुकरा दिया था।

उन्होंने कहा, ध्यानचंद ने उन्हें बताया था कि किस तरह से उन्होंने हॉकी मैच में हिटलर की टीम को हराया था।

ध्यानचंद ने दिया था ये जवाब-

hockey

इस दौरान मेजर ध्यानचंद ने फटे हुए जूते पहने थे। हिटलर ने उन्हें ऑफर देते हुए कहा था कि अगर वे उनके देश में चलते हैं, तो अच्छी नौकरी और खेलने की सभी सुविधाएं मिलेंगी।

लेकिन ध्यानचंद ने अपने देश का गौरव बढ़ाते हुए कहा कि वह मरते दम तक हिंदुस्तान के लिए ही खेलेंगे। देश से किसी भी हाल में गद्दारी नहीं करेंगे।

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