विशेष : HIV संक्रमित व्यक्ति क्या नही कर सकता

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उन्होंने अपने आप को घर में कैद कर लिया। लगभग तीन साल तक दिन के उजाले को देखने में असमर्थ रहे और दुर्गम बाधाओं से लड़ते रहे। के. प्रदीपकुमार सिंह ने सामाजिक कलंक और भेदभाव पर विजय प्राप्त कर दुनिया को यह दिखा दिया है कि “एक एचआईवी(HIV ) संक्रमित व्यक्ति जीवन में क्या कुछ कर सकता है।

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एक समय में मणिपुर में देश के करीब आठ फीसदी एचआईवी पीड़ित थे

अपनी जवानी के दिनों में वह मणिपुर के अपने हमउम्र युवाओं की तरह नशे और ड्रग्स की चपेट में थे। साल 2000 में प्रदीपकुमार को पता चला कि वह इस वायरस से संक्रमित हैं। राजधानी इंफाल से तीन किलोमीटर दूर एक गांव में पैदा हुए प्रदीपकुमार राज्य में एचआईवी और एड्स से संक्रमित अकेले व्यक्ति नहीं है।

एक समय में मणिपुर में देश के करीब आठ फीसदी एचआईवी पीड़ित थे

मणिपुर राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी के मुताबिक एचआईवी और एड्स राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चुनौती है। एक समय में मणिपुर में देश के करीब आठ फीसदी एचआईवी पीड़ित थे, जबकि यहां देश की आबादी का केवल 0.2 फीसदी हिस्सा रहता है।

सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हुए अपनी कमजोरी को सकारात्मकजीवन में बदल दिया

इसे धीमा जहर कहा जाता है और यह मरीज को अत्यंत दुर्बल बना देता है और इससे होनेवाली दर्दनाक मौत के लिए पीड़ित की ही निंदा की जा सकती है। लेकिन उन्होंने अपने भाग्य को स्वीकारने के बदले साहस जुटाया और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हुए अपनी कमजोरी को ‘सकारात्मक’ जीवन में बदल दिया।

निर्णायक दृढ़संकल्प के साथ उन्होंने बॉडी बिल्डिंग में करियर बनाया और मिस्टर मणिपुर, मिस्टर इंडिया और मिस्टर दक्षिण एशिया खिताब जीतने के अलावा मिस्टर वर्ल्ड प्रतियोगिता में कांस्य पदक हासिल किया है।

मणिपुर सरकार के खेल और युवा मामलों विभाग में फिजिकल ट्रेनर के रूप में काम करते है

दो दशकों तक एचआईवी के साथ जीने के बाद प्रदीपकुमार अब 46 साल के हैं और सक्रिय रूप से एचआईवी एड्स संबंधित जागरूकता अभियान चलाते हैं। हालांकि अब वह पेशेवर प्रतियोगिताओं में भाग नहीं लेते, बल्कि मणिपुर सरकार के खेल और युवा मामलों विभाग में फिजिकल ट्रेनर के रूप में काम करते हैं और उनकी योजना बॉडी बिल्डिंग अकादमी खोलने की है।

उन्होंने कहा, “पूर्वोत्तर में इतनी प्रतिभा है और बॉडी बिल्डिंग का इतना क्रेज है, लेकिन सब बेकार हो जाता है। न तो राज्य सरकार और न ही खेल अकादमी इसे बढ़ावा देने में कोई रुचि लेती है।”

लोग मेरा मजाक उड़ाते थे…

जब एचआईवी संक्रमण का पता चला, तो वह याद करते हुए कहते हैं, “मैं शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो गया था। यह मुझ पर एक मनोवैज्ञानिक हमले से कहीं अधिक था। सबसे बुरा मेरे सबसे करीबी दोस्तों का मुझसे दूर जाना था। लोग मेरा मजाक उड़ाते थे कि मैं एचआईवी पीड़ित व्यक्ति हूं।

मुझे अस्पृश्य महसूस कराते थे…

न सिर्फ समाज ने, बल्कि अस्पताल के कर्मियों और डॉक्टरों ने भी उनसे दुर्व्यवहार किया। वह बताते हैं, “वे मुझे अस्पृश्य महसूस कराते थे। मणिपुर राज्य सरकारी अस्पताल में मुझे कोने में ऐसा बेड दिया गया, जिस पर कोई मैट्रेस या बेडशीट तक नहीं थी। पूरे दिन मुझे कोई चिकित्सक या सहायक चिकित्सक देखने नहीं आता था।

प्रदीपकुमार कहते हैं, “एक ऐसा समय भी था, जब मैं अपना जीवन खत्म करने की सोच रहा था, लेकिन आज मैं यहां हूं, यह सिर्फ और सिर्फ मेरे परिवार और उसके प्यार के कारण हूं।

उस वक्त एचआईवी के बारे में ज्यादा लोग जागरूक नहीं थे

उनकी भाभी भानु देवी का उनके जीवन में बहुत योगदान है। भानु देवी ने बताया, “उस वक्त एचआईवी के बारे में ज्यादा लोग जागरूक नहीं थे। यह देखना वाकई दुखद था कि कुछ रिश्तेदार भी उनसे दूरी बना रहे थे। लेकिन हमारा लक्ष्य किसी भी कीमत पर प्रदीप को बचाना था। हमने उनका ध्यान ऐसी चीज की तरफ लगाने की कोशिश की, जो उन्हें खुशी दे सके या जो उनके चेहरे पर मुस्कान ला सके।

उस दौरान प्रदीपकुमार ने बॉडी बिल्डिंग को अपना करियर बनाने का फैसला किया। लेकिन कोई सिखाने वाला नहीं था। तो उन्होंने किताबें पढ़कर इसे सीखने की शुरुआत की।

एचआईवी की दवाएं काफी शक्तिशाली होती हैं

प्रदीपकुमार कहते हैं, “एचआईवी की दवाएं काफी शक्तिशाली होती हैं, जिसने मुझे बहुत कमजोर कर दिया था। लेकिन धीरे-धीरे मैं अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने लगा। मैंने उचित आहार का पालन शुरू किया, पौष्टिक भोजन लिया और हर तरह का नशा छोड़ दिया। मैं दुनिया को यह दिखाना चाहता था कि एक एचआईवी संक्रमित व्यक्ति अपने जीवन में क्या कर सकता है।”

वह अभी भी अपने शरीर पर ध्यान देते हैं और कइयों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं

हालांकि उन्होंने इतनी सफलता प्राप्त की है, लेकिन उन्हें मलाल है कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) से कोई मान्यता नहीं मिली। वह कहते हैं, “नाको ने मुझे कभी भी मान्यता नहीं दी। मुझे उनसे कोई मदद नहीं मिली। एचआईवी का इलाज बहुत महंगा है। अगर मैं मणिपुर जैसी किसी छोटी जगह के बजाए किसी महानगर में रहता तो लोग निश्चित रूप से मुझे याद करते।”

संयुक्त राष्ट्र की एड्स रिपोर्ट 2017 के आंकड़ों से पता चलता है

संयुक्त राष्ट्र की एड्स रिपोर्ट 2017 के आंकड़ों से पता चलता है कि 2016 के अंत तक भारत में 21 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हैं, जो कि दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया के बाद दुनिया में तीसरी सबसे ऊंची संख्या है। देश में 2015 में एचआईवी के नए संक्रमण की संख्या 1,50,000 थी, जो 2016 में घटकर 80,000 हो चुकी है।

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