गांधी जयंती: जानें बापू के जीवन की जानकारी, करते थे इन कारों की सवारी
पूरे भारत में आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153वीं जयंती मनाई जा रही है. देशभर में हर साल 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है. गांधी जी आजादी की लड़ाई में साल 1915 से सक्रिय हुए और आजादी की जंग उसके कई दशकों पहले से चल रही थी. लेकिन, गांधी जी की भागीदारी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल बजा दिया. भारत को आजादी दिलाने के लिए बापू ने पूरे भारत का भ्रमण किया. आज हम आपको उन गाड़ियों के विषय में बताएंगे, जिनकी सवारी बापू करते थे.
पैकर्ड 120
इस कार के मालिक गांधी जी के मित्र घनश्यामदास बिड़ला थे. इस कार को साल 1940 में खरीदा गया था. गांधी जी सबसे ज्यादा इसी की सवारी करते देखे जाते थे. यह कार दिल्ली से रेजिस्टर्ड थी और साल 1940 में बापू द्वारा की गयी थी.
फोर्ड मॉडल A
यह कार साल 1927 की मॉडल थी. यह एक कनवर्टिबल कार थी और बापू ने अपनी रांची से लेकर रामगढ़ तक की यात्रा इसी कार में की थी. इस कार को अभी भी काफी संभाल कर रखा गया है. इस कार को रांची के राय साहब लक्ष्मी नारायण ने इम्पोर्ट कराया था.
फोर्ड मॉडल T
गांधी जी ने इस कार की सवारी साल 1927 में उत्तर प्रदेश में बरेली सेंट्रल जेल से रिहा होने के बाद की थी. इस कार के मालिक से जुड़ी हमारे पास कोई जानकारी मौजूद नहीं है. इस कार को आज भी रैली के दौरान सड़कों पर देखा जा सकता है.
स्टडबेकर प्रेसिडेंट
इस कार के फर्स्ट जनरेशन को साल 1926 से लेकर 1933 के बीच बनाया गया था. इस कार का इस्तेमाल महात्मा गांधी ने अपने कर्नाटक दौरे के दौरान किया था. इस कार के मालिक से जुड़ी कोई भी जानकारी हमारे पास नहीं है.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी की भूमिका ने भारतीय समाज और राष्ट्रीयता को नए सिरे से चलने में मदद की. उनकी अहिंसक नीतियों और नैतिक आधारों ने अधिक से अधिक लोगों को आंदोलन से जोड़ा. उन्होंने सभी धर्मों को एक समान मानने, सभी भाषाओं का सम्मान करने, महिलाओं और पुरुषों को बराबर का दर्जा देने और दलितों-गैर दलितों के बीच की युगों से चली आ रही खाई को पाटने पर जोर दिया.
2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत के दम पर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया. उन्हीं के विचारों के सम्मान में 2 अक्टूबर को हर साल अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस भी मनाया जाता है. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की तरह इस दिन राष्ट्रीय पर्व का दर्जा दिया गया है. बापू अपने जन्मदिन पर पूरे दिन मौन व्रत करते थे. साल 1918 में गांधीजी ने अपना जन्मदिन मनाने वालों से कहा था कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी कसौटी होगी कि मैं जन्मदिन मनाने लायक हूं कि नहीं.
स्कूल के समय में गांधी जी अंग्रेजी में अच्छे विद्यार्थी थे, जबकि गणित में औसत व भूगोल में कमजोर थे. उनकी लिखावट बहुत सुंदर थी. उन्हें 5 बार नोबल पुरस्कार के लिए सम्मानित किया गया था. साल 1948 में पुरस्कार मिलने से पहले ही उनकी हत्या हो गई. राम के नाम से उन्हें इतना प्रेम था की अपने मरने के आखिरी क्षण में भी उनका आखिरी शब्द राम ही था.
यह तो सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि उन्हें यह उपाधि किसने दी थी? महात्मा गांधी को पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था. 4 जून, 1944 को सिंगापुर रेडिया से एक संदेश प्रसारित करते हुए ‘राष्ट्रपिता’ महात्मा गांधी कहा था.
गांधीजी ने 15 अगस्त, 1947 के दिन 24 घंटे का उपवास रखा था. उस वक्त देश को आजादी तो मिली थी, लेकिन इसके साथ ही मुल्क का बंटवारा भी हो चुका था. पिछले कुछ महीनों से देश में लगातार हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगे हो रहे थे. इस अशांत माहौल से गांधीजी काफी दुखी थे.
मगर, आज हम आज़ाद भारत में रह रहे हैं तो इस देश का नागरिक होने पर हमारी ये जिम्मेदारी बनती है की हम बापू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को उनके सपनों का भारत बनाकर दें. सामाजिक एकता बनाये रखें और जाति-धर्म पर बांटने की बजाए एकजुट होकर रहे. सिर्फ देश में प्रेम और सौहार्द बना रहेगा बल्कि देश का विकास भी होगा.
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