GEM रिपोर्ट: कोयला छोड़कर प्रतिवर्ष 19.5 बिलियन डॉलर बचा सकता है भारत, साफ ऊर्जा की प्रगति में कहां खड़ा है देश
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की रिपोर्ट में सामने आया है कि अगर वर्ष 2025 तक भारत ने 76 गीगावॉट यूटिलिटी स्केल सौर और पवन बिजली उत्पादन क्षमता को विकसित कर लिया तो इससे प्रतिवर्ष 19.5 बिलियन डॉलर (1588 बिलियन रुपए) की बचत हो सकती है. ग्लोबल सोलर पावर ट्रैकर और ग्लोबल विंड पावर ट्रैकर के आंकड़ों के मुताबिक, संभावित रिन्यूबल ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत को टॉप 7 देशों में स्थान दिया गया है.
आंकड़ों के मुताबिक, अगर ऐसा होता है तो प्रतिवर्ष भारत तकरीबन 78 मिलियन टन कोयले के इस्तेमाल को टाल सकता है. जिससे हर साल भारत की बचत और भी ज्यादा हो सकती है. लेकिन, कोयले को हटाकर साफ ऊर्जा को अपनाया जाना भारत की आकांक्षाओं से मिलता हो. दरअसल, भारत में वर्ष 2030 तक 420 गीगावॉट सौर एवं पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता जोड़ने का लक्ष्य तय किया है. इससे कोयले से बनी बिजली का उत्पादन टालने से 58 बिलियन डॉलर से ज्यादा की बचत होगी और वर्ष 2030 तक कुल बचत 368 बिलियन डॉलर हो जाएगी.
इसके अलावा, अपने सभी पूर्व निर्धारित सौर एवं पवन ऊर्जा परियोजनाओं को भारत लाइन पर ले आता है तो मोटे तौर पर इसकी लागत 51 बिलियन डॉलर होगी. साथ ही, 19.5 बिलियन डॉलर की प्रतिवर्ष बचत से भारत इस लागत को महज ढाई वर्षों में वसूल कर सकता है. वैश्विक स्तर पर संभावित संपूर्ण यूटिलिटी स्केल सोलर पावर में भारत 5 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है. इस मामले में चीन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से पीछे भारत है. इसके अलावा पवन ऊर्जा की संभावित क्षमता के मामले में भारत दुनिया में 17वें पायदान पर है.
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की रिपोर्ट पर ग्लोबल विंड पावर ट्रैकर के परियोजना प्रबंधक श्रद्धेय प्रसाद ने कहा
‘धन बचाएं, प्रदूषण में कमी लाएं’ भारत का कोयला छोड़कर साफ ऊर्जा को अपनाना जीत का एहसास दिलाता है. यह वर्ष 2070 तक भारत को नेट जीरो उत्सर्जन वाला देश बनाने के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक संभावना पूर्ण कदम है. कोयले को तिलांजलि देकर भारत अधिक धनी और ज्यादा साफ सुथरा बनेगा. सौर तथा वायु ऊर्जा की लागतों में लगातार गिरावट आ रही है और जीवाश्म ईंधन की कीमतों पर गौर करें तो रिन्यूबल ऊर्जा नए बिजली ढांचे के निर्माण के लिए एक बेहतर विकल्प पेश करती है.’
सर्वाधिक संभावना पूर्ण रिन्यूबल ऊर्जा वाले शीर्ष 10 देश…
1. चीन (387,258 मेगा वाट)
2. ऑस्ट्रेलिया (220,957 मेगा वाट)
3. ब्राजील (217,185 मेगा वाट)
4. अमेरिका (204,585 मेगा वाट)
5. वियतनाम (93,585 मेगा वाट)
6. मिस्र (81,616 मेगा वाट)
7. भारत (76,373 मेगा वाट)
8. दक्षिण कोरिया (76,153 मेगा वाट)
9. ताइवान (67,296 मेगा वाट)
10. जापान (55,147 मेगा वाट)
गौरतलब है कि 75 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में कहा था कि भारत ने वर्ष 2047 तक ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा है. इस भाषण के 3 महीने बाद ही नवंबर, 2021 में ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 में भारत ने वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की घोषणा की. ग्लास्गो में भारत ने यह भी लक्ष्य रखा कि वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावाट किया जाएगा.
एक तरफ भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का बड़ा हिस्सा पेट्रोलियम और गैस के रूप में विदेश से आयात करता है, तो दूसरी तरफ विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के सबसे प्रदूषित 30 शहरों में से 22 भारत में हैं. इन दोनों तथ्यों को एक साथ देखने से यह स्पष्ट होता है कि भारत को वर्ष 2047 तक ऊर्जा में आत्मनिर्भरता और वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ने की कितनी जरूरत है. ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि साफ ऊर्जा की ओर बढ़ने के लिए कुछ योजनाएं (जो केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में बनाईं) उनमें कितनी प्रगति हुई है.
सौर ऊर्जा…
वर्ष 2015 में भारत ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा था, जिसमें 100 गीगावाट के साथ सबसे बड़ा हिस्सा सौर ऊर्जा का था. तब से लेकर भारत ने सौर ऊर्जा स्थापना की दिशा में कई कदम उठाए. जहां वर्ष 2015 में भारत की पहल पर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत हुई, वहीं वर्ष 2020 में पीएम मोदी ने एशिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क राष्ट्र को समर्पित किया.
वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा स्थापना का जो लक्ष्य रखा गया था, उसमें से 40 गीगावाट ऐसे सौर पार्कों से प्राप्त की जानी थी, जिनकी स्थापना ‘सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास हेतु योजना’ के तहत होनी थी. हालांकि, भारत सरकार ने अब तक कुल 57 ऐसे सौर ऊर्जा पार्कों को मंज़ूरी दी है, जिनकी कुल क्षमता 39.2 गीगावाट है. लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ 9 सोलर पार्क चालू हो पाए हैं, जिनकी कुल क्षमता 8.08 गीगावाट है.
मार्च, 2021 में संसदीय स्थायी समिति एक रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना की गति पर असंतोष व्यक्त करते हुए लिखा था कि वर्ष 2015-20 से अधिक की अवधि के दौरान (नवीकरणीय ऊर्जा) मंत्रालय केवल 8 सौर ऊर्जा पार्क ही पूर्ण रूप से विकसित कर सका. सौर ऊर्जा से जुड़ी एक और योजना पीएम-कुसुम यानि ‘प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान’ है, हालांकि इसकी चर्चा बहुत कम ही होती है.
बायो गैस…
75वें स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी ने अपने भाषण में ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने की दिशा में गैस-आधारित अर्थव्यवस्था बनाने और देशभर में सीएनजी-पीएनजी के नेटवर्क का विस्तार करने की भी बात की थी. इसी संदर्भ में 1 अक्टूबर, 2018 में संपीडित जैव-गैस या कंप्रेस्ड बायोगैस का उत्पादन और उपलब्धता बढ़ाने के लिए सतत (सस्टेनेबल अल्टर्नेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन) योजना शुरू की गई थी. इस योजना का उद्देश्य कृषि अपशिष्ट, नगर पालिका ठोस अपशिष्ट आदि का उपयोग करके बायो गैस का उत्पादन करना था.
इस योजना के तहत वर्ष 2023 तक 5 हजार संपीडित बायो गैस (सीबीजी) संयंत्र स्थापित किए जाने हैं. लेकिन, योजना की प्रगति रिपोर्ट बहुत खराब है. संसद में 19 दिसंबर, 2022 को पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक सिर्फ 40 प्लांट लगाए गए हैं. अब सवाल ये है कि वर्ष 2023-24 तक 5 हजार प्लांट लगाने का लक्ष्य कैसे पूरा होगा?
गोबर धन…
गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन यानि गोबर धन योजना की घोषणा वर्ष 2018-19 के बजट में की गई थी और इसका शुभारंभ 30 अप्रैल, 2018 को हरियाणा के करनाल में किया गया था. गोबर धन योजना का उद्देश्य मवेशियों के गोबर और कृषि से निकले कचरे आदि से बायो गैस का उत्पादन करके गावों को स्वच्छ बनाना था, जिसके कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिल सके. गोबर धन योजना के तहत वर्ष 2018-19 में ही 700 प्लांट लगाने का लक्ष्य था. हालांकि, योजना को शुरू हुए करीब 5 वर्ष पूरे हो गए हैं, जिसके अंतर्गत लेवल 534 प्लांट ही लग पाए हैं.
बता दें दुनिया में सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में से भारत एक है. जिसके तहत ऊर्जा की मांग में भी साल दर साल वृद्धि होती रहेगी. इसलिए भारत के लिए वर्ष 2047 तक ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनना और वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करना है. ये दोनों ही लक्ष्य बहुत बड़े हैं.