समाचार पत्रों की स्वतंत्रता

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समाचार पत्रों की स्वतंत्रता का विषय किसी भी देश की राजनीतिक व्यवस्था का अभिन्न अंग है। लोगों के जानने का अधिकार एक स्वतंत्र प्रेस पर अवश्य निर्भर होता है। लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि पत्रों का काम केवल दूसरों के क्रिया कलापों पर अपना निर्णय देना है। समाचार पत्र जन सम्पर्क के साधनों में से एक है, आधुनिक समाज में विकसित समाचार पत्रों को जनसंपर्क कर्ता के रूप में प्रयोग किया जाता है। आवश्यक सूचना सेवा तथा संदेश देने का कार्य भी समाचार पत्रों के सहयोग से किया जाता है।

सीमाओं को तोड़ने पर जिम्मेदार कौन?

सवाल यह उठता है कि उन समाचार पत्रों के नीति को निर्धारित करने में कितना योगदान है। जब वे अपनी सीमाओं को तोड़ते हैं तो उस रोकने की जिम्मेदारी किस पर है। राज्य पर, शासन वर्ग पर, पाठकों पर अथवा न्यायालयों पर। वैसे अंतिम निर्णय समाज का ही होता है, कुछ देशों में स्वगठित प्रेस कौंसिलों की व्यवस्था है। यह इस दिशा में एक बहुत बड़ा प्रयोग है, क्योंकि इन परिषदों के पास केवल एक ही हथियार है और वह है गलत दिशा में जाने वाले पत्रों के खिलाफ प्रचार करना।

प्रेस परिषद

समाचार पत्रों के विकास को गति देने के लिए, उनकी बाधाओं को दूर करने के लिए आज विश्व में लगभग 125 से अधिक प्रेस परिषद है। जिनके विभिन्न प्रकार के संविधान व नियम हैं। इनमें से 17 सर्वगठित हैं जो अपने आप निर्णय ले सकते हैं और 19 ऐसी हैं जो किसी मामले को न्यायालय में ले जा सकती है। तथा पांच ऐसी परिषदें हैं जो गलत रास्ते पर जाने वाले समाचार पत्रों पर जुर्माना कर सकती है तथा उन्हें प्रेस-पासों को देने से मना कर सकती हैं। भारत में प्रेस परिषद को केवल नैतिक भर्त्सना करने का अधिकार है।

सफलता की संभावनाएं

जिन देशों में पूर्णत: लोकतंत्र की व्यवस्था है, वहां ऐसी परिषदों की सफलता की संभावनाएं भी अधिक हैं। लेकिन जिन देशों में सरकार का पत्रों पर कुछ अधिक दबाव है वहां और भी कड़ी व्यवस्थाएं हैं। जैसे संवाददाताओं को कार्य करने से रोक देने का अधिकार अथवा उस समाचार पत्र के प्रकाशन पर ही रोग लगा देना।

प्रेस परिषद के गठन का तरीका

प्रेस परिषद के गठन के तरीके भी अलग-अलग हैं। पांच परिषदें ऐसी हैं कि जिनके गठन के लिए उनके देश की सरकार ही उत्तरदायी है। इनमें भारत की प्रेस परिषद भी है। इनमें से अधिकतर परिषदों में पत्रकार, पत्रकार जगत से संबद्ध व्यक्ति तथा सामान्य जनता के प्रतिनिधि भी रहते हैं। इनमें से अधिकांश का आर्थिक अवलंब भी पत्रकारिता जगत ही है।

जनता का बढ़ता विश्वास

इस मामले पर गंभीरता से विचार करने के बाद ब्रिटेन के एक ऐसा प्रेस और स्टार समाचार पत्रों के संवाददाता क्लेमेन्ट जोन्स का कहना है कि प्रेस परिषदों पर आज प्रेस, जनता तथा शासन वर्ग का दिनों-दिन विश्वास बढ़ता जा रहा है। यह खुशी की बात है, क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता कब स्वच्छंदता में परिणित हो जाती है। इसका निर्णय करने वाली संस्था का निष्पक्ष होना जितना आवश्यक है, उतना ही उसका सभी को स्वीकार होना भी आवश्यक है।

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