बचपन में अपनों को खोया, अब फिल्म के जरिये दे रहे नई दिशा
जब इंसान के दिल में कुछ करने की तमन्ना हो तो वह बड़ी से बड़ी मंजिल को भी छू लेता है। आज हम आपको एक ऐसे सख्स की कहानी बताएंगे जिन्होंने बचपन में अपनों को खो दिया, लेकिन हार नहीं मानी और आज समाज में एक नई राह दिखा रहे हैं।
जी हां हम बात कर रहे हैं। लखनऊ के आरुष जायसवाल की, बचपन में अपनों को खोने का दर्द समझने वाले आरुष इस पर एक शॉर्ट फिल्म बना डाली। उन्होंने लखनऊ के ही चिल्ड्रेन्स अकादमी स्कूल से पढ़ाई की, उसके बाद एक्टर बनने की राह पर चले पड़े।
हालांकि उनके घरवाले उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी रगों में जो खून दौड़ रहा था, उसमें सिर्फ ओर सिर्फ एक्टिंग का ही कीड़ा था। 9वीं क्लास में ही उन्होंने एक डॉक्टर के क्लिनिक में काम करना शुरू कर दिया था जिससे आगे चलकर वो डॉक्टर बन सकें और घरवालों का सपना पूरा कर सकें, पर होनी को ये मंजूर न था।
आरुष की मां का 2009 में कैंसर के चलते देहांत हो गया। ये वो दौर था जब वो पूरी तरह से टूट गए, लेकिन आरुष अपनी छोटी बहन को पढ़ाना चाहते थे। इसलिए वे इवेंट्स करने लगे और पॉकेट मनी जुटाने लगे। उन्होंने एंकरिंग करने की भी कोशिश की, लेकिन छोटी उम्र के कारण क्लाइंट उन्हें रिजेक्ट कर देते थे। 12वीं के बाद आरुष ने पूरी तरह से डॉक्टर की पढ़ाई छोड़ दी और इवेंट्स करने लगे।
अखबारों में बेटे की तस्वीर देख पिता का दिल पिघल गया। उन्होंने इवेंट्स करने की मंजूरी दे दी। इस दौरान उन्होंने एमिटी में दाखिला लिया, लेकिन पैसे की कमी के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इस दौरान आरुष के पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई। फिर उन्होंने कॉल सेंटर ज्वाइन किया। 6 महीने वहां काम किया और जो पैसे मिले, उसे बहन की पढ़ाई में लगाया। वे डिप्रेशन में चले गए, फिर उन्होंने खुद को समझाया और इवेंट्स करने लगे।
इस दौरान उन्होंने रितेश देशमुख की फिल्म रेडडेस्क में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया। इसके अलावा उन्होंने राजीव खंडेलवाल की फिल्म ‘प्रणाम’ में भी बतौर एक्टर काम किया। वे बरेली की बर्फी, चमेली, भाग्य न जाने कोई जैसी फिल्मों में एक्टिंग कर चुके हैं। अब उन्होंने खुद का प्रोडक्शन हाउस खोला और अपनी शार्ट फिल्म बनाई।
श्री मारुती मोशन पिक्चर्स नाम से इस प्रोडक्शन हाउस में उन्होंने कई फिल्मे बनाई हैं, जिसमें समाज के अलग-अलग मुद्दों को उठाया है।