Interview : राजकुमार ने की अपने ‘मन की बात’

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गुड़गांव से लेकर मुंबई तक का सफर राजकुमार राव के लिए आसान नहीं रहा होगा, जाहिर है बिना किसी फिल्मी पृष्ठभूमि और अनकन्वेंशनल लुक के वह फिल्मों में हीरो बनने की तमन्ना रखते रहे, मगर अभिनय के प्रति समर्पण ने उनके सपने सच किए। शाहिद, क्वीन, सिटी लाइट, अलीगढ़ और बरेली की बर्फी जैसी फिल्मों में हर अदा का किरदार जीनेवाले राजकुमार इन दिनों चर्चा में हैं, ओमेर्टा से।

मैंने उनकी संस्कृति की भी जानकारी ली

इस रोल की तैयारी के लिए मुझे लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। मैं लंदन गया। वहां मैंने भाषा सीखी और उसके तरीके को भी अपनाया। मैंने उनकी संस्कृति की भी जानकारी ली, क्योंकि मैं एक ऐसा रोल कर रहा था, जो पाकिस्तानी ब्रिटिश लड़के का है। उसके बाद मैंने तीन महीने का फिजिकल टास्क पूरा किया और मैं मस्क्युलर रूप से मजबूत हुआ। मैंने बहुत कुछ पढ़ा।

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ऑनलाइन विडियोज और फोटो देखे, मगर सबसे ज्यादा मुश्किल था, इस किरदार की मानसिकता को समझना। हम शादी के मुद्दे पर सार्वजिनक रूप से बात नहीं करते, मगर इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि हम विवाह संस्था में यकीन नहीं करते। अभी शादी में समय है। मेरे व्यक्तित्व के विकास और उसको परिपूर्ण करने में उनका पूरा हाथ है। एक साथी के रूप में उन्होंने हर तरह से मेरा साथ दिया है। वह हर हाल में मुझे सपॉर्ट करती हैं। आपको लोग गिरगिट कहते हैं, रोल किसी भी तरह का हो, आप उसमें ढल जाते हैं।

(मुस्कुराते हुए) कोशिश यही रहती है कि एक कलाकार की तरह अपना सर्वस्व दे दूं। ‘बोस’ फिल्म के बाद इस रोल को करना बहुत ही मुश्किल था। फिल्म में मैं आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख का किरदार निभा रहा हूं। मैं इनकी दुनिया से नावाकिफ हूं, इसलिए इनके गुस्से, नफरत और मानसिकता को समझना बहुत मुश्किल था। निर्देशक हंसल मेहता काफी संवेदनशील और निडर फिल्मकार हैं। जिस तरह से वह इस कहानी को कह रहे थे, मुझे यकीन था कि यह फिल्म सही स्वरूप लेगी।

आज के दौर में यह कहानी किस तरह से सामयिक है, आज इसे कहने की जरूरत क्या है?

क्योंकि यह सचाई है, समाज की। उमर सईद की सोच रखनेवाले कई युवक हमारे समाज में हैं। हालांकि यह घटना 1994 की है, मगर आज भी ऐसे कई नवयुवक हैं, जो सोशल मीडिया के जरिए सीरिया या आईएसआई में ब्रेन वॉश किए जाने के बाद पहुंच जाते हैं, तो यह समझना जरूरी है कि ऐसा क्यों हो रहा है और इसके निवारण के लिए कुछ किया जा सकता है या नहीं, आज की युवा पीढ़ी इस हद तक क्यों चली जाती है?

इस फिल्म को करने के बाद क्या आप सिक्के के दूसरे पहलू से वाकिफ हो पाए?

जी बिलकुल। मैंने रिसर्च करने के बाद कई किताबें पढ़ीं, डॉक्युमेंट्री देखी और भी कई विडियोज देखे। उनसे अंदाजा हुआ कि कई बार हम कितने अमानुष बन जाते हैं, अपनी ही चीजों को लेकर। एक नारे से शुरू होनेवाली चीज कितना वीभत्स रूप ले लेती है। इस फिल्म को करने के बाद कई मुद्दों को लेकर मेरी भी आंखें खुलीं।

हंसल मेहता के साथ यह आपकी चौथी फिल्म है। आपका रिश्ता अब कितना मजबूत हुआ है?

वह मेरे लिए बेहद खास हैं। वह मेरे पिता समान हैं। बेस्ट फ्रेंड हैं, जिनके साथ मैं घंटों घूम सकता हूं। गप्पें लड़ा सकता हूं। मुद्दा कोई भी हो, चाहे वह पॉलिटिकल हो, मस्ती या रिलेशनशिप की बात हो, हम किसी भी विषय पर बात कर सकते हैं। उनके साथ वक्त बिताने में गजब का मजा आता है। कई बार यह व्यावसायिक न रहकर निजी हो जाता है। उनके साथ काम करने की अनुभूति महान लगती है।

‘बरेली की बर्फी’ की सफलता से आपको कितना फायदा हुआ?

बहुत फायदा हुआ। लोगों को मेरे अभिनय का दूसरा पहलू जानने का मौका मिला कि राजकुमार राव कॉमिडी या अलग तरह की भूमिकाएं कर सकता है। एक और फायदा यह भी हुआ कि इंटेंस भूमिकाओं से परे मुझे अब हल्की-फुल्की भूमिकाओं के प्रस्ताव भी मिल रहे हैं। एक ओर मैं ‘ओमेर्टा’ और ‘स्त्री’ जैसी गंभीर फिल्में कर रहा हूं, तो दूसरी ओर ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ और ‘मेंटल’ जैसी अलग तरह की फिल्में भी कर रहा हूं।

परंपरागत नायक की परिभाषा से परे आप जैसे अदाकार को खुद को साबित करने में कितनी मेहनत करनी पड़ी?

मेहनत तो खूब करनी पड़ी। इसीलिए तो कई साल लग गए, इस मुकाम को पाने में और कई साल लग गए लोगों को यह अहसास दिलाने में कि मैं अभिनय के इन रंगों को जी सकता हूं। मैं यह कह सकता हूं कि अब एक कलाकार के लिए विकल्प ज्यादा हैं।

कंगना के साथ आप ‘क्वीन’ के बाद आप ‘मेंटल’ करने जा रहे हैं। ‘क्वीन’ के बाद खबरें थीं कि आपने उनके साथ काम न करने का फैसला किया था?

(आश्चर्य चकित होते हुए) नहीं ऐसी बात तो नहीं है। मैं उनके साथ काम करने को लेकर बहुत उत्सुक हूं। ‘मेंटल’ फिल्म ‘क्वीन’ से बिल्कुल अलहदा है। मेंटल क्रेजी, मनोरंजक और थ्रिल एलिमेंट से भरी फिल्म है।

NBT

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