अंदेशा क्‍यों नहीं था कि देश को हिंसा का बंधक बनाया जायेगा ?

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आशीष बागची

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी ऐक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ आज दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान जमकर हिंसा की। मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, झारखंड इस प्रदर्शन से ज्यादा प्रभावित हुए। कुल 13 राज्‍यों में यह आंदोलन फैला। पश्चिमी यूपी के मेरठ, आगरा, गाजियाबाद में स्थिति काबू से बाहर हो गयी। थानों, चौकियों पर हमले हुए, गाडि़यां फूंकी गयीं, खुलेआम फायरिंग हुई। उपद्रवियों ने पुलिस को दौड़ाकर पीटा। कई जगह कर्फ्यू लगाने पड़े। ट्रेनों-बसों-कारों-दुकानों में आग लगाई गई। अपनी मांगें मनवाने के लिए देश को हिंसा का बंधक बना दिया गया।

विपक्षी पार्टियां भी आगे आयीं

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ केंद्र, दलित कार्यकर्ता और कांग्रेस, आरजेडी समेत कई विपक्षी पार्टियां भी आगे आईं। इनका कहना है कि एससी-एसटी ऐक्ट के कमजोर होने से दलितों के खिलाफ हिंसा बढ़ जाएगी। उधर, इस फैसले के खिलाफ अकेले मध्य प्रदेश में छह और राजस्थान में एक व्यक्ति की मौत हो गयी। राजस्थान के अलवर में पवन कुमार नाम के युवक की पुलिस फायरिंग के दौरान मौत हुई। मध्य प्रदेश के ग्‍वालियर और मुरैना में हुई हिंसा में 5 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई।

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मायावती ने कहा उनकी पार्टी का हाथ नहीं

बसपा प्रमुख मायावती को आगे आकर कहना पड़ा कि मैं एससी-एसटी आंदोलन का समर्थन करती हूं। मुझे पता चला है कि कुछ लोग इस आंदोलन में हिंसा कर रहे हैं, मैं उसकी निंदा करती हूं। इस हिंसा के पीछे हमारी पार्टी का हाथ नहीं है। दूसरी ओर केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की गई है।

एससी-एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज मुकदमे फर्जी

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में 2016 में कुल 11060 ऐसे केस दर्ज हुए, जो एससी-एसटी ऐक्ट के तहत थे। इनमें से जांच के दौरान 935 शिकायतें पूरी तरह से गलत पाई गईं। चूंकि शिकायत दर्ज होने के तुरंत बाद गिरफ्तारी तय होती है, ऐसे में इस कानून को लेकर हमेशा से विवाद रहा है। कई बार राजनैतिक दबाव में भी इस कानून का दुरुपयोग होता रहा है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद इस कानून को फिर से परिभाषित करते हुए 20 मार्च को कुछ निर्देश दिए। इसके तहत- एससी-एसटी ऐक्ट के मामलों की जांच कम से कम डिप्टी एसपी रैंक के अधिकारी करेंगे। पहले ये जांच इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी करते थे। किसी भी सरकारी अधिकारी पर केस दर्ज होने पर ही उसकी गिरफ्तारी तुरंत नहीं होगी।

सरकारी अधिकारी की फौरन गिरफ्तारी नहीं

उस सरकारी अधिकारी के विभाग से गिरफ्तारी के लिए इजाजत लेनी होगी। अगर किसी आम आदमी पर एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज होता है, तो उसकी भी गिरफ्तारी तुरंत नहीं होगी। उसकी गिरफ्तारी के लिए जिले के एसपी या एसएसपी से इजाजत लेनी होगी। किसी पर केस दर्ज होने के बाद उसे अग्रिम जमानत भी दी जा सकती है। अग्रिम जमानत देने या न देने का अधिकार मैजिस्ट्रेट के पास होगा। अभी तक अग्रिम जमानत नहीं मिलती थी। जमानत भी हाई कोर्ट देता था। अर्थात सुप्रीम कोर्ट ने कानून को परिभाषित किया है, बदला नही। नई परिभाषा के अनुसार कुछ निर्देश दिए हैं।

रिव्‍यू पिटीशन दाखिल

इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले के खिलाफ हो रहे हिंसक प्रदर्शनों में छह लोगों की मौत के बावजूद एससी-एसटी (अत्याचार की रोकथाम) ऐक्ट पर तत्काल सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया। दरअसल, केंद्र सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पूर्व के स्टेटस को बहाल करने की मांग की, जिसके तहत एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कोई भी अपराध गैर-जमानती श्रेणी में माना जाएगा। सवाल है कि आखिर इतने बड़े आंदोलन की अगुवाई किसने की और सरकारी इंतजाम क्‍या थे? क्‍या सरकारी मशीनरी के पास यह सूचना कहीं नहीं थी कि 13 प्रदेशों में हिंसा फैल जायेगी?

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