पागलपन नहीं है डिप्रेशन, बस दिमागी फितूर है

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डिप्रेशन सिर्फ बीमारी नहीं है और न ही दिमागी फितूर, यह एक ऐसी मानसिक हालत है, जिसमें पॉजिटिव सोचने और बेहतर रिजल्ट तक पहुंचने की इंसान की क्षमता कम हो जाती है। वक्त पर इलाज और करीबियों का साथ, इस बीमारी से निपटने में अहम भूमिका निभाता है।
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लखनऊ की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले राहुल (बदला नाम) का 4 साल तक अपनी सहकर्मी के साथ अफेयर रहा। राहुल ने अपने घरवालों से शादी की रजामंदी ले ली, लेकिन दिक्कत यह हो गई कि लड़की के घरवाले शादी के लिए राजी नहीं हुए और ऐसे में लड़की ने भी शादी से इनकार कर दिया। ब्रेकअप के बाद राहुल डिप्रेशन में चले गए।
फैमिली लेवल पर इसे सुलझाने की कोशिश की गई
फिलहाल वह इलाज करवा रहे हैं।हरदोई की रिया (बदला नाम) टीचर थीं। शादी के बाद वह नौकरी छोड़कर पति के साथ लखनऊ में सेटल हो गईं। उनका एक बेटा भी है। दो साल पहले पता चला कि उनके पति का ऑफिस में अफेयर है। इस बात को लेकर उनका अपने पति से झगड़ा भी हुआ। फैमिली लेवल पर इसे सुलझाने की कोशिश की गई।
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सामाजिक-पारिवारिक तनाव की वजह से सामने आता है
अब वह मानसिक तौर पर परेशान हैं।छोटे शहर से दिल्ली गई 34 साल की सौम्या (बदला नाम) ने अपनी बहन को 6 साल साथ रखा। अचानक जब उनकी बहन ने उनकी मर्जी के खिलाफ लव मैरिज कर ली तो सौम्या डिप्रेशन में चली गईं। फिर उन्होंने काफी दिनों तक लखनऊ में भाई के साथ रहकर इलाज कराया।यह बायो-साइको-सोशल प्रॉब्लम है यानी डिप्रेशन खानदानी भी हो सकता है, जो पीड़ित की पर्सनैलिटी और सामाजिक-पारिवारिक तनाव की वजह से सामने आता है।
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डिप्रेशन की बीमारी अब आम हो रही है
इस बीमारी और इसके इलाज को लेकर तमाम तरह के कन्फ्यूजन हैं, जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। वैसे यह तय है कि डिप्रेशन पागलपन नहीं है। अगर दवाएं डॉक्टर की सलाह से ली जाएं तो सेफ हैं। दवाओं की लत नहीं पड़ती। इनके साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं। इस मेंटल डिसऑर्डर की चपेट में कोई भी आ सकता है।ये मामले तो बानगी भर हैं। बदलती लाइफस्टाइल में डिप्रेशन की बीमारी अब आम हो रही है। महानगर से निकलकर यह छोटे शहरों और कस्बों तक पहुंच रही है। इसके शिकार न सिर्फ युवा और बुजुर्ग, बल्कि स्कूल जाने वाले स्टूडेंट भी हैं।
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हॉबीज को पूरा करने की कोशिश करें लोगों से मिलें-जुलें
डॉक्टरों के अनुसार, इसका इलाज सिर्फ दवाओं से नहीं हो सकता। इससे उबरने के लिए परिवार, दोस्त और अपनों के साथ की भी दरकार होती है। साइकॉलजिस्ट मानते हैं कि ऐसी मानसिक हालत अचानक नहीं होती। लंबे वक्त में लाइफस्टाइल, रिश्ते, इमोशंस के साथ बुने गए ताने-बाने में जब सुराख होता है तो उम्मीदें धरी रह जाती हैं। ऐसे हालात में मानसिक तौर पर टूटना लाजमी है। वर्कआउट करें, योग और ध्यान करें शराब और सिगरेट से दूर रहें अगर कैंडीज या टॉफी पसंद हो तो उसका स्वाद लें अपनी हॉबीज को पूरा करने की कोशिश करें लोगों से मिलें-जुलें।
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