Diwali 2024: चाइनीज आइटम और महंगी मिट्टी के बीच चौपट हो रहा कुम्हारों का कारोबार
दिवाली पर दिया जा रहा "लोकल फॉर वोकल' पर जोर
Diwali 2024: देशभर में दिवाली की तैयारी जोर- शोर से चल रही है. बाजार सज चुके हैं. गलियों में मिट्टी के बर्तन और चाइनीज समाज सज चुके हैं. दिन पर दिन गलियों में चहल-पहल बढ़ रही है. इसके लिए दिवाली के साथ अन्य त्योहारों में पीएम मोदी की तरफ से ‘ लोकल फॉर वोकल’ पर जोर दिया जा रहा है. राजधानी लखनऊ के कई इलाकों में मिटटी के दिए के बाजार सज चुके हैं लेकिन उनको खरीददार नहीं मिल रहे हैं.
कुम्हारों की उम्मीदों पर फिरता पानी..
बता दें कि इस दीवाली कुम्हारों को उम्मीद थी कि मिट्टी के दीये और कलशों की बिक्री से उनके कारोबार में उछाल आएगा. इसी उम्मीद के साथ ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज रही और गांवों के साथ शहर में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात काम करने लगे. दूसरी ओर बाजारों में बिक रहे चाइनीज सामान और फैंसी आइटमों की वजह से मिट्टी के दीये और अन्य सामान की बिक्री कम हो गई है, जिससे कुम्हारों की चिंता बढ़ गई है.
मिट्टी के इर्द- गिर्द कुम्हारों का जीवन…
लखनऊ के मवैया में रहने वाले सुरेश प्रजापति ने बताया कि हम लोगों का जीवन पूरे साल मिट्टी के बर्तन , दीये- कलश बनाकर परिवार का पालन-पोषण करना है. उनका जीवन-यापन का प्रमुख व्यवसाय मिट्टी के बर्तन बनाकर उनकी बिक्री करना है और यही उनकी विरासत है. उन्होंने बताया कि दीपावली के मद्देनजर उन्होंने मिट्टी के दीये बनाए हैं लेकिन चाइनीज सामानों के कारण अब तक अपेक्षा के अनुरूप बिक्री नहीं हो पाई है. उन्होंने उम्मीद जताई कि दीपावली पर अभी 5- 6 दिन शेष हैं. संभव है इस दौरान बिक्री बढ़ेगी और उनका मुनाफा होगा.
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मिट्टी की इलेक्ट्रिक दीयों ने ली जगह…
वहीं दूसरे मिट्टी के बर्तन बेचने वाले रामकिशोर प्रजापति ने बताया कि आज के समय में आधुनिक चाइनीज दीये आ गए हैं. इसे लोग मिट्टी दीयों की जगह चाइनीज दीयों ज्यादा खरीदते हैं.उन्होंने बताया कि इन दिनों मिट्टी के बर्तन बनाने में लागत काफी बढ़ गई है, जिसके चलते पहले की तुलना में मुनाफा भी काफी कम हो गया है. हालत यह है कि मुश्किल से मिट्टी की तलाश पूरी होने के बाद हाथ की कला से तैयार किए गए मिट्टी के दीये की मेहनत का मेहनताना भी सही से नहीं मिल पाता है.
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नई पीढ़ी छोड़ रही व्यवसाय…
रामकिशोर प्रजापति ने बताया कि, लागत ज्यादा और मुनाफा न होने के चलते युवा पीढ़ी इसमें में मन नहीं लगा रही है. इसका कारण है कि इसे बनाने में मेहनत ज्यादा है और बिक्री कम हो गई है. इससे नई पीढ़ी का गुजारा होना मुश्किल हो रहा है. प्रजापति समाज का यही एक मात्र गुजारे का साधन है. यही कारण है कि प्रजापति समाज की युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गों की इस कला को छोड़कर अन्य कार्य करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं.