प्रधानमंत्री राहत कोष होने के बावजूद क्यों पीएम केयर फंड बनाने की जरूरत पड़ी?

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 28 मार्च को लोगों से कोरोना के खिलाफ चल रही मुहिम में मदद के लिए पीएम केयर फंड में दान करने की अपील की। प्रधानमंत्री मोदी की अपील के बाद कॉरपोरेट घरानों से लेकर सेलिब्रेटीज और आम जनता के बीच दान करने की होड़ मच गई।

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इसी के साथ कुछ सवाल भी खडे हुए कि आखिर जब प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ) पहले से था तो फिर अलग से पीएम केयर बनाने की क्यों जरूरत पड़ी? सवाल इसलिए उठ खड़े हुए कि नए बने प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात राहत कोष (पीएम-केयर) को लेकर अभी बहुत से चीजें आधिकारिक तौर पर साफ नहीं की गईं हैं। दोनों में क्या है अंतर

सरकारी सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के संचालन का अधिकार पूरी तरह पीएमओ को प्राप्त है। 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसका संचालन पूरी तरह पीएमओ के सुपुर्द कर दिया था। जबकि पीएम केयर का संचालन सिर्फ पीएमओ नहीं करेगा। इसमें प्रधानमंत्री भले अध्यक्षता करेंगे मगर गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री भी अहम भूमिका में रहेंगे। इसके अलावा विज्ञान, स्वास्थ्य, कानून, समाजसेवा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को भी सदस्य के तौर पर नामित किया जाएगा। धनराशि के खर्च के बारे में प्रधानमंत्री, मंत्री और विशेषज्ञों की कमेटी फैसला करेगी।

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जानकारों का मानना है कि इससे पता चलता है कि पीएम केयर का संचालन ज्यादा लोकतांत्रिक तरीके से होगा, क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री ने मंत्रियों को भी शामिल किया है। खास बात है कि पीएम केयर में दस रुपये भी दान किया जा सकता है। हालांकि अभी पीएम केयर को लेकर कई बातें साफ नहीं हैं। मसलन, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की ऑडिट का अधिकार सीएजी को है तो फिर पीएम केयर की ऑडिट कौन करेगा। कुछ चीजें दोनों फंड में कॉमन हैं। पीएमएनआरएफ या फिर पीएम केयर दोनों में दान करने पर 80 जी के तहत छूट मिलती है। जब नेहरू ने 1948 में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की थी तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी फंड की प्रबंध समिति में होते थे। 1985 से पहले कारपोरेट घरानों के प्रतिनिधियों को भी इसमें जगह मिलती थी। मगर राजीव गांधी ने बाद में सिर्फ और सिर्फ पीएमओ के अधीन इसका संचालन कर दिया था।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कोरोना से खड़े हुए संकट के दौर में पीएम केयर को प्रधानमंत्री का अच्छा प्रयास बताते हैं। मगर उनका मानना है कि इसको लेकर उठ रहे सवालों का सरकार को जवाब देना चाहिए। ताकि शंकाओं का समाधान हो सके। उनका मानना है कि सरकार से सवालों का उचित जवाब दिए जाने पर पीएम केयर की विश्वसनीयता बढ़ जाएगी।

विराग गुप्ता कहते हैं कि इस फंड के लिए पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया गया है जिसमें प्रधानमंत्री समेत कई अन्य मंत्री ट्रस्टी हैं। इस रजिस्टर्ड ट्रस्ट डीड की कॉपी को सार्वजनिक कर दिया जाय तो अधिकांश अटकलों पर विराम लग जाएगा। सरकार को आधिकारिक तौर पर यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि प्रधानमंत्री राहत कोष में बड़े पैमाने पर रकम होने के बावजूद इस नए फंड को बनाने की जरूरत क्यों पड़ी ? क्या कोरोना की महामारी खत्म होने के बाद इस फंड को समाप्त कर दिया जाएगा?

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विराग गुप्ता ने कहा, ‘ जनता को यह जानने का भी अधिकार है कि सरकार के मंत्री इस ट्रस्ट के पदेन सदस्य हैं या व्यक्तिगत तौर पर ट्रस्टी हैं। यदि मंत्री लोग इस ट्रस्ट के अधीन ट्रस्टी हैं तो फिर भविष्य में मंत्रियों के विभाग में किसी परिवर्तन से ट्रस्टियों में भी बदलाव करना पड़ सकता है। दिलचस्प बात यह है की सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के जजों ने भी इस फंड के लिए अपना योगदान दिया है। इसलिए भविष्य में इसे यदि कोई नई चुनौती दी गई तो अदालतों में कैसे सुनवाई हो सकेगी? कुछ नेताओं ने बयान देकर कहा है कि इस फंड की सीएजी ऑडिट होगी इसलिए इस पर कोई भी बात करना उचित नहीं है लेकिन पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के सीएजी ऑडिट का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए यदि ऐसी कोई व्यवस्था बनाने का विचार है तो उस बारे में टैक्स छूट के लिए जारी किए गए अध्यादेश के साथ ही कोई प्रावधान करना चाहिए था।

कब बना था प्रधानमंत्री राहत कोष

जनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर हाल नेहरू ने इसकी स्थापना की थी। इस फंड की स्थापना तब पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए हुई थी। हालांकि बाद में कोष की धनराशि का व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगा। फिलहाल इसकी धनराशि का इस्तेमाल प्रमुख रूप से बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों, बड़ी दुर्घटनाओं और दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, हृदय शल्य-चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर आदि के उपचार के लिए भी इस कोष से सहायता दी जाती है। कोष से धनराशि प्रधान मंत्री के अनुमोदन से वितरित की जाती है। प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गठन संसद द्वारा नहीं किया गया है।

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