OMG! ऐसे बनती हैं ये कॉफी जानकर पीना छोड़ देंगे…

0

सिवेट प्रजाति की बिल्लियों के मल से निकाली गई बींस से भारत में प्रीमियम कॉफी तैयार किए जाने की खबर पर अधिकांश लोग हैरानी जताएंगे और उबकाई लेंगे, लेकिन यही तो इसके उत्पादक चाहते हैं। अधिकतर मामलों में उत्पाद पहले उपभोक्ता की सहूलियत के हिसाब से खुद को सेट करते हैं, फिर उनकी पसंद में शामिल हो जाते हैं, लेकिन सिवेट कॉफी के मामले में इसका ठीक उलटा है। इसकी ब्रैंड अपील असुविधा पर टिकी है।

also read : ‘सीएम योगी अयोध्या’ में मनायेंगे दिवाली

सिवेट कैट दरअसल 50-60 सेमी़ लंबी और दो से पांच किलो वजनी…

किसी के भी मल से निकाली गई चीज को खाने के बारे में शायद ही कोई सोचे, लेकिन इसके बावजूद सिवेट कॉफी बनाना मुनाफे का सौदा है। इसकी शुरुआत इंडोनेशिया में हुई थी। हॉलैंड के लोगों ने 18वीं सदी में वहां जब कॉफी के बाग लगाए तो उन्होंने पाया कि वहां की सिवेट बिल्लियों को काफी की बेरी काफी पसंद आती है। ये सिवेट कैट दरअसल 50-60 सेमी़ लंबी और दो से पांच किलो वजनी होती हैं। पहली नजर में यह बिल्ली जैसी दिखती है, लेकिन इसके पैर अपेक्षाकृत छोटे और पूंछ लंबी होती है।

Also read : हमसे अच्छा खेली आस्ट्रेलिया : कोहली

कॉफी का नाम कूर्ग लुवार्क कॉफी रखना चाहते हैं

डच बागान मालिकों ने देखा कि ये बिल्लियां कॉफी के फल खाती हैं और बीज उनके मल के साथ बाहर आते हैं, जो कॉफी बींस होते हैं। उन्हीं दिनों कभी इन बींस को साफ करने के बाद भूनकर काफी बनाने का चलन शुरू हुआ था, जिसे ‘कोपी लुवाक’ कहा जाता है। भारत में यही प्रक्रिया अपनाई जा रही है। सिवेट यहां भी पाई जाती हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ कॉफी उत्पादक अब कोपी लुवाक का इंडियन वर्जन बनाना चाहते हैं। कूर्ग कंसॉलिडेटेड कॉफी नामक स्टार्टअप चलाने वाले नरेंद्र हेब्बर के मुताबिक वह इस कॉफी का नाम कूर्ग लुवार्क कॉफी रखना चाहते हैं।

Also read : सरकार को पहले से ही थी बीएचयू में गड़बड़ी की आशंका : योगी

सिवेट के पेट के पाचक रसों का बींस पर असर पड़ता है

हेब्बर इस साल आधा टन सिवेट कॉफी तैयार करने का लक्ष्य बनाकर चल रहे हैं। 2015-16 में 60 किग्रा और पिछले साल 200 किग्रा़ ऐसी कॉफी का उत्पादन हुआ था। कोपी लुवाक पर किए गए रिसर्च से पता चलता है कि सिवेट के पेट के पाचक रसों का बींस पर असर पड़ता है, लेकिन इसका कॉफी के फ्लेवर पर पड़ने वाले असर का मामला जटिल है और इसे वाइन लेबल इफेक्ट कहा जा सकता है। थाइलैंड में इसी काम के लिए हाथी का सहारा लिया जाता है।

कॉफी बींस को ब्लैक आइवरी कहा जाता है

हाथी के मल से इकट्ठा की गई कॉफी बींस को ब्लैक आइवरी कहा जाता है और बताया जाता है कि उसकी बिक्री ऊंची कीमत पर होती है। हाथी का नाम ऐसी ही एक और अनाकर्षक चीज से जोड़ा गया था यानी हाथी के मल से बना कागज।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More