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इमरजेंसी : जब जुबान पर पड़ा था डाका – भाग दो

साहित्‍यकारों, पत्रकारों की कलम हमेशा से विद्रोह की मशाल बनकर जली है। इमरजेंसी के उस दौर में कलम ने अपनी इसी कर्तव्‍य का पालन किया

इमरजेंसी : 26 जून 1975 का वह मनहूस सबेरा – भाग एक

स्‍वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास में इमरजेंसी का दौर काली स्‍याही से दर्ज है। तकरीबन 21 महीने के उस दौर में भारत ने विरोध की…

तो हमारी ट्रेनें उम्रदराज होने के चलते भूल गयीं अपनी राह !!

डेढ़ सौ साल से ज्यादा उम्रदराज हो चुकी है भारतीय रेल। जी हां, दरअसल, 16 अप्रैल, 1853 को पहली दफे देश में रेल चली, इस हिसाब से…

ममता के आगे क्या दिलीप घोष चला पायेंगे अपना चुनावी दांव?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विगत दिनों पश्चिम बंगाल में आये भयानक तूफान से हुए विनाश को देखने के बाद केंद्र सरकार की भरपूर मदद का…

मजदूरों के पैरों के छाले क्यों नहीं देख पाई मोदी सरकार?

मुसाफिर की चाल नहीं चल रहे ये प्रवासी मजदूर, इनकी क़दमों में एक उम्मीद की लौ अब भी जल रही है। मीलों सफर तय करने के बाद कईयों ने…

2 The Point : बीजेपी की भाषा क्यों बोल रही हैं बहनजी ?

बेबस मजदूरों के लिए बस को लेकर यूपी में जमकर सियासत हुई, लानत मलामत हुई, कांग्रेसी खेमे बनाम योगीसरकार के दरमियान जारी गहमागहमी के…

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