इमरजेंसी : जब जुबान पर पड़ा था डाका – भाग दो
साहित्यकारों, पत्रकारों की कलम हमेशा से विद्रोह की मशाल बनकर जली है। इमरजेंसी के उस दौर में कलम ने अपनी इसी कर्तव्य का पालन किया। वरिष्ठ पत्रकार व टीवी9 भारतवर्ष के न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा ने अपने पिता पं हनुमान प्रसाद शर्मा (मनु शर्मा) की लिखी पंक्तियों के जरिये इमरजेंसी को बयां करने का जतन किया है। उनके फेसबुक वाल से इमरजेंसी भाग दो।
पिता जी ने कहा इमरजेंसी लोकतांत्रिक इतिहास का काला पन्ना है। अब जुबान पर डाका डाला जाएगा। कलम कैद हो जाएगी। संकट मोचन छपेगा या नहीं यह सवाल था। उस रोज़ पूर्वान्ह में ‘जनवार्त्ता’ विशेष संस्करण निकाला, जो दोपहर ग्यारह बजे तक बाज़ार में आ गया।उसमें यह कविता छपी-
कौन जाने हमारी कलम,
कल से स्वच्छंद न रह जाए।
हमारी जुबान बंद हो जाए,
क्योंकि लोकतंत्र भस्म हो रहा है।
उसकी राख को नमस्कार,
चींटी के निकलते पांख को नमस्कार।
प्रजातंत्र के भटके राही को सलाम,
उगती हुई तानाशाही को सलाम।
— संकटमोचन
जब पत्रकारिता बनी बंधक-
देश में तानाशाही चस्पा हो गई। लोकतंत्र नजरबंद हो गया। सेंसरशिप लागू हुई।अख़बारों के दफ्तर में सरकारी अफ़सर खबरो को मंज़ूरी देता। पत्रकारिता बंधक बना ली गई। 26 जून को आसमान में बादल थे। दूसरे रोज़ यानी 27 जून के अख़बार के लिए पिता जी ने मौसम की ओर संकेत करते हुए यह संकटमोचन लिखा।
मौसम की आंखों में नमी हो गई है,
लगता है कोई गमी हो गई है।
मेरी टेबुल पर पड़ी,
संविधान की पुस्तक से,
बहुत सारे पन्नों की कमी हो गई है।
सेंसर के दफ्तर में कोहराम-
सेंसर की सख्त नजर के नीचे से यह रचना होशियारी से सरक आई और 27 जून के अंक में प्रकाशित हुई। सेंसर के दफ्तर में कोहराम मचा।बनारस में पत्र सूचना कार्यालय के प्रमुख शम्भूनाथ मिश्र थे। वे फ़िल्म अभिनेता संजय मिश्र और मेरे मित्र सुमित मिश्र के पिता थे।मिश्र जी की सूचना आई पंडित जी दबाब बहुत है। छोड़ दीजिए संकटमोचन को। सूचि बन रही है पर पिता जी ने उसे गम्भीरता से नहीं लिया। दूसरे रोज फिर अधरों पर अंगुली धरे हुए एक अजीब चुप्पी थी। इस सन्नाटे को तोड़ते कवि ने लिखा-
शोर मत मचाइए,
चुपचाप बगल से गुजर जाइए,
यह मत देखिए,
कि यहां क्या हो रहा है,
यह अस्पताल का,
इमरजेंसी वार्ड है,
यहां प्रजातंत्र सो रहा है।
सुभद्राकुमारी चौहान की पंक्तियों का सहारा-
इस कविता में जनभावनाओ के साथ जनाक्रोश प्रकट हो रहा था। इसलिए यह कविता सेंसर ने जब्त कर ली और अखबार को कड़ी चेतावनी भी मिली। पर खबरदार कविता को तो छपना नहीं था। नहीं छपी। लखनऊ में राज्य सरकार के सूचना विभाग में ठाकुर प्रसाद सिंह थे उनका भी संदेश आ चुका था अगले अंक के लिए एक दूसरी युक्ति निकाली गई। पुराने कवियों की पक्तियों की तलाश शुरू हुई। अगले अंक में श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की पंक्तियों का सहारा लिया गया। पहले दो पंक्तियां सुभद्रा कुमारी जी और अंतिम दो पंक्तियां इसमें अपनी तरफ़ से जोड़ी गईं थीं-
‘भूषण अथवा कविचंद नहीं,
बिजली भर दे वह छंद नहीं,
है, कलम बंधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताओ कौन हंत?
होगा इस गति का कहां अंत?’
पारिवारिक मजबूरियों के चलते संकटमोचन ने किया समर्पण-
इसके बाद तो कवि की गिरफ्तारी का बाकायदा फरमान जारी किया जानेवाला था। धरपकड़ हो इससे पहले अपनी पारिवारिक मजबूरियों के चलते संकटमोचन को समर्पण करना पड़ा। शायद उनके सामने हम दो भाईयो और बहनों की सूरतें रही होगी। की जेल गए तो उनका क्या होगा। उन्होंने कलम रख दी। पर ग्लानि और पीड़ा से आहत संकटमोचन ने अपनी वेदना फिर भी लिख डाली और इसी के बाद संकट मोचन स्थगित हो गया।
हम एक लचीली डाल हैं,
जिसे जिस ओर चाहो उस ओर झुका लो,
पर जिसे टूटना कतई पसंद नहीं।
आज उसी डाल में कांटे उग गए हैं,
जो हमारे चारों ओर छाए हैं
उन्हीं के बीच खिलकर
हम अपनी गंध खुद-ब-खुद पी रहे हैं।
शानदार मौतों के साए में
बेहयाई की जिंदगी जी रहे हैं।
किन्तु भीतर-ही-भीतर,
हमारी चिंतना टूटती है और भी टूटेगी।
हम एक कमान से बन जाएंगे।
हमारी अस्मिता बाण- सी छूटेगी।
वह घड़ी इनकलाब की होगी
अंधेर की घाटी से निकले
नए धधकते आफताब की होगी।
[bs-quote quote=”लेखक नेशनल चैनल टीवी9 भारत वर्ष के न्यूज डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभाते हुए लगातार साहित्य सृजन में लगे हुए हैं। यह लेख लेखक की फेसबुक वॉल से लिया गया है। ” style=”style-13″ align=”center” author_name=”हेमंत शर्मा” author_job=”ख्यातिलब्ध पत्रकार” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/05/hemant.jpg”][/bs-quote]
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