आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) और डाटा सेंटरों की बढ़ती संख्या के कारण जल संकट गहराने की आशंका बढ़ गई है. सर्वर को ठंडा रखने के लिए पानी की बढ़ती खपत चिंता का विषय बन गई है. ब्रिटेन, गूगल के डाटा सेंटरों के जरिए एआई क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है, जिससे जल संसाधनों पर दबाव बढ़ सकता है.
2024 में पर्यावरण एजेंसी के लिखे एक ब्लॉग के अनुसार, 2050 तक इंग्लैंड को हर दिन पांच बिलियन लीटर अतिरिक्त पानी की आवश्यकता होगी. 2023 में एक आकलन में पाया गया कि गूगल की एक कंपनी ने 980 मिलियन गैलन पानी खर्च किया, जो 1484 ओलंपिक साइज के स्विमिंग पूलों के बराबर है. गूगल के डाटा सेंटरों में हर साल करीब छह बिलियन लीटर पानी की खपत होती है.
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माइक्रोसॉफ्ट और ओपनएआई की भी अहम भूमिका
माइक्रोसॉफ्ट के एआई टूल विकसित करने के दौरान पानी की खपत 34% बढ़ गई थी. वहीं, ओपनएआई के जीपीटी-4 के प्रशिक्षण के दौरान एक महीने में अमेरिका के आयोवा जिले की कुल पानी आपूर्ति का 6% उपयोग हुआ. चिली में स्थानीय विरोध के कारण गूगल को अपना डाटा सेंटर प्रोजेक्ट रोकना पड़ा था.
50 हजार लोगों की जरूरत जितना पानी खर्च
विशेषज्ञों के अनुसार, एक सामान्य डाटा सेंटर में पानी की खपत 50,000 की आबादी वाले शहर के बराबर हती है, जो 11 से 19 मिलियन गैलन के बीच होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के 2023 के एक अध्ययन के मुताबिक, चैटजीपीटी जैसे बड़े भाषा मॉडल को प्रशिक्षित करने में लाखों लीटर पानी खर्च हो सकता है. यहां तक कि 10 से 50 सवालों का जवाब देने में ही यह आधा लीटर पानी की खपत कर देता है.
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जल संकट के समाधान
सूखा-ग्रस्त इलाकों में डाटा सेंटर बनाने से पहले जल संसाधन प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाए.
पानी की रीसाइक्लिंग और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दिया जाए.
डाटा सेंटरों में क्लोज-लूप लिक्विड कूलिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए, जिससे पानी की खपत कम हो सके.
वर्ष 2027 तक एआई टेक्नोलॉजी के कारण वैश्विक स्तर पर सालाना 6.6 अरब क्यूबिक मीटर पानी खर्च होने का अनुमान है. ऐसे में जल संसाधनों के टिकाऊ उपयोग के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.