ताकि कोई उनके जैसा अनपढ़ न रह जाए…

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हाकम सिंह शिक्षक नहीं हैं। न ही पढ़े लिखे हैं लेकिन, उनका एक सार्थक प्रयास आज सैकड़ों जीवन संवार रहा है। मोगा (पंजाब) के समाध भाई गांव में हाकम सिंह ने 1982 में एक छोटा सा स्कूल खोला था। मकसद था गांव के गरीबों के बच्चों का भविष्य गढ़ना ताकि कोई उनके जैसा अनपढ़ न रह जाए।

चार सौ बच्चे पा चुके है सरकारी नौकरी

यह स्कूल आज किसी पब्लिक स्कूल से कम नहीं है। स्कूल में आने वाले बच्चों को हाकम ने कुछ ऐसा प्रेरित किया कि कमाल हो गया। यहां पढ़े सैकड़ों बच्चे आज अच्छी नौकरियां पा चुके हैं और कुछ तो विदेश में भी काम कर रहे हैं। इन होनहार बच्चों ने स्कूल को चारों ओर प्रसिद्धी दिला दी। अब संपन्न परिवारों के बच्चे भी हाकम के स्कूल में दाखिला ले पढ़ रहे हैं। हाकम बताते हैं कि श्री गुरु अमरदास सीनियर सेकंडरी स्कूल के करीब 400 बच्चे सरकारी नौकरी हासिल कर चुके हैं। 250 से अधिक बच्चे अपनी आगे की पढ़ाई विदेश में पूरी कर रहे हैं।

हर साल सौ बच्चों को निशुल्क शिक्षा सहित अन्य सुविधाएं

वंचित तबके के बच्चों को जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए भरसक प्रेरित करता हूं। बच्चे बात मानते भी हैं। मन लगाकर पढ़ते हैं और तरक्की करते हैं। स्कूल का दायरा अब बढ़ गया है, लेकिन हर साल 100 बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा, किताबें, मेडिकल सुविधाएं व जरूरी संसाधन अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराए जाते हैं। ऐसे हुई शुरुआत: बकौल हाकम सिंह, अनपढ़ माता-पिता और गरीबी की वजह से पढ़ाई न कर पाने और अनपढ़ होने का दर्द मुझे हमेशा सालता रहा।

दो एकड़ जमीन पर स्कूल स्थापित किया

पढ़े-लिखे लोगों के बीच खड़े होने पर डर लगता था। लेकिन पत्नी एमए-बीएड मिल गई। मेरी दिली ख्वाहिश थी कि गांव का कोई और बच्चा गरीबी की वजह से अनपढ़ ना रहे। मैंने गांव की पंचायत से बात कर 1982 में गांव की धर्मशाला में एक कक्षा का स्कूल स्थापित कर दिया। पत्नी पढ़ाने लगी। बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तो अपनी दो एकड़ जमीन पर स्कूल स्थापित कर दिया।

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