350 रुपए तनख्वाह वाला ‘यादव सिंह’ ऐसे बना धनकुबेर

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काली कमाई से अकूत संपत्ति का मालिक बना नोएडा अथॉरिटी का पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह(Yadav singh) पर एक बार फिर से ईडी ने चाबुक चलाया है और उनकी पत्नी औऱ बेटे के नाम की करीब 14.48 करोड़ की संपत्ति अटैच कर ली है। यादव सिंह समेत उनके परिजनों की ईडी अबतक करीब 20 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति अटैच कर चुकी है। ईडी के अनुसार आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच के दौरान पता चला कि नोएडा औऱ नैनीताल में यादव सिंह की तीन प्रॉपर्टी हैं जिसकी कीमत लगभग एक करोड़ 28 लाख है। ईडी ने नोएडा के सेक्टर 63 में कुसुम गारमेंट्स प्राइवेट लि. के नाम से एक प्लॉट को भी अटैच कर लिया है।

350 रुपए की तनख्वाह से शुरु की नौकरी

1980 का दौर था जब यादव सिंह को महज 350 रुपए की तनख्वाह पर नोएडा अथॉरिटी में जूनियर इंजीनियर के पद पर तैनाती मिली। शुरुआती दौर में यादव सिंह अपने काम को लेकर कोई भी लापरवाही नहीं करता था और अपने अधिकारियों को कहने का कोई एक भी मौका नहीं छोड़ता था।

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बसपा की सरकार बनी तो यादव सिंह की किस्मत चमक गई

साल 1995 का दौर आया तो मानों यादव सिंह की किस्मत के ताले खुलने लगे और यहीं से यादव सिंह आसमान में अपनी उड़ान भरने लगा। क्योंकि 1995 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार यूपी में आ चुकी थी जिसका फायदा यादव सिंह को खूब मिला। दरअसल, यादव सिंह दलित परिवार से आता है। दलित होने के कारण जैसे ही बसपा की सरकार सत्ता में आई यादव सिंह को जेई से उठाकर नोएडा अथॉरिटी का प्रोजेक्ट इंजीनियर बना दिया गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि जब उसे प्रोजेक्ट इंजीनियर बनाया गया तो उस समय यादव सिंह के पास इंजीनियर की डिग्री तक नहीं थी। ये बात उसके द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट बीई-इलेक्ट्रिकल 4 से उजागर होती है। जिसमें उसने साल 1997 में जामिया मिलिया कॉलेज से डिग्री हासिल की थी।

हर तरफ था यादव सिहं का बोलबाला

यादव सिंह का असली सफऱ 2002 में शुरु हुआ और उसने अपने चारों तरफ एक ऐसी व्यव्स्था खड़ी कर दी जिससे उसका वर्चस्व हर तरफ बढ़ता चला गया। माना जाता है कि यादव सिंह मायावती के परिवार के काफी करीब था खासकर मायावती के भाई आनंद से। यादव सिंह का अधिकारियों में ऐसा रुतबा था कि कोई भी बड़ा से बड़ा अधिकारी भी बिना यादव सिंह के अनुमति के कोई काम आगे नहीं बढ़ाता था। हो भी क्यों न सूबे में बसपा की सरकार थी और यादव सिंह के एक इशारे पर अधिकारियों को इधर से उधर कर दिया जाता था।

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सरकार बदलते ही यादव सिंह का सूरज अस्त हो गया

लेकिन कहते हैं कि गलत रास्ते पर इंसान ज्यादा दूर तक नहीं चल सकता और वही यादव सिंह के साथ हुआ। 2012 में विधानसभा चुनाव हुए और अखिलेश के जनाधार ने मायावती को सत्ता से बेदखल कर दिया। सरकार बदली तो अखिलेश के नजदीकी अफसरों की तूती भी बोलने लगी। जो अधिकारी कल तक यादव के खौफ में जी रहे थे वो अब खुलकर सामने आ गए। यादव सिंह के सहयोगी इंजीनियर आरपी सिंह ने आईपीसी की कई धाराओं में यादव सिंह के नाम एफआईआर दर्ज करवा दी। मामला जैसे ही कोर्ट में पहुंचा यादव सिंह को सरकार ने पद से हटा दिया और जांच शुरु हो गई। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती गई वैसे-वैसे यादव सिंह की मुसीबतें भी बढ़ने लगीं।

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