यूपी पुलिस में तय हुई विद्रोह की तारीख, विभाग मनाएगा काला दिवस

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हाल ही में हुए विवेक तिवारी हत्याकांड में पुलिस(Police) विभाग पर उठ रहे सवालों की वजह से पुलिस प्रशासन काफी तंग आ चुका है। सूत्रों के हवाले से ऐसे भी खबर आ रही है कि विभाग में बगावत की आग उठ चुकी है। सोशल मीडिया पर तो इस बगावत  की चर्चा का दिन भी निश्चित हो गया है और वो है 5 अक्टूबर।

जी हां सोशल मीडिया पर एक पत्र के साथ ये फोटो वायरल हो रही है, जिसमें लिखा है कि आगामी पांच अक्टूबर को यूपी पुलिस विभाग में काला दिवस मनाया जाएगा। यह बगावत ख़ास कर दो मामलों की वजह उठी है।

पहला मामला है ये…

अगर पहले मामले की बात करें तो कुछ समय पहले इलाहाबाद पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह जो कभी नारी बारी पुलिस चौकी का इंचार्ज हुआ करता थे, उन पर कचहरी में प्राणघातक हमला हुआ था। जिसमे उनकी जान तक जाने का अंदेशा था। हमला करने वाले का नाम नबी अहमद था जो कम से कम आधा दर्जन मुकदमों में नामजद था।

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कहा जाता है कि अपनी जान बचाने के लिए सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह ने गोली चला दी थी, जिसमे हमलावर नबी अहमद मौके पर ही मारा गया था। इस पूरी घटना का वीडियो भी जनता में वायरल हुआ है जिसमे नबी अहमद को सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह की पिटाई करते हुए देखा जा सकता है।

तीन साल से उन्हें पल भर की भी जमानत नहीं मिली

मामले में आगे इलाहाबाद परिक्षेत्र की पुलिस ने अपने ही विभाग के सब इंस्पेक्टर को सलाखों के पीछे भेजने के लिए दिन रात एक कर दिया और आत्मरक्षा करने वाले उस सब इंस्पेक्टर को हत्यारा घोषित करवा कर ऐसी धाराएँ लगा दी कि तीन साल से उन्हें पल भर की भी जमानत नहीं मिली।

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इंस्पेक्टर शैलेन्द्र का परिवार आर्थिक रूप से तबाह हो गया और उनके तीन बच्चे अपनी माँ के साथ सड़क पर आने की कगार पर आ गये। पति के जीते जी भी विधवा जैसी हो चुकी उस सब इंस्पेक्टर की पत्नी ने अपने पति की रक्षा के लिए ऐसी कोई चौखट नहीं थी जहाँ मत्था नहीं टेका लेकिन इसी इलाहाबाद की पुलिस के तमाम बहादुर अधिकारी सीना ठोंक कर बहादुरी दिखाते रहे कि उन्होंने अपने ही विभाग के एक सब इंस्पेक्टर पर ऐसी कार्रवाई की है कि उनको अंतिम सांस तक जेल काटना है।

ये है दूसरा मामला

अभ इसके बाद मामला लखनऊ में सामने आया, जहां दो पुलिस वाले आधी रात से भी ज्यादा समय के बाद एक लक्जरी कार देखते हैं। उसमे एक महिला और एक पुरुष दिखे जो उन्हें पति पत्नी भी नहीं लगे। शीशे हर तरफ से बंद थे और उसके पिछली सीट पर कौन है कौन नहीं ये साफ़ नहीं हो पा रहा था. दिल्ली की निर्भया का मामला और दिल्ली पुलिस की हुई फजीहत सिपाहियों के दिमाग में जरूर गूंजी होगी।

वैसे इतनी रात को एक कार के अन्दर तक झाँक लेना पुलिस की गलती नहीं सक्रियता मानी जायेगी। उस कार का पीछा हुआ और उसको रुकने का इशारा भी किया गया लेकिन कार नहीं रुकी। पुलिस को देख कर दोनों के चेहरे पर थोड़े घबड़ाहट के भाव आये और वो अपनी कार को बेतरतीब हो कर चलाने लगे। जिस से पुलिस को और शक होने लगा। पुलिस ही नहीं शायद कोई भी होता उसको शक होता और वो जानने की कोशिश करता कि क्या चल रहा है वहां?

नकारा, सुस्त, ठुल्ले, घूसखोर जैसे उपनाम जुड़ रहे होते

अगर वही कार वहां से साफ़ निकल गयी होती और उसके कोई बड़ी घटना घटी होती तो आज दोनों सिपाहियों का लगभग वही हाल हो रहा होता जो अभी हो रहा है। हाँ तब उनके नाम में हत्यारे के बजाय निकम्मे, नकारा, सुस्त, ठुल्ले, घूसखोर जैसे उपनाम जुड़ रहे होते। फिलहाल कार का पीछा हुआ और बार बार रुकने का इशारा होता रहा लेकिन कार नहीं रुकी।

मामले के बाद गाड़ी में बैठे युवक विवेक की मौत की खबर आती है। गोली सर के पास लगी जिसको कम से कम कानून के अनुसार सही नहीं ठहराया जा सकता है। विवेक के परिवार वालों के रुदन और उनकी पीड़ा ने निश्चित तौर पर जनता को विदीर्ष कर दिया है। जिसका रोष पुलिस वालों के खिलाफ जनता में साफ देखा जा सकता है।

पुलिस वालों के लिए 302 की धारा का दोष तय कर गया

इसके बाद क्या हुआ ये सिर्फ और सिर्फ एक लड़की सना के बयान पर आधारित है। उस लड़की के बयान को सबसे ज्यादा सटीक और प्रमाणिक मान लिया गया। जिसके आधार पर ही ये पता चला कि बाद में पुलिस वालों ने कार चला रहे व्यक्ति को गोली मार दी और वही बयान उन पुलिस वालों के लिए 302 की धारा का दोष तय कर गया।

सना का बयान सुनने के लिए कम से कम 100 कैमरे, 200 माइक दिखने लगे लेकिन वही सिपाही प्रशांत की पत्नी चीख रही तो कोई और तो दूर तक उसके खुद के अधिकारियों ने उसको डांट कर खामोश करने की कोशिश की।

आनन फानन में फैसला कर दिया गया कि पुलिस वालों की ही गलती है जबकि सिपाहियों का बार बार कहना है कि उन्होंने आत्मरक्षार्थ ऐसा किया। सिपाहियों की आवाज उनके गले के अन्दर ही दम तोड़ गयी।

ये सच है कि किसी की भी मौत गलत है, पीड़ित परिवार विवेक के साथ सिर्फ मीडिया और राजनेताओं की ही नहीं बल्कि खुद पुलिस वालों की हमदर्दी है लेकिन जिस प्रकार से एकतरफा खबरें चलने लगी और “हत्यारी पुलिस” जैसे शब्द उन पुलिस वालों के मनोबल को जरूर तार तार कर रहे होंगे जो अपनी जान हथेली पर रख कर समाज की रक्षा के लिए खड़े रहते हैं।

बलिदानों का मना मजाक

इतना ही नहीं, ये शब्द सब इंस्पेक्टर जे पी सिंह, सिपाही अंकित तोमर जैसे वीर बलिदानियों की आत्मा तक को कचोट गये होंगे जिन्होंने अपने जीवन को इस समाज के लिए समर्पित कर दिया। आतंकियों की बारी आने पर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति तक के फैसले तक इंतजार करने वालो ने अचानक ही सिपाहियों को जांच अधिकारी की रिपोर्ट आने से पहले ही दोषी ठहरा दिया, जिसको उनके ही अधिकारी हां में हाँ मिलाते नजर आ रहे।

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