170 साल से वीरान है यह गांव, जानें क्या है इसका रहस्य
भारत विभिदताओं वाला देश है। यहां अलग-अलग राज्य हैं, वहां की अलग भाषाएं और संस्कृति है। यही नहीं यहां के कई विश्वास तथा मान्यताएं रहस्यमयी सी प्रतीत होती हैं। यहां अनेक प्रांतों में भाषा की विभिन्नता के साथ ही मान्यताएं तथा परंपराएं भी विचित्रता लिये हुये हैं। ऐसी ही विचित्रता से पूर्ण है राजस्थान के जैसलमेर जिले का कुलधरा गांव। यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा है। कुलधरा गांव के हजारों लोग एक ही रात में इस गांव को खाली कर के चले गए थे और जाते-जाते श्राप दे गए थे कि यहाँ फिर कभी कोई नहीं बस पायेगा। तब से गांव वीरान पड़ा है।
कहा जाता है कि यह गांव अज्ञात ताकतों के कब्जे में है, कभी हंसता खेलता यह गांव आज एक खंडहर में तब्दील हो चुका है। कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है।
उन्हें वहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है। बाजार के चहल-पहल की आवाजें आती हैं, महिलाओं के बात करने, उनकी चूड़ियों और पायलों की आवाज हमेशा ही वहां के माहौल को भयावह बनाती है। प्रशासन ने इस गांव की सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते हैं लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहीं करता हैं।
वैज्ञानिक तरीके से बना है गांव
कुलधरा, जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है। पालीवाल समुदाय के इस इलाके में चौरासी गांव थे और कुलधरा उनमें से एक था। मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हणों की कुलधरा शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था।
कुलधरा गांव पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तौर पर बना था। ईंट-पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी कि यहां कभी गर्मी का अहसास नहीं होता था। कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुजरती थीं। कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे।
इस जगह गर्मियों में तापमान 45 डिग्री रहता हैं पर आप यदि कभी भरी गर्मी में इन वीरान पड़े मकानों में जायेंगे तो आपको शीतलता का अनुभव होगा। गांव के तमाम घर झरोखों के जरिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी। घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढिय़ां कमाल के हैं ।
बहुत ही उद्यमी समुदाय था
पालीवाल, ब्राम्हण होते हुए भी बहुत ही उद्यमी समुदाय था। अपनी बुद्धिमत्ता, कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने रेतीली धरती पर सोना उगाया था। हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तानी सरजमीं के बीचोंबीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पना की थी। रेगिस्तान में खेती पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था।
वैज्ञानिक सोच के कारण कर पाए थे तरक्की
जिप्सम की परत वाली जमीन को पहचानना और वहां पर बस जाना। पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोग और आधुनिकता की वजह से उस समय भी इतनी तरक्की कर पाए थे।
बड़ी शान से जीता था समुदाय
पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था और बड़ी शान से जीता था। जिप्सम की परत बारिश के पानी को जमीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते और जबर्दस्त फसल पैदा करते।
पालीवालों के जल-प्रबंधन की इसी तकनीक ने थार रेगिस्तान को इंसानों और मवेशियों की आबादी या तादाद के हिसाब से दुनिया का सबसे सघन रेगिस्तान बनाया। पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहीं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था, जो उनकी समृद्धि का कारक था।
क्यों हो गया वीरान
इतना विकसित गांव रातों रात वीरान हो गया, इसकी वजह था गांव का अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी नजर गांव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी थी। दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था।
उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा।
गांववालों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हें या तो गांव बचाना था या फिर अपनी बेटी। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे।
खाली किया गांव
फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी उस गांव से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे।
श्राप का असर यहां आज भी देखा जा सकता है
पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर यहां आज भी देखा जा सकता है। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो वहां गए जरूर लेकिन लौटकर नहीं आए। उनका क्या हुआ, वे कहां गए कोई नहीं जानता।
सोने की तलाश में आते हैं पर्यटक
पर्यटक यहां इस चाह में आते हैं कि उन्हें यहां दबा हुआ सोना मिल जाए। इतिहासकारों के मुताबिक पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी संपत्ति जिसमें भारी मात्रा में सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात थे, उसे जमीन के अंदर दबा रखा था। यही वजह है कि जो कोई भी यहां आता है, वह जगह-जगह खुदाई करने लग जाता है। इस उम्मीद से कि शायद वह सोना उनके हाथ लग जाए। यह गांव आज भी जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है।
दिल्ली से आई रिसर्च टीम
दिल्ली से आई भूत-प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कुलधरा गांव में एक रात बिताई। टीम ने माना कि यहां कुछ न कुछ असामान्य जरूर है। टीम के एक सदस्य ने बताया कि उस रात में कई बार मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था।
टीम को मिला निशान
पेरानॉर्मल सोसायटी के अनुसार उनके पास एक डिवाइस है, जिसका नाम गोस्ट बॉक्स है। इसके माध्यम से वे ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं। कुलधरा में भी ऐसा ही किया जहां कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने अपने नाम भी बताए। टीम के सदस्य जब कुलधरा गांव में घूमकर वापस लौटे तो उन्होंने अपनी गाडिय़ों की कांच पर बच्चों के पंजे के निशान देखे, जबकि आप-पास तो कोई बच्चा नहीं था।इस प्रकार एक बसा-बसाया गांव किस अज्ञात कारण से वीरान हो गया, इसकी सच्चाई आज तक रहस्य ही है।