गांवों में खो रही खेती, जमीनें छोड़कर शहरों को भाग रहें किसान

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भारत किसान प्रधान देश है, फिर भी भारतीय किसानों की स्थिति बहुत खराब है। लगभग 80% किसान आबादी में वे किसान शामिल हैं, जिनके पास 1-हेक्टेयर से कम या 1-2 हेक्टेयर भूमि है या फिर इससे भी है। भूमि का बड़ा भाग होने के बाद भी औसतन लोग ही आज खेती कर रहे हैं। 60 फीसदी किसान या उनके बच्चे खेती उपयुक्त भूमि को खाली छोड़कर शहरों की ओर जा रहे हैं। किसानों का कहना है कि खेती में मुनाफा नही पैदा हो रहा है। कुछ किसानों का यहां तक कहना है कि वो आगे खेती के व्यवसाय नहीं बढ़ाएंगे और अगली पीढ़ी को नौकरी करने के लिए प्रेरित करेंगे। इस तरह आज गांवों से युवा तेजी से शहरों की तरफ भाग रहे हैं। यहीं नहीं, युवाओं के साथ-साथ कुछ किसान भी आय के लिए शहरों में जाकर मजदूरी करने को मजबूर हैं…

यह बड़े ही दुख की बात है कि भारत में किसान की छवि जिस प्रकार प्रस्तुत की जाती है, वह मन को चोट करने जैसी होती है। देश आज भी खेती-किसानी पर निर्भर है। फिर भी वर्तमान में किसान खुद की छवि को आधुनिक समाज में उपयुक्त या निम्नस्तरीय समझते हैं। आमतौर पर किसान शब्द सुनते ही लोगों के मन में अनपढ़, गरीब, निम्न वर्ग जैसे विचार आ जाते हैं। जो अन्नदाता कहा जाने वाले किसान भीतर ही भीतर मारती जा रही है। किसानों की यही कुंठा गांवों से खेती को विलुप्त कर रही है।

जमीनें छोड़ शहर भाग रहें किसान

उत्तर प्रदेश में खेती सबसे अधिक होती है। फिर भी छोटे गांवों से खेती बिलकुल ही विलुप्त होती जा रही है। किसानों के घरों में अब खेती की बातें तक नहीं होती, काम-धंधे के लिए किसान भी नये विकल्प तलाशने लगे हैं। खेती न करने के पीछे किसानों की अपनी अलग-अलग वजह हैं। किसी के पास भूमि तो  पर्याप्त है, लेकिन उपज व मुनाफा नहीं होने के चलते खेती में पैसा और समय नही बर्बाद कर रहे हेैं। वहीं कुछ ऐसे किसान भी हैं, जिनके पास खेती के लिए भूमि तो है लेकिन वह बंजर हो चुकी है। जब किसानों से खेती नही करने की वजह पूछी गई तो किसानों ने बताया कि  खेती को सबसे अधिक मौसम ने नुकसान पहुंचाया है। 15 मार्च से अब तक 01 लाख 75 हजार 523 किसानों की फसल इससे बर्बाद हो गयी है। प्रभावित रकबा की बात करें तो 35 हजार 479.74 हेक्टेयर में उगायी गयी विभिन्न फसलें प्रभावित हुई हैं।

 

खेती छोड़ने की मुख्य वजह 

  1. औसत खेत का आकार, खराब बुनियादी ढांचा, कृषि प्रौद्योगिकियों का कम उपयोग और सर्वोत्तम कृषि तकनीक, अधिक उर्वरक और निरंतर कीटनाशकों के उपयोग के कारण मिट्टी की उर्वरता में कमी, कम कृषि उत्पादकता के प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
  2. वर्तमान समय में थोड़े बहुत छोटे किसान जो खेती में किस्मत आजमा भी रहें हैं तो छुट्टा पशू फसलों को बर्बाद कर दे रहे हैं। हाल ही में मितौली ग्राम में छुट्टा पशुओं से परेशान किसानों ने तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन भी किया। किसानों ने बताया कि ग्राम पंचायत में आवारा पशुओं की संख्या दो सौ के करीब है। इस संबंध में उन लोगों ने कई बार शिकायत भी की लेकिन इसका संज्ञान नहीं लिया गया। उन्हें मजबूरन तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन करना पड़ रहा है।
  3. आमतौर पर किसान कर्ज में डूबते जा रहे हैं।  मुआवजे के लिए फसल की बर्बादी का पैमाना 50 फीसदी से घटाकर एक तिहाई जरूर कर गी गई है, लेकिन कृषि भूमि का आँकड़ा घटा दिया है। जिससे किसानों की उपज प्रभावित हुई है। विपदा में किसान ने मड़ाई करके जो अन्न निकाला है, उसका खरीददार कोई नहीं है।

76 फीसदी किसानों ने छोड़ी खेती

जब हमने किसानी पर आधारित युवाओं से बात की तो पता चला कि युवा खेती छोड़कर कुछ भी करना पसंद कर सकते हैं, लेकिन खेती में समय नहीं बर्बाद करना चाहते हैं। 18 राज्यों के 5,000 कृषक परिवारों के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 76% किसान खेती के अलावा कुछ भी करना पसंद करेंगे। इनमें से 61% किसान बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और करियर के अवसरों के कारण शहरों में काम करना पसंद करेंगे। अधिकांश किसानों ने आवर्ती नुकसान की सूचना दी। 70% ने संकेत दिया कि बेमौसम बारिश, सूखा, बाढ़ और कीड़ों के प्रकोप के कारण उनकी फसलें खराब हो गईं।

युवाओं को नही है खेती में रुचि

अगर युवाओं की बात करें तो आजकल के युवा शिक्षित हो रहें हैं। पहले के अपेक्षा आजकल युवा ज्यादे पढ़े लिखे हो गए हैं। पढ़ लिख कर ये शहरों की ओर चले जाते हैं, नौकरी करते हैं, बिज़नेस करते हैं। किसान भी जी तोड़ मेहनत कर के अपने बच्चों को पढ़ाता लिखाता है ताकि वो आगे चलकर कोई जॉब करे या बिजनेस करे। हालांकि, युवा शिक्षित हैं तो उन्हें भली भांति पता है कि खेती का हमारे जीवन में कितना महत्व है। बावजूद इसके, वो खेती को उनकी तरक्की का अभिशाप समझने लगे हैं। किसान भी युवा पीढ़ी को इसी दिशा में ढकेल रहे हैं।

खेती न करने पर युवाओं से संवाद..

एक युवक ने कहा कि फैक्ट्री में काम कर रहे हैं। खेती नहीं की क्योंकि  घरवाले बोलते हैं कि खेती ही करनी है तो इतना पढ़ने की क्या जरूरत थी। अन्य युवक ने बताया कि गांव में खेती करूंगा तो शादी नही होगी। आजकल शादी के लिए नौकरी करना जरूरी है।

खेती में संलग्न किसान हो रहें गरीब

एक  रिपोर्ट के अनुसार, खेती कर रहें मध्यमवर्गीय किसान भी अब गरीबी रेखा में आ रहे हैं। किसान बड़े चाव से खेतों में फसल उगाता है और उनके तमाम सपनों के बीज फसल के रूप में उगते हैं। मगर वब भी कभी-कभी मौसम की मार से मिट्टी में मिल जाती है। किसानों को फसल खराब होने पर सरकारी तरफ से मुआवजे दिए जाते हैं, लेकिन वह राशि भी केवल भरपाई के लिए होती है।

आपदा में किसान के पास कोई विकल्प नहीं

तीन-चार वर्ष के अन्तर पर अतिवृष्टि और ओलावृष्टि की स्थिति आती है। सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है। ऐसी विपदा में वह किसानों को उनके हालात पर छोड़ देती है। थोड़ा-बहुत मुआवजा देकर सरकारें इन किसानों के साथ अत्याचार ही करती हैं। अब यह भी किसी के छिपा नहीं है कि मुआवजा बाँटने में कितना भ्रष्टाचार होता है। मुआवजे की राशि न तो पर्याप्त होती है और न सही हाथों तक पहुँचती है। औपनिवेशिक भारत में किसान कर्ज के बोझ से और कभी प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपनी जमीन से बेदखल होकर मजदूर बनने के लिए अभिशप्त था। आज तो उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा है।

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