पहली बार कच्चे तेल का भाव जीरो डॉलर, भारत में घट सकते हैं पेट्रोल-डीजल के दाम!

ऐतिहासिक गिरावट के बाद संभला अमेरिकी क्रूड, ब्रेंट में नरमी जारी

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मुंबई़ : ऐतिहासिक गिरावट के बाद अमेरिकी क्रूड आयल Crude Oil डब्ल्यूटीआई में मंगलवार को तेजी लौटी लेकिन ब्रेंट क्रूड के भाव में अभी तक नरमी बनी हुई है। कोरोना के कहर के चलते तेल Crude Oil की आपूर्ति के मुकाबले मांग कम होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बीते सत्र में अमेरिकी क्रूड का भाव शून्य से नीचे चला गया था।
अमेरिकी लाइट क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट यानी डब्ल्यूटीआई का मई डिलीवरी अनुबंध सोमवार को न्यूयार्क मकेर्टाइल इंडेक्स पर पिछले सत्र से 300 फीसदी ज्यादा की गिरावट के साथ शून्य से नीचे 37.63 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ।

शून्य से नीचे 14 डॉलर प्रति बैरल पर खुला

हालांकि मंगलवार को मई अनुबंध शून्य से नीचे 14 डॉलर प्रति बैरल पर खुलने के बाद जोरदार 39.23 डॉलर की रिकवकरी के साथ 1.65 डॉलर प्रति बैरल पर बना हुआ था।

हालांकि जून डिलीवरी अनुबंध में इतनी बड़ी गिरावट नहीं आई है। एजेंल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट अनुज गुप्ता ने इसकी वजह बताई। उन्होंने कहा कि ओपेक और रूस के बीच उत्पादन कटौती को लेकर जो करार हुआ है वह मई से लागू है इसलिए जून अनुबंधों में इतनी बड़ी गिरावट नहीं आई है।

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आर्थिक गतिविधियां चरमरा गई हैं

गुप्ता ने कहा कि कोरोनावायरस के कहर से पूरी दुनिया में आर्थिक गतिविधियां चरमरा गई हैं जिससे Crude Oil की मांग काफी घट गई है, लिहाजा इसकी कीमतों पर दबाव बना हुआ है।

अमेरिकी और कनेडियन Crude Oil के बीते सत्र में शून्य से नीचे के भाव बिकने की वजह पूछे जाने पर गुप्ता ने कहा कि दुनियाभर में रेल, सड़क और हवाई यातायात प्रभावित है क्योंकि कोरोनावायरस के संक्रमण की कड़ी को तोड़ने में लॉकडाउन और आवाजाही पर प्रतिबंध को सबसे कारगर उपायों के तौर पर देखा जा रहा है, यही कारण है कि Crude Oil की मांग काफी घट गई।

कारोबारी डिलीवरी लेने को तैयार नहीं

उन्होंने कहा कि मई अनुबंध के सौदे के शून्य से नीचे जाने की मुख्य वजह यह थी कि जिन कारोबारियों ने मई सौदे लिए थे वे डिलीवरी लेने को तैयार नहीं थे।

Crude Oil की यह गिरावट दुनिया सहित भारत की इकोनॉमी के लिए भी कोई अच्छी खबर नहीं है।

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इसका भारतीय इकोनॉमी पर भी असर पड़ सकता है

अमेरिकी वायदा बाजार में कच्चा तेल Crude Oil सोमवार को ऐतिहासिक रूप से लुढ़कते हुए नेगेटिव में चला गया, शून्य से 36 डॉलर नीचे।
असल में दुनियाभर में लॉकडाउन को देखते हुए जिन कारोबारियों ने मई के लिए वायदा सौदे किए हैं वे अब इसे लेने को तैयार नहीं हैं। उनके पास पहले से इतना तेल जमा पड़ा है जिसकी खपत नहीं हो रही है। इसलिए उत्पादक उन्हें अपने पास से रकम देने को तैयार हैं कि आप हमसे खर्च ले लो, लेकिन कच्चा तेल ले जाओ यानी सौदे को पूरा करो। ऐसा कच्चे तेल के इतिहास में पहली बार हुआ है।

भारत को क्या पड़ता है फर्क

अब इस बात को समझना जरूरी है कि वैसे अमेरिकी बाजार में कच्चा तेल अगर मुफ्त भी हो जाता है तो पेट्रोलियम कीमतों के लिहाज से भारत को बहुत फर्क क्यों नहीं पड़ता। असल में भारत में जो तेल आता है वह लंदन और खाड़ी देशों का एक मिश्रित पैकेज होता है जिसे इंडियन क्रूड बास्केट कहते हैं। इंडियन क्रूड बास्केट में करीब 80 फीसदी हिस्सा ओपेक देशों का और बाकी लंदन ब्रेंट क्रूड तथा अन्य का होता है। यही नहीं दुनिया के करीब 75 फसदी तेल डिमांड का रेट ब्रेंट क्रूड से तय होता है। यानी भारत के लिए ब्रेंट क्रूड का रेट महत्व रखता है, अमेरिकी क्रूड का नहीं।

सोमवार को जून के लिए ब्रेंट क्रूड का रेट करीब 26 डॉलर प्रति बैरल था, जबकि मई के लिए ब्रेंट क्रूड वायदा रेट 23 डॉलर प्रति बैरल के आसपास था। इसमें भी नरमी आई, लेकिन यह बहुत ज्यादा नहीं टूटा।

डब्लूटीआई अमेरिका के कुंओं से निकाला जाता है

डब्लूटीआई वह क्रूड ऑयल होता है, जिसे अमेरिका के कुंओं से निकाला जाता है। ढुलाई के लिहाज से इसे भारत लाना आसान नहीं होता। सबसे अच्छी क्वालिटी का कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड माना जाता है। दूसरी तरफ, खाड़ी देशों का यानी दुबई/ओमार क्रूड ऑयल थोड़ी हल्की क्वालिटी का होता है, लेकिन यह एशियाई बाजारों में काफी लोकप्रिय है।

लेकिन बड़ी चिंता क्या है

एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि भारत या दुनिया की इकोनॉमी के लिए यह कोई शुभ संकेत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘कोरोना संकट की वजह से दुनिया की इकोनॉमी पस्त है। भारत में भी लॉकडाउन की वजह से पेट्रोलियम की मांग में भारी गिरावट आई है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों का लगातार घटते जाना और इस स्तर पर चले जाना खाड़ी देशों की इकोनॉमी के डांवाडोल हो जाने का खतरा पैदा करता है। खाड़ी देशों की इकोनॉमी पूरी तरह से तेल पर निर्भर है। वहां करीब 80 लाख भारतीय काम करते हैं जो हर साल करीब 50 अरब डॉलर की रकम भारत भेजते हैं। वहां की इकोनॉमी गड़बड़ होने का मतलब है इस रोजगार पर संकट आना।’

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