हाथी, घोडा, पालकी जय शिवाजी महाराज की
दुनिया का सबसे बडा ड्रामा है जाणता राजा
छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पर आधारित हाथी, घोडा व पालकी से सुसज्जित जाणता राजा नामक नाटक दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल ड्रामा है. बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे द्वारा लिखित नाटक जाणता राजा का मंचन इतना अद्भुत है कि इसे एक बार देखने वाले इसे बरसों बरस भूल नहीं पाते हैं. ‘जाणता राजा’ इसका मराठी नाम है जिसका मतलब होता है बुद्धिमान राजा यानी जो सब जानता हो और सबको जानता हो यानी जाणता राजा. भारत के 11 राज्यों के साथ-साथ अमेरिका व इंग्लैंड में इसका मंचन हो चुका है. इसमें तीन सौ कलाकार प्रतिभाग करते है. आपको बता दें कि 1985 में इसका पहला मंचन हुआ था. इसके बाद से यह लगातार चलता आ रहा है. नाटक की विशेषता और ताकत उसकी प्रस्तुति का माध्यम है.
रामराज जैसी थी शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था …
जाणता राजा नाटक के माध्यम से छत्रपति शिवाजी महाराज की विभिन्न व्यवस्थाओं और नीतियों को दिखाने का प्रयास किया गया है. इसमें भी सबसे महत्वपूर्ण रामराज की कल्पना थी. कथाकार के अनुसार शिवाजी के समय में भी घरों में ताले नहीं लगते थे. किसी में कोई भेदभाव नहीं था और राजा के लिए भूमि और प्रजा सबसे उपर थी. नाटक में यह दिखाया गया है कि माता जीजा किस प्रकार से हिद स्वराज और फिर रामराज के लिए हमेशा शिवाजी महाराज को प्रेरित करती हैं. कहानी के शुरू से लेकर अंतिम तक में हिद स्वराज और रामराज की बात है.
1985 में शुरु हुआ था मंचन…
आपको बता दें कि सर्वप्रथम इस ड्रामा का मंचन पुणे में 29 जुलाई 1922 को जन्मे इतिहासकार बाबा साहब पुरेंद्र ने मराठी भाषा में राजा शिवा जी छत्रपति किताब लिखी जिसमे शिवाजी के पूरे जीवन का सार है. उन्होंने भारत के हर उस किले का दौरा किया जहां शिवाजी कभी गए थे. शिवाजी के जीवन पर उन्होंने 1985 में जाणता राजा नाटक शुरु किया. भारत और विदेश में अभी तक 1200 बार इस नाटक का मंचन हो चुका है. 96 साल की उम्र में भी वे इस नाटक पर काम करते रहते हैं.
17वीं शताब्दी को दिखाया गया
नाटक में 17वीं शताब्दी को दर्शाया गया है. 1627 से 1680 के बीच छत्रपति शिवाजी राजे भोसले ने शासन किया. नाटक में उन्हें एक कुशल प्रशासक एवं रणनीतिकार दर्शाया गया है. वह उदार पंथनिरपेक्ष शासक थे. गुप्तचर प्रणाली के जरिए दुश्मन छावनी की टोह लेना उनकी खोज थी. अपने समय में उन्होंने पेड़ काटने पर रोक लगा दी थी. उन्हें भारतीय नौसेना का जनक एवं तकनीकविद् भी कहा जाता है.
शाहजी भोसले बीजापुर आदिलशाही सल्तनत के मनसबदार
इस घड़ी में जगत जननी माता तुलजा भवानी के रूप में जीजा बाई शाहजी भोसले के घर पत्नी रूप में आती हैं. जीजा के मन में तो स्वराज बसा होता है. शाहजी भोसले बीजापुर आदिलशाही सल्तनत के मनसबदार होते हैं. शाहजी दो बादशाहों को जीत कर रानी जीजाबाई से मिलने पहुंचते हैं. अपनी जीत के किस्से सुनाते हैं. जीजा कहती है राजे आपको मुगलों की गुलामी ने जकड़ रखा है. मराठाओं पर सैकड़ों वर्षों से ये मुगल जुल्म ढाते आए हैं. उनकी बहू बेटियों की इज्जत को तार तार कर के रख दिया है. कभी आपको क्रोध नहीं आता. शाहजी कहते हैं रानी साहिबा हमारी तलवार 12 पुश्तों से गुलामी कर रही है.हमें एक ऐसे योद्घा की जरूरत है जो स्वराज की पताका को पूरे देश में लहरा दे.
पहाड़ियों के बीच बसे शिवनेरी किले में जीजाबाई को शिवाजी के रूप में पुत्र की प्राप्ति होती है. शिवाजी के जन्म से पूरे किले में एक नई ऊर्जा दौड़ने लगती है. हर ओर मंगल ही मंगल होता है. शिवाजी की आंखों में जीजा अपना सपना पिरोने लगती है, स्वराज का सपना, अखंड भारत का सपना, मुगलों से छुटकारा पाने का सपना. जीजा बाई की देखरेख में शिवाजी का युद्घ प्रशिक्षण शुरु हो जाता है. उन्हें हर हथियार चलाने का तरीका बताया जाता है. शिवाजी को तलवार सौंपते हुए जीजा कहती हैं कि राजे आपकी तलवार में तुलजा भवानी का वास है. सहयाद्री पर्वत आपके चरणों में झुकेगा. सिंधु से लेकर कावेरी तक नदियां आपके चरण चूमेंगी. शिवाजी गनीमीकावा (छापामार युद्घ शैली) में कुशल हो जाते हैं.
मावला तराई घाटियों में माता तुलजा भवानी का आह्वान किया जाता है. गनीमीकावा से शिवाजी तोरणगढ़ किले पर कब्जा कर लेते हैं. अफजल खान, शाहिस्ता खान जैसे क्रूर मुगल सेनानायक शिवाजी का खात्मा करने के लिए आते हैं पर मावला की घाटियों में सभी को शिवाजी के सामने मुंह की खानी पड़ती है. मुगल बादशाह औरंगजेब से युद्घ करने पर शिवाजी को समझौते के तौर पर 23 किले वापस करने पड़ते हैं. शिवाजी को औरंगजेब से मिलने के लिए आगरा के किले में जाना होता है जहां शिवाजी को कैद कर लिया जाता है. कुछ महीनों की कैद के बाद एक मुगल सैनिक की मदद से शिवाजी औरंगजेब की सवा लाख की सेना को पराजित कर आंखों से ओझल हो जाते हैं. फिर शिवाजी स्वराज की पताका 84 बंदरगाहों और 42 दुर्गों पर फहराते हैं.
जाणताराजा में 300 लोगों की टीम …
सुप्रसिद्ध इतिहासविद् और लेखक बाबा साहब पुरंदरे ने कहा की शिवजी के जीवन पर आधारित इस ड्रामें में कुल 300 लोग काम करते है. उन्होंने बताया कि छत्रपति शिवाजी महाराज पर शोध करने और प्रसिद्ध नाटक ‘जाणता राजा’ की रचना के लिए के लिए उन्हें जाना जाता है. सभी कलाकारों को शिवजी के विभिन्न रूपों और उनके कार्यों के तरीके से मनाया गया है. क्यूंकि उनका शासन काफी लम्बा रहा है इसलिए सभी के पात्र अलग अलग है.
ड्रामा के लिए खर्च…
कार्यक्रम के संचालक का कहना है की कार्यक्रम में खर्च के लिए कई श्रेढियों में टिकट का प्रयोग किया जाता है. ड्रामा में खर्च हुए पैसे के बाद इसे निजी सेवा में न लगाकर सामाजिक संस्थानों में लगा दिया जाता है. ड्रामा देखने आने वालों के लिए विभिन्न डॉ से टिकट उपलब्ध कराये जाते है जिसमें 200 (विद्यार्थियों के लिए) 500, 1000, 2500, 10000 के सामान्य टिकट है.