गोरखपुर में बच्चों के मौतों का सिलसिला जारी

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गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज (Medical College) के डॉक्टर सतीश की ज़मानत अर्ज़ी तीसरी बार ख़ारिज हो गई है। बाबा राघवदास वही मेडिकल कॉलेज है जिसमें 10 और 11 अगस्त की दरम्यानी रात में 34 बच्चों की मौत हो गई थी। उस समय डॉक्टर सतीश एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख थे। उनके पास मेडिकल कॉलेज में होने वाली ऑक्सीजन आपूर्ति की निगरानी का भी जिम्मा था। प्रदेश के महानिदेशक (चिकित्सा शिक्षा) केके गुप्ता की तहरीर पर डॉक्टर सतीश के ख़िलाफ़ छह धाराओं में मामला दर्ज हुआ था. फ़िलहाल वह जेल में हैं।

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पिछले साल के मुताबिक मौत की दरे बढ़ी

11 अगस्त के बाद से 114 दिन बीत चुके हैं और डॉक्टर सतीश की तरह वे आठ लोग भी जेल में हैं जिन पर इस दुर्घटना की गाज गिरी थी। इस बीच मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौतों का सिलसिला बदस्तूर जारी है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अगस्त माह में 418, सितम्बर में 431 और अक्तूबर महीने में 457 बच्चों की मौत हुई थी। नवम्बर माह में 266 बच्चों की मौत की ख़बर है। नवम्बर के आख़िरी छह दिनों में यहां 39 मौतें हुई। हालांकि नवम्बर का आंकड़ा पिछले कुछ महीनों के मुक़ाबले कम है लेकिन पिछले साल नवम्बर में हुई मौतों से ज़्यादा है। मौत के आंकड़ों को लेकर अक्सर यहां उलझन की स्थिति रहती है क्योंकि मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने बीते कुछ समय से इस बारे में चुप्पी साध ली है। इन्सेफ़ेलाइटिस के मामलों में भी पिछले साल के मुक़ाबले बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले साल इन्सेफ़ेलाइटिस के 1,965 मामलों के मुक़ाबले इस साल 30 नवम्बर तक 2,155 मामले सामने आ चुके हैं। इस साल जेई पॉज़िटिव के भी 288 मामले सामने आए हैं.

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अभियुक्तों के ख़िलाफ चार्जशीट

डीएम की बनाई गई जांच समिति और मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी जांच समिति के आधार पर ये सूची तैयार की गई है.

  • पूर्व प्राचार्य डॉक्टर राजीव मिश्र,
  • इंसेफ़ेलाइटिस वॉर्ड के प्रभारी डॉ कफ़ील ख़ान,
  • एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख और ऑक्सीजन प्रभारी डॉ सतीश कुमार,
  • चीफ़ फ़ार्मेसिस्ट गजानन जायसवाल,
  • अकाउंटेंट उदय प्रताप शर्मा,
  • संजय कुमार त्रिपाठी,
  • सुधीर कुमार पांडेय,
  • ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मनीष भंडारी
  • और पूर्व प्राचार्य डा. राजीव मिश्र की पत्नी डॉ पूर्णिमा शुक्ला को दोषी ठहराया गया था.

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इनमें से डॉक्टर राजीव मिश्र और डॉक्टर कफ़ील ख़ान को छोड़कर बाक़ी सात के ख़िलाफ़ पिछले महीने ही पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया था। इन दोनों के ख़िलाफ़ चार्जशीट इस हफ़्ते दाखिल हुई है। इस चार्जशीट ने इन दोनों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं क्योंकि अब उन पर आईपीसी की धारा 409 भी लगा दी गई है। जो सरकारी धन के दुरूपयोग से जुड़ी है। इस धारा में आजीवन कारावास की सज़ा भी हो सकती है। उन पर पहले ही आईपीसी की धारा 308 यानी ग़ैरइरादतन हत्या का प्रयास और धारा 120 बी यानी आपराधिक साज़िश का मामला दर्ज किया गया था। डॉक्टर कफ़ील तब सुर्ख़ियों में आए जब हादसे के अगले दिन अख़बारों में उनकी तस्वीर अफ़रातफ़री में ऑक्सीजन का इंतज़ाम करने के लिए दौड़ते-भागते एक संवेदनशील डॉक्टर के रूप में छपी। लेकिन अचानक नई सुर्ख़ियां सामने आई जिन्होंने उन्हें खलनायक घोषित कर दिया।

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मेडिकल कॉलेज में मरीज़ों से हो रही लापरवाही

डॉक्टर कफ़ील ख़ान पर ऑक्सीजन की कमी को वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में न लाने, अपनी पत्नी के नर्सिंग होम में प्राइवेट प्रेक्टिस करने, मेडिकल कॉलेज में मरीज़ों के इलाज में लापरवाही के साथ-साथ संचार माध्यमों में ग़लत तथ्यों को प्रसारित करने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज किया गया था। हालांकि तफ़्तीश में डॉक्टर कफ़ील पर लगाया गया आखिरी आरोप पुलिस ने वापस ले लिया है। जांच अधिकारी अभिषेक सिंह के मुताबिक़ सभी अभियुक्तों के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत मिले हैं और ये अदालत में टिकने लायक सबूत हैं। शायद उनकी बात सच हो और शायद इसी तरह सबको यह पता चल सके कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज में उस रात असल में हुआ क्या था। इस सवाल का मुक़म्मल जवाब आज तक नहीं मिला है।

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नेपाल, बिहार से भी आते हैं मरीज़

पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और दक्षिणी नेपाल के लिए इलाज के सबसे बड़े केंद्र बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मरीजों की बड़ी तादाद आती है। यहां हर रोज़ ओपीडी में लगभग ढाई हज़ार मरीज आते हैं। 950 बिस्तरों वाले इस कॉलेज में क्षमता से ज़्यादा मरीज़ भर्ती होते हैं। ख़ासकर बच्चों के वॉर्ड और आईसीयू में हालात बेहद चिंतनीय हैं जहां कई बार तो एक बेड पर तीन-तीन बच्चों को लिटाना पड़ता है। आपात स्थितियों या बीमारी के हमले वाले दिनों में यहां सुविधाओं और संसाधनों का भी संकट खड़ा होता रहा है। मगर अगस्त त्रासदी के बाद मचे हो-हल्ले से कुछ फ़ायदा भी हुआ है। सरकार ने अन्य मेडिकल कालेजों और प्रांतीय चिकित्सा सेवा के डॉक्टरों को यहां विशेष तैनाती पर भेजा और ज़रूरी उपकरणों से लेकर नवजात शिशुओं के लिए बेहद ज़रूरी वॉर्मर भी उपलब्ध कराए गए हैं।

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डॉक्टरो ने ऑक्सीजन की आपूर्ति बताई

डॉक्टर सक्सेना के मुताबिक़, ‘दवाओं से लेकर ऑक्सीजन तक की आपूर्ति तक को एक व्यवस्थित ढंग से सुनिश्चित किया जा रहा है। लेकिन अगस्त की घटना की ‘असली वजह’ पूछे जाने पर वह कहते हैं कि ‘यह मामला अदालती प्रक्रिया के अधीन है लिहाज़ा कुछ कहना उचित नहीं हैं। मगर हर कोई चुप हो, ऐसा भी नहीं हैं की ग़ैर-सरकारी संगठन मानव सेवा संस्थान के कार्यकारी निदेशक और सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मणि की पहल पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक जांच टीम एम्स के चिकित्सकों के साथ इसी हफ्ते यहां पहुंच रही है। आयोग ने इस टीम को निर्देश दिया है कि छह हफ़्ते के भीतर प्रभावित ज़िलों का दौरा कर यह रिपोर्ट दे कि इस इलाके में आख़िरकार मौतों का सिलसिला थम क्यों नही रहा।

मणि ने 2013 में भी आयोग में यह सवाल किया था कि आख़िरकार 1978 से ही इस इलाक़े में हो रही मासूमों की मौतों पर अंकुश क्यों नही लग पा रहा हैं। उनकी गुहार पर तब भी आयोग ने एक टीम भेजी थी और प्रदेश सरकार से उसके निष्कर्षों के आधार पर तैयार कार्य योजना मांगी थी। मणि ने इस साल 20 जुलाई और 10 अगस्त को फिर आयोग का दरवाजा खटखटाया जिस पर यह विशेष जांच टीम आ रही है।

साभार: (BBC हिन्दी )

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