लाख दुखों की एक दवा-डंड पेलो
पहले लोग दण्ड पेलते थे, अब पुश अप करते हैं। देसी नाम फूहड़ लगता है। उसका अंग्रेजीकरण कर दीजिए तो फबने लगता है। देसी मुर्गी विलायती बोल में हमारा भरोसा बढ़ता जा रहा है। डंड पेलने में लँगोट बांधिए, अखाड़ा तलाशिये पर पुश अप में उसकी कोई जरूरत नहीं, ट्रैक सूट पहनिए, बेडरूम से लेकर ड्राइंगरूम तक कहीं भी जुट जाइये। अतिरिक्त सुविधा यह कि अपने मोबाइल पर शूट कर वीडियो क्लिप टी वी चैनलों को भी भेज सकते हैं वो इन दिनों उसे खास तवज्जो दे रहे हैं। इसके कई और फायदे भी हैं, मसलन आपको पेट्रोल, डीजल, गैस की बढ़ती कीमतों की फिक्र नहीं सताएगी, बेरोजगारी की समस्या परेशान नहीं करेगी, बैंकों से पैसा लेकर भागने वालों पर चर्चा में आपका समय जाया होने से बचेगा, वगैरह-वगैरह। सेहत हजार नेमत। सेहत पर फोकस करिये मुल्क के तमाम मसायल खुद ब खुद सुलझ जायेंगे।
पुशअप मारिये मुद्दों पर सोचने की फुर्सत ही नहीं मिलेगी
पुशअप मारिये मुद्दों पर सोचने की फुर्सत ही नहीं मिलेगी। सोचने से चिंता बढ़ेगी,चिंता चिता समान होती है। तमाम टी वी चैनलों ने आपको चिन्ता मुक्त करने का बीड़ा उठा लिया है। वो जुटें हैं, पुशअप को पुश करनें में। वो दिखा रहे हैं, मंत्री से सन्तरी तक को पुशअप करते हुए ताकि आपका हौसला बढ़े। कभी-कभी तो लगता है कि पूरी सरकार डंड पेल रही है, माफ करिये पुशअप में लगी है। यही हाल रहा तो हमारे प्रधानमंत्री योग दिवस की तरह अंतरराष्ट्रीय पुशअप दिवस की घोषणा भी करवा सकते हैं।
बड़ा सर्कस है भाई
अपनी पुरानी थाती को इवेंट की थाली में सजा कर मार्केटिंग करने वाले महारथियों ने पहले योग को योगा बनाया अब डंड पेलने को पुशअप बनाकर पेश किया है। बड़ा सर्कस है भाई। जमाना पुराने माल को नए पैकेज में बेचने वालों का है। खोज खोज के निकाल रहे और बेच रहे। सारा किया धरा पी आर एजेंसियों का है। लोग पुराने वायदों की याद दिलाते हुए पूछ रहे क्या हुआ तेरा वादा, चार सालों का हिसाब मांग रहे, तरह तरह के सवाल खड़े कर रहे।
पुशअप का चैलेंज
अचानक नया चैलेंज सामने आ गया। पुशअप का चैलेंज। राठौर साहब के दफ्तर से निकला और विराट साहब के यहाँ से होते हुए हुजूरेआला तक पहुँच गया। तैयार बैठे टी वी चैनलों ने फौरन लपक लिया। नेता, मन्त्री सबकी पुशअप मारती तस्वीरें टीवी स्क्रीन पर नजर आने लगीं। नेशनल एजेंडा बन गया। छोड़ो तेल की कीमतें, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, बेईमानी, तालीम और इलाज का सवाल, ये भी कोई मसला है। इन सवालों में, बेकार की बातों में क्या रखा है। पूरी सरकार पुशअप में जुटी है, आइये हम सब पुशअप करे। विकास का ये नया मॉडल इवेंट मैनजमेंट और पीआर एजेंसियों ने खोज कर निकाला है जिसे न्यूज चैनल राष्ट्रहित में प्रचारित प्रसारित करने में जुटे हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
(मुन्ना मारवाड़ी स्वतंत्र लेखक हैं और बड़ी बेबाकी से अपने विचार रखने के लिए जाने जाते हैं)