कर्नाटक में भाजपा का संप्रदायिक प्ले कार्ड फेल, कांग्रेस की खुली मोहब्बत की दुकान
लखनऊ : कर्नाटक में विधानसभा का चुनावी अध्याय समाप्त हो गया और अब हार-जीत पर मंथन का दौर शुरू गया है। कर्नाटक चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अन्य स्टार प्रचारकों का जादू क्यों नहीं चला, इस पर चिंतन शुरू हो गया है। हालांकि भाजपा ने पूरे जोश और नई रणनीति के साथ चुनावी अभियान चलाया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी को सफलता नहीं मिली। कर्नाटक एक ऐसा राज्य, जहां जातीय समीकरण का लंबा इतिहास है। यहां कभी लोहियावादी समाजवाद की धारा को अपनाया गया। वहीं सेक्युर धारा ने कांग्रेस को सामाजिक न्याय के प्रस्तावक के तौर पर स्थापित किया। ऐसे में भाजपा के मुस्लिम विरोधी एजेंडे को मतदाताओं ने नकार दिया।
भारी अंतर से जीती कांग्रेस
कर्नाटक के मतदाता ने एक दशक के बाद निर्णायक रूप से कांग्रेस को वोट दिया है। 2013 में पार्टी ने 36 फीसदी वोटों के साथ 122 सीटें जीती थीं। इस बार 135 सीटों पर जीत हासिल की है। यह आंकड़ा भाजपा को मिली 66 की संख्या से दोगुना है। पार्टी को करीब 43 फीसदी वोट मिले।
कर्नाटक में बीजेपी की हार की बड़ी वजह
बीजेपी से नहीं था मजबूत चेहरा
कर्नाटक में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है। येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं नजर आया। वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे। बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना बीजेपी को महंगा पड़ा।
भ्रष्टाचार रहा हार का बड़ा मुद्दा
बीजेपी की हार के पीछे अहम वजह भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा। कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा। स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत डाली थी। बीजेपी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांस बना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी।
राजनीतिक समीकरण में थी कमी
कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी बीजेपी साधकर नहीं रख सकी। बीजेपी न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी। वहीं, कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथ-साथ लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही है।
धार्मिक ध्रुवीकरण के नाम पर खेला था हिंदुत्व कार्ड
कर्नाटक में एक साल से बीजेपी के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहें। ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुव ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं। कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया। बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन यह दांव भी काम नहीं आ सका।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान का नेतृत्व करने के बावजूद भाजपा को राजधानी बेंगलुरु जैसे अपने गढ़ में भी उत्साहजनक नतीजे नहीं मिले। पीएम ने डबल इंजन सरकार के लिए जनता से वोट की अपील की, बजरंग बली का आह्वान किया, लेकिन सारे प्रयत्न बेकार हुए।
भाजपा ने अहम नेता को कर दिया साइड लाइन
कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार के चुनाव में साइड लाइन रहे। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का बीजेपी ने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनावी मैदान में उतर गए। येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया।
बीजेपी नहीं काट पाई सत्ता विरोधी लहर
कर्नाटक में बीजेपी की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है। बीजेपी के सत्ता में रहने की वजह से उसके खिलाफ लोगों में नाराजगी थी। बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में बीजेपी पूरी तरह से असफल रही।
भारत जोड़ो यात्रा बनी कांग्रेस का जीत मंत्र
कांग्रेस ने मतदान से पहले किया था दलबदल
19 फरवरी 2023 को बीजेपी नेता एचडी थमैय्या अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। 9 मार्च 2023 को बीजेपी एमएलसी पुत्तन्ना कांग्रेस में शामिल हो गए। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने 16 अप्रैल 2023 को भाजपा छोड़ दी और अगले दिन कांग्रेस में शामिल हो गए। चुनाव से पहले भाजपा छोड़ने वाले अन्य नेताओं में लक्ष्मण सावदी, एस अंगारा, सांसद कुमारस्वामी और आर. शंकर शामिल हैं।
कांग्रेस ने बंद किया नफरत का बाजार
कर्नाटक की जनता ने भाजपा के वादों की बजाय कांग्रेस के वादे और धर्मनिरपेक्षता को समर्थन देना चाहा। कांग्रेस के घोषणापत्र ने महान कवि कुवेम्पु की प्रसिद्ध पंक्ति, “सर्व जनंगदा शांतिया थोटा” (वह उद्यान जहां सभी समुदाय शांति से रहते हैं) को अपने मूलमंत्र के रूप में शामिल किया था। नतीजे बताते हैं कर्नाटक की जनता को यह पसंद आया।