सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी की गूंज पूरी दुनिया में, जर्मनी ने यह कहा..

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद से ही दुनिया के अन्य देशों से इस पर प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. जर्मनी ने हाल ही में अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी पर चिंता व्यक्त करते हुए बयान दिया है. इसके बाद भारत की ओर से जर्मनी के राजदूत को तलब किया गया है.

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साबित करें केजरीवाल पर लगे आरोपों को

जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को कहाकि हमने इस मामले को संज्ञान में लिया है. केजरीवाल को निष्पक्ष और सही ट्रायल मिलना चाहिए. जर्मन विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. हम मानते हैं और उम्मीद करते हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों से सम्बंधित मानकों को इस मामले में भी लागू किया जाएगा. the presumption of innocence के सिद्धान्तों का पालन करने की बात कही गई है. इसके मुताबिक आरोपों का सामना करने वाले व्यक्ति को बेगुनाह मानकर कार्रवाई करनी चाहिए. वहीं आरोपित पर उसके ऊपर लगे आरोपों को गलत साबित करने की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए. इसके बजाए उसपर लगे आरोपों को सिद्ध करने की जिम्मेदारी आरोप लगाने वाली पार्टी के ऊपर होना चाहिए. निर्दोष होने का अनुमान कानून के शासन का एक केंद्रीय तत्व है और यह केजरीवाल पर लागू होना चाहिए.

भारत के आंतरिक मामलों पर पहले भी टिप्पणी कर चुका है जर्मनी

जर्मनी की ओर से पहले भी कई मौकों पर भारत के आंतरिक मामलों पर प्रतिक्रियाएं दी जा चुकी हैं. वर्ष 2022 में पाकिस्तान दौरे के दौरान जर्मनी की विदेश मंत्री Annalena Baerbock ने कश्मीर पर बयान दिया था. पाकिस्तान के विदेश मंत्री की मौजूगी में उन्होंने कहा था कि UN को कश्मीर में मानवाधिकार को सुनिश्चित कराना चाहिए. इसपर भारत की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई थी. इसके अलावा भारत में फेक्टचेकर की गिरफ्तारी पर भी जर्मनी की ओर से बयान दिया गया था.

भारत ने जर्मन डिप्टी हेड को किया तलब

जर्मनी के विदेश मंत्रालय के इस बयान पर भारत के विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जताते हुए जर्मन एम्बेसी के डिप्टी हेड को तलब किया. वहीं उन्हें भारत के आतंरिक मामलों में दखलंदाजी न करने की नसीहत दी गई. मामले को लेकर जर्मन एम्बेसी के डिप्टी हेड विदेश मंत्रालय गए थे. वहां चर्चा के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, ’हम इस तरह के बयानों को हमारी न्यायिक प्रक्रिया में दखल मानते हैं, इस तरह के बयान हमारे न्यायालय की निष्पक्षता और आजादी पर सवाल खड़े करते हैं.

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