फलों का ‘राजा’ इस बार हो सकता है पकड़ से दूर

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गर्मियों की शुरुआत हो गई है और लखनऊ की फिजाओं में  आम की भीनी भीनी खुशबू बिखर चुकी है। आम एक मात्र ऐसा फल है जो हर आम और खास व्यक्ति के दिलों पर राज करता है। देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी  के दीवानों की कमी नहीं है। गल्फ देशों में इसे नवाब के नाम से जाना जाता है।

आम

आम की पैदावार में सेंध लग सकती है

लेकिन इस साल दशहरी आम के जायके के लिए लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। कारण ये है कि फसलों में अधिकता से इस्तेमाल हो रहे कीटनाशक इस बार दशहरी आम को मुश्किलों में डाल सकते हैं। तो, दूसरी तरफ शहर में आई आंधी ने आम प्रेमियों के अरमानों पर पानी फेर दिया है।

दशहरी

आंधी और कीटनाशको की अधिकता से हो रहे इस्तेमाल से आम की पैदावार में सेंध लग सकती है। दरअसल आम को बचाने के  लिए जिस कीटनाशक का अधिकता से प्रयोग किया जा है उससे शत्रु कीट की जगह मित्र कीट को हानि पहुंच रही है। आमतौर पर आम की फसल एक साल कम होती है तो दूसरे साल अधिकता से होती है। इसलिए इस साल कयास लगाए जा रहे थे  कि भरपेट आम खाने को मिलेगा।

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मतलब आम की पैदावार की भरमार होगी। लेकिन, आंधी ने सारे किये कराये पर पानी फेर दिया है। जानकारों की मानें तो इस साल आम की पैदावार थोड़ी कम रहेगी।

मलिहाबाद

जिला हॉर्टिकल्चर, लखनऊ के वैज्ञानिक डा. डी के वर्मा ने बताया कि पिछले साल जो फसल की पैदावार थी वह प्रति पेड़ औसतन 1.2 क्‍विंटल था। जबकि इस साल बौर की स्थिति काफी अच्छी होने के चलते कयास लगाये जा रहे थे कि  आम की खूब पैदावार होगी। लेकिन आंधी ने किये कराये पर पानी फेर दिया। रही सही कसर अधिकता से हो रहे कीटनाशक पूरी कर रहे हैं। फिर भी, पिछले साल के मुकाबले पैदावार इस साल थोड़ी बेहतर हो सकती है। इस साल औसतन प्रति पेड़ 1.3 क्विंटल की उम्मीद लगाई जा रही है।

इतने क्षेत्रफल में होती है पैदावार

महिलाबाद के 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम की पैदावार होती है।

दो सौ साल पहले आम की पैदावार की हुई शुरुआत

बताया जाता है कि मलिहाबाद में दो सौ साल पहले अफगानिस्तान के खैबर पास से आये आफरीदी पठान लोगों ने सबसे पहले आम का पौधा लगाया था। इसके बाद से आम का स्वाद लोगों की जुबां पर चढ़ा तो अभी तक सभी के सिर चढ़ कर बोल रहा हैं। मलिहाबाद में आम की करीब सात सौ प्रजातियां पाई जाती हैं।

इन वजहों से हो सकती हैं कमी

जहां पर कीटनाशकों का प्रयोग ज्यादा किया गया है, वहां मित्र कीट भी नष्ट हो गए हैं। मित्र कीटों के मरने से शत्रु कीट लगातार पनप रहें हैं और फल को ज्‍यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं।

कई जगह किसानों ने दो तीन कीटनाशक मिलाकर प्रयोग किए। बाजार में मिलावटी कीटनाशकों के कारण भी शत्रु कीट नहीं मरे और किसान लगातार उसका प्रयोग करते रहे।

लगातार कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों की प्रतिरोधक क्षमता  भी बढ़ गई है।, कीटनाशकों का उनपर जल्दी असर नहीं हो रहा है।

देखा जा रहा है कि जहां बागवानी होती है वहीं लोगो ने अन्य फसलें करना छोड़ दिया हैं। इससे मित्र कीट खत्म हो रहे हैं।

इन उपायों से हो सकता है बचाव

आम  के आसपास सरसों, गेहूं और अन्य फसलें भी जरुरी है। उनमे कई मित्र कीट होते हैं। ये आम का बचाव करते हैं।

वैज्ञानिकों से सलाह लेकर ही कीटनाशकों का छिड़काव करें।

किसान सस्ते के चक्कर में कई बार मिलावटी कीटनाशकों का भी इस्तेमाल करते हैं। इससे कीट तो मरते नहीं फसल को नुकसान अलग पहुंचता है। फसल को शत्रु कीटों से बचाने के लिए जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करें और मित्र कीटों के लिए वातावरण बनाएं।

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