मजदूरों के पैरों के छाले क्यों नहीं देख पाई मोदी सरकार?

0

मुसाफिर की चाल नहीं चल रहे ये प्रवासी मजदूर, इनकी क़दमों में एक उम्मीद की लौ अब भी जल रही है। मीलों सफर तय करने के बाद कईयों ने अपनी जान गवां दी, कईयों ने अपने परिवार वालों को खो दिया और कई ऐसे भी थे जो अब नहीं रहे। इनकी भी किस्मत का खेल अलग ही है। अपने ही देश में Refuge की तरह से जी रहे हैं ये प्रवासी मजदूर। कहना गलत नहीं होगा लेकिन ये शायद आज़ाद भारत की सबसे बड़ी ‘Refuge Crisis’ दिखाई पड़ रही है।

मंजिल तक पहुंचकर ही लेंगे दम-

राजमार्गों पर आपको भारत के वह चेहरे दिखाई देंगे जिन्हें हम देखना नहीं चाहते। चेहरे पर थकान और माथे पे शिकन इन्हें परेशान ज़रूर करती है लेकिन इन्होंने दृढ़-संकल्प लिया है कि अपनी मंज़िल तक पहुंच कर ही रुकेंगे। कुछ ट्रकों के पीछे, कई पैदल और कुछ साइकिलों पर ही अपने अपने गांवों या मूल ठिकानों की ओर निकल पड़े हैं।

Poor Economics में ऐसी परिस्थितियों का है ज़िक्र-

इन मजदूरों की यह “अंतहीन राह है” जो शायद ही कभी ख़त्म हो पाए। भूखे-प्यासे ये मजदूर लगातार बस एक ही रट लगाए हैं, इन्हें अपने घर पहुंचना है। इनके पास न अब खाने को पैसा है, न रहने को घर। उसके बाद भी ये एक ऐसे एडवेंचर पर निकल पड़े हैं जिसकी कीमत जानलेवा भी साबित हो रही है। सरकार इनके शेल्टर होम और खाने की व्यवस्था कर रही है लेकिन ये वहां रहना नहीं चाहते। आखिर ऐसा क्यों?

दिल्ली और केरल में प्रदर्शन हुए-

दिल्ली और केरल में हुए प्रदर्शन हमें क्या बताना चाह रहे हैं? एस्टर डफलो और अभिजीत बनर्जी द्वारा लिखी गई बुक “पुअर इकोनॉमिक्स” इस विकट परिस्थिति को बहुत अच्छे से समझाती है। बुक में ज़िक्र है कि गरीबों के मनोविज्ञान को समझना आसान नहीं है, हम इनके दिमाग में चल रहे भावों को तभी समझ पाएंगे जब हम अपने आप को इनकी जगह रखेंगे।

सरकार की रणनीति नहीं थी-

22 मार्च को जनता कर्फ्यू के तुरंत बाद तालाबंदी या लॉकडाउन की घोषणा हो गयी। कारखानों और छोटे प्रतिष्ठानों को यह निर्देश स्पष्ट होना चाहिए था कि श्रमिकों को भुगतान बंद न हो। राहत शिविरों का विवरण भी साथ ही उपलब्ध कराने की आवश्यकता थी ताकि प्रवासियों के पास शरण के पर्याप्त स्थान हों। सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा तो कर दी थी लेकिन उस समय भी सरकार के पास इन प्रवासी मजदूरों के लिए कोई रणनीति नहीं थी। जाहिर है कि केंद्र के पास तैयारी को लेकर कोई इच्छा शक्ति नहीं दिखी।

कोई रणनीति नहीं-

आपको बता दें कि भारत में लगभग 435 लाख लोग Unorganised Sector में काम करते हैं जोकि हमारी आबादी का 82 प्रतिशत है। ये आंकड़े हम सब की आंखें खोल सकते हैं लेकिन सरकार की तरफ से इन लोगों के लिए ऐसी कोई भी रणनीति नहीं बनाई गई जिससे कि इस भयावह परिस्थिति में इन मजदूरों की मदद हो सके।

नीति निर्माताओं ने मजदूरों का ख्याल नहीं रखा-

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वो लोग जो अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करते हैं, हमारे नीति-निर्माताओं के ख्याल में नहीं हैं क्योंकि हमारी सरकार उन लोगों के लिए ज़्यादा काम करना पसंद करती है जो organised sector में काम करते हैं। साथ ही उन लोगों के लिए चिंता जताती है जो चुनाव के समय इनकी रैलियां कराने में सक्षम रहते हैं।

अब ये तबका दर्शनीय बन गया है-

जाहिर है कि इस बार हमारी आबादी का ये हिस्सा हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर बहुत ही दर्शनीय हो गया है और उनके पांवों के छालों के दृश्य सरकार की उदासीनता को बखूबी उजागर करते दिख रहे हैं।

बढ़ रहा है आक्रोश-

ऐसा लगता है कि सार्वजनिक तौर पर आक्रोश बढ़ रहा है। अगर ऐसा हुआ तो आगामी दिनों ऐसी घटनाओं पर विराम लग सकता है क्योंकि अब सुप्रीम कोर्ट भी प्रवासियों का ख्याल रख रही है। सरकारों को श्रमिकों की आवाजाही कोरोना काल में रोकनी ही होगी क्योंकि इनसे वायरस उन क्षेत्रों में भी जा सकता है जहां अभी एक भी केस नहीं है।

ये मजदूर ही अर्थव्यवस्था ही रीढ़-

चिंता की बात यह है कि ये श्रमिक पूरे देश में उद्योग और सेवाओं की रीढ़ हैं। जब भी लॉकडाउन को ख़त्म किया जाएगा और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम शुरू किया जाएगा तब वो प्रक्रिया धीमी हो जाएगी क्योंकि ये प्रमुख खिलाड़ी दृश्य से अनुपस्थित होंगे। यह केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भर है कि वे अभी न केवल प्रवासी कामगारों का पुनर्वास करें, बल्कि यह भी सुनिश्चित करें कि भविष्य में उन्हें नीतियां बनाते समय भुलाया नहीं जाएगा।

यह भी पढ़ें: लॉकडाउन : फैशन उद्योग पर अस्तित्‍व का संकट

[bs-quote quote=”इस आर्टिकल के लेखक एक स्‍टूडेंट हैं। जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुदृदों पर लिखते रहते हैं।

” style=”style-13″ align=”center” author_name=”वैभव द्विवेदी” author_job=”स्‍टूडेंट” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/04/vaibhav.jpg”][/bs-quote]

यह भी पढ़ें: कोरोना से सामने आया पुलिस का मानवीय चेहरा

यह भी पढ़ें: ‘अम्फान’ : PM मोदी ने ममता सरकार को दी 1000 करोड़ की राहत

[better-ads type=”banner” banner=”104009″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हेलो एप्पडेलीहंट या शेयरचैट इस्तेमाल करते हैं तो हमसे जुड़ें।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More