गुजरात जीत में ये हैं 10 फैक्टर, जिन्होंने पीएम मोदी को बनाया सरदार
गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर अपना दम दिखाया है। लगातार 22 साल तक सरकार में रहने के बाद बीजेपी ने कांग्रेस को फिर से मात देते हुए जीत दर्ज की है। आखिर क्या रहे बीजेपी की जीत के प्रमुख कारण, आइए डालते हैं एक नजर…
मोदी इफेक्ट
गुजरात में बीजेपी को एक बार फिर सत्ता दिलाने का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से प्रदेश में बीजेपी कमजोर पड़ रही थी। कई बड़े आंदोलन प्रदेश सरकार के खिलाफ हुए, लेकिन प्रचार की कमान जब मोदी ने संभाली तो सभी मुद्दे पीछे छूट गए। मोदी ने धुंआधार 36 से ज्यादा रैलियां कीं और अपने व्यक्तित्व के करिश्मे से सीधे वोटरों तक पहुंचने में कामयाब रहे। उन्होंने हर सभा में गुजराती में भाषण दिया और ‘गुजरात के बेटे’ को जिताने की भावनात्मक अपील की। मोदी का यह दांव काम कर गया।
भरोसा जीतने में नाकाम कांग्रेस
गुजरात में 22 साल के सत्ता के सूखे को खत्म करने के लिए कांग्रेस ने भरपूर कोशिश की। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जमकर मेहनत की और मोदी के गढ़ में जाकर उन्हें चैलेंज किया, लेकिन कांग्रेस वोटरों में यह भरोसा जगाने में नाकाम रही कि वह सरकार बना सकती है। लोगों में यह संदेश गया कि कांग्रेस खुद के बल पर नहीं बल्कि हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश के सहारे सत्ता हासिल करना चाहती है। प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार में कूदने के बाद कांग्रेस की यह नकरात्मक छवि और मजबूत हुई।
बीजेपी के ‘चाणक्य’ का कमाल
टीम बीजेपी में पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा भी कई दिग्गज चेहरे रहे जिनका बीजेपी की जीत में अहम योगदान है। बीजेपी के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले अध्यक्ष अमित शाह, सीएम विजय रुपाणी, उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, कई केंद्रीय मंत्री, अन्य राज्यों से आए नेताओं ने जमकर प्रचार किया और वोटर्स को अपने पक्ष में किया।
मोदी-शाह का लोकल कनेक्ट
पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान खुद को गुजरात का बेटा बताते हुए इस चुनाव को सीधे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। अमित शाह भी गुजरात की मिट्टी में ही राजनीति करते हुए परिपक्व हुए हैं। बीजेपी के इन दो दिग्गजों का गुजरात से होना, पार्टी के लिए बड़ा फैक्टर रहा। दोनों नेता गुजराती भाषा में प्रचार कर वोटरों तक सीधे पैठ बनाने में कामयाब रहे, जबकि राहुल हिंदी में भाषण देते थे। कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा गुजरात में नहीं था। कांग्रेस दो बड़े नेता अर्जुन मोढवाडिया और शक्ति सिंह गोहिल चुनाव भी हार गए।
अगड़ी जाति, ओबीसी में वर्चस्व
बीजेपी की जीत में अगड़ी जातियों के अलावा ओबीसी जातियों का भी अहम योगदान है। पाटीदारों की कथित नाराजगी से होने वाले नुकसान की भरपाई बीजेपी ने ओबीसी और आदिवासियों से की। पटेल आंदोलन से ओबीसी जातियों को जो खतरा महसूस हो रहा था, बीजेपी उसे भुनाने में कामयाब रही। साथ ही कांग्रेस के समर्थक माने जाने वाले आदिवासियों के बीच भी पार्टी ने जमीनी स्तर पर काम किया, जिसका नतीजा जीत के रूप में हासिल हुआ।
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शहरी वोटर्स के बीच पैठ
बीजेपी का गुजरात में शहरी सीटों पर प्रदर्शन इस बार भी शानदार रहा है। गुजरात में तकरीबन 25 पर्सेंट वोटर्स शेयर मार्केट में निवेश करते हैं। 2014 में बीजेपी के केंद्र में आने के बाद से शेयर मार्केट में रौनक है। इसके चलते इन वोटर्स की आमदनी में इजाफा हुआ है। यही वजह है कि शहरी वोटर ने कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी को तवज्जो दी। उनको आशंका थी कि कांग्रेस के आने पर शेयर बाजार पर जबर्दस्त असर हो सकता है।
जमीनी स्तर पर मजबूती
बीजेपी के पास जमीनी स्तर पर मजबूत बूथ कार्यकर्ता हैं। बीजेपी का बूथ मैनेजमेंट काफी मजबूत है। बीजेपी के पास करीब 7 लाख अधिकृत पन्ना प्रमुख हैं। इनमें से हर प्रमुख के पास एक बूथ पर 20 वोट का जिम्मा था। पिछले 22 सालों के कार्यकाल में बीजेपी ने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की मजबूत फौज खड़ी की है। इस मामले में कांग्रेस बीजेपी से काफी पिछड़ जाती है।
‘नीच’ बयान कांग्रेस को पड़ा भारी
गुजरात चुनाव का प्रचार अभियान जब चरम पर था, उसी बीच कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर का पीएम मोदी को ‘नीच’ कहना बड़ा मुद्दा बन गया। बीजेपी ने इस मुद्दे को हाथों हाथ लिया और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रैलियों में इसे जमकर भुनाया। मोदी ने इसे गुजरात और गुजरात के बेटे का अपमान बताया।
कांग्रेस के शासनकाल की दिलाई याद
बीजेपी ने चुनाव प्रचार में अपने विकास मॉडल का बखान तो किया ही, साथ ही लोगों को यह भी याद दिलाया कि जब कांग्रेस गुजरात में सत्ता में हुआ करती थी, उस वक्त किस तरह के हालात थे। कांग्रेस शासनकाल में कानून व्यवस्था, दंगों और बिजली-सड़क की समस्या की याद दिलाते हुए कांग्रेस को फिर से सत्ता में न लाने की अपील की।
बीजेपी का हमलावर रुख
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान आक्रामक रणनीति अपनाई। ‘पाकिस्तान’ जैसे कुछ मुद्दों को उठाने के लिए पीएम मोदी की आलोचना भी हुई, लेकिन पार्टी ने इसकी कोई परवाह नहीं की। बीजेपी का फोकस सिर्फ इस बात पर रहा कि उसे हर हाल में जीत चाहिए। पार्टी ने कांग्रेस की हर रणनीति का जवाब भी आक्रामकता के साथ दिया।
साभार- नवभारत टाइम्स