Kargil Vijay Diwas: 8 गोलियां लगने के बाद भी काशी के जांबाज जवान ने फतह किया था जुबार हिल

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आज पूरा देश कारगिल युद्ध का विजय दिवस मना रहा है. 20 साल पहले आज ही के दिन भारतीय जवानों ने कारगिल को दुश्मन देश पाकिस्तान के सैनिकों से आजाद कराया था. आज दुनिया के सबसे कठिन युद्ध कारगिल युद्ध का विजय दिवस पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. पाकिस्तानी सैनिक पहाड़ी से गोलियाँ बरसा रहे थ. जुबार हिल पर कब्ज़ा करने के लिए काशी के बीर जवान अलीम अली को एक टुकड़ी के साथ भेजा गया था. जुबार हिल पर विजय के दौरान दुश्मन की ओर से भीषण गोलाबारी की जा रही थी. अलीम अली के नेतृत्व में सेना आगे बढ़ रही थी और साथियों के साथ 21 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित जुबार हिल पर तिरंगा फहराया. पाकिस्तानी सेना से युद्ध के दौरान उन्हें सीने, घुटने, कमर और शरीर के अन्य हिस्सों में 8 गोलियां लगीं.

वाराणसी के चौबेपुर क्षेत्र के सारसौल गांव के रहने वाले 22 ग्रेनेडियर्स के हीरो रहे अलीम अली 1990 में सेना में शामिल हुए थे. जुलाई 1992 से सितंबर 1995 तक वह कश्मीर में ‘ऑपरेशन रक्षक’ में शामिल रहे. 7 जून 1999 को जब पाकिस्तान कारगिल में घुस गया तो आलिम अली को कारगिल में युद्ध लड़ने के लिए भेजा गया. कारगिल युद्ध के दौरान विशेष कार्य के लिए कई पदक प्रदान किये गये हैं. कमरे की दीवारें बयां करती हैं वीरता की कहानी दीवारों पर लटके मेडल वीरता की कहानी बयां कर रहे हैं. एक साधारण परिवार से निकले आलिम अली ने भारतीय सेना में एक खास मेडल जीता.

काशी के दूसरे सिपाही अजय सिंह ने अदम्य साहस का परिचय दिया था…

कारगिल युद्ध के दौरान राजपूताना रेजिमेंट को दो पहाड़ियों को जीतने की जिम्मेदारी दी गई थी. राजपूताना रेजिमेंट ने माउंट टोलोलिंग और टाइगर हिल पर कब्ज़ा छुड़ाने के लिए अपने 10 सैनिक खो दिए. जिसके बाद दोनों पहाड़ियों पर कब्ज़ा करने की जिम्मेदारी अजय सिंह और उनके साथियों के कंधों पर सौंपी गई. वीर जवानों ने जमकर फायरिंग करते हुए टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया. लेकिन इस मारपीट में अजय सिंह के पेट में गोली लग गई, जिसके बाद वह वहीं बेहोश हो गए और करीब 18 घंटे तक वहीं पड़े रहे. जिसके बाद पेट्रोलिंग टीम ने हमें ढूंढ लिया और अस्पताल में भर्ती कराया. लंबे इलाज के बाद अब अजय सिंह ठीक हो गए हैं. अजय सिंह ने वाराणसी के पहड़िया में अपना घर बनाया है और अपने छोटे भाई, पत्नी पूनम सिंह, 2 बेटों अभय प्रताप, अमन प्रताप और बेटी छोटी सिंह के साथ रहते हैं.

अजय सिंह का छलका दर्द, न मिली सरकारी नौकरी, न मिला कोई सम्मान…

अदम्य साहस दिखाने वाले देश के सच्चे सिपाही अजय सिंह को पेट में गोली लगने के बाद भी न तो सरकारी नौकरी मिली है और न ही किसी तरह का सम्मान मिला है. सेना से मिलने वाली 26000 रुपये की पेंशन से घर चलता है. अजय सिंह के मुताबिक, कई बार समाज के कुछ लोगों द्वारा उन्हें सम्मानित भी किया जाता है. लेकिन अभी तक उन्हें सरकार की ओर से कोई सम्मान नहीं मिला है. अजय सिंह से बात करने पर उन्होंने बताया कि आज भी उनके सीने में देशभक्ति का वो जज्बा कायम है जो कारगिल युद्ध के समय था. अब अगर आपको मौका मिले तो आप बॉर्डर पर जाकर दुश्मनों के दांत खट्टे कर सकते हैं.

अजय सिंह 1993 में सेना में भर्ती हुए थे…

कारगिल के हीरो अजय सिंह 1993 में सेना में भर्ती हुए. दिल्ली कुपवाड़ा और ग्वालियर में उनकी पोस्टिंग रही. इसी बीच उनको कारगिल वार के लिए बुला लिया गया। कुपवाड़ा में आतंकियों से मोर्चा लेते हुए अजय सिंह की टीम ने 13 आतंकियों को मार गिराया. 20 मई को हमारी टीम कारगिल के लिए निकली थी. राजपूताना रेजीमेंट की टीम 10 जून की रात तोलोलिंग पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू की. अगले दिन दुश्मन से 1 किलोमीटर की दूरी पर हमारी टीम मौजूद थी. दोनों तरफ से भीषण फायरिंग हो रही थी हम लोगों ने 10 आतंकियों को मार गिराया 13 जून कि सुबह तो तोलोलिंग पहाड़ी ताना रेजिमेंट के कब्जे में आ गया. उसके बाद राजपूताना रेजीमेंट को द्रास सेक्टर भेज दिया गया. द्रास सेक्टर के घर टाइगर हिल थ्री टेंपल पर चढ़ाई के दौरान मेरे पेट में गोली लगी गोली लगने के बाद मैं बेहोश हो गया 8 घंटे बाद पेट्रोलिंग पार्टी के द्वारा मुझे अस्पताल में भर्ती कराया गया फोर्स आने के बाद मैं अपने आप को अस्पताल में पाया.

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