आधार के लिए लिया जाने वाला डेटा फुलप्रूफ नहीं’

सुप्रीम कोर्ट में आधार मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि सरकार कई बार दावा कर चुकी है कि आधार के लिए लिए जाने वाले व्यक्तिगत डेटा को गोपनीय रखा जाएगा लेकिन हाल में देखने को मिला कि एक क्रिकेटर का डेटा लीक हो गया। सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन आधार मामले की सुनवाई हुई। अगली सुनवाई मंगलवार को होगी।

लेकिन आधार के लिए डेटा देने में परेशानी क्यों है?

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने जब दलील दी कि फिंगर प्रिंट फुलप्रूफ नहीं है तब जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि 4-5 साल में फिंगर प्रिंट पहचान योग्य नहीं रह जाता। साथ ही डेटा लीक पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक क्रिकेटर का डेटा लीक होने की बात सामने आई थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस ए.के. सिकरी और जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि आम आदमी जब बैंक अथवा अन्य जगहों पर जैसे मोबाइल कनेक्शन के लिए या फिर लैंड लाइन के लिए अप्लाई करता है तो तमाम दस्तावेज वहां मुहैया कराता है लेकिन आधार के लिए डेटा देने में परेशानी क्यों है?

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तब दीवान ने दलील दी कि जब हम बैंक अथवा अन्य किसी सर्विस प्रोवाइडर के सामने दस्तावेज या डेटा देते हैं तो हमें पता होता है कि हम किसे डेटा दे रहे हैं। लेकिन आधार के लिए जो प्राइवेट कंपनियां डेटा लेती है उनके बारे में आम आदमी जानते तक नहीं हैं। डेटा का इस्तेमाल कौन कर रहा है, कहां हो रहा है- हमें कुछ पता नहीं है। 2016 में राज्यसभा में सरकार ने खुद एक सवाल के जवाब में कहा था कि 34 हजार कंपनियों को ब्लैक लिस्ट किया गया है। ये वो कंपनियां हैं जो डेटा एकत्र करती थीं। दूसरी तरफ मीडिया में 12 सितंबर 2017 को खबर आई थी कि 49 हजार कंपनियों को ब्लैक लिस्ट किया गया है।

याचिकाकर्ता के फेवर में फैसला दिया गया था

ऐसे में समझा जा सकता है कि पूरी प्रक्रिया फुलप्रूफ नहीं है और सिस्टम जिस तरह से काम कर रहा है, वह खोखला है और संदेह के दायरे में है। उन्होंने यूएस के एक जजमेंट का हवाला दिया जिसमें जीपीएस का विरोध करने वाली याचिकाकर्ता के फेवर में फैसला दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि ये नागरिक और सरकार के रिलेशन को खराब करता है। निजता सबका विशेषाधिकार है, ये सिर्फ चंद लोगों का अधिकार नहीं हो सकता। दीवान ने दलील दी कि फिंगर प्रिंट के सत्यापन के लिए जिस मशीन का इस्तेमाल हो रहा है, वह बेहद घटिया है।

जब तक कि सहमति नहीं दी गई

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हाथ से काम करने वाले मजदूर आदि का फिंगर प्रिंट शायद काम न करे। तब दीवान ने कहा कि बिल्कुल सही है। वेलफेयर स्टेट में क्या बेहतर व्यवस्था के लिए राज्य सरकार लोगों को अधिकारों से वंचित कर सकती है। क्या यह कह सकती है कि फिंगर प्रिंट देने के बाद ही वेलफेयर योजना का लाभ मिलेगा। कैसे सरकार हमें कह सकती है कि अपनी जानकारी किसी और को दें। स्कीम गलत तरीके से डिजाइन किया गया है। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या प्राइवेट पार्टी और सरकार की एजेंसी में फर्क होगा। दीवान ने कहा कि कोई सवाल नहीं है कि इस तरह की चीजों को प्राइवेट हाथों में दिया जाए। दीवान ने कोर्ट को एक ऐफिडेविट दिखाया जिसमें शादी के लिए आधार के पंजीकरण के लिए कहा गया। ऐफिडेविट कहता है कि सॉफ्टवेयर तब तक पंजीकरण से मना कर रहा था जब तक कि सहमति नहीं दी गई।

nbt

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