कुलदीप नैयर : पत्रकारिता के शिखर पुरुष
कुलदीप नैयर भारत के प्रसिद्ध लेखक एवं पत्रकार हैं। नैयर ने सत्ता के गलियारों में अपनी जान-पहचान का प्रयोग बिचैलिया बनने के लिए नहीं किया। इस परिचय का प्रयोग वे हमेशा सरकार की पोल खोलने के लिए करते रहे हैं। आज के दौर में पत्रकारिता जब सवालों के चक्रव्यूह में फंसी हुई है तो शायद कुलदीप नैयर को जानने-समझने से आज के पत्रकारों को इस चक्रव्यूह को तोड़ने में मदद मिल सकता है।
जीवन परिचय
कुलदीप नैयर का जन्म 14 अगस्त 1924 को सियालकोट(अब पाकिस्तान) में हुआ था। कुलदीप नैयर की स्कूली शिक्षा सियालकोट में हुई और कानून की डिग्री लाहौर से प्राप्त की। उन्होंने यू.एस.ए. से पत्रकारिता की डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने दर्शन शास्त्र में पीएच.डी. किया। वे पेशे से वकील बनना चाहते थे, लेकिन जब वे अपनी वकालत जमा पाते, उससे पहले ही देश का बंटवारा हो गया। उनका परिवार सियालकोट छोड़कर भारत आ गया। यहां उन्होंने पत्रकारिता को आजीविका का माध्यम बनाया।
पत्रकारिता के क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य
कुलदीप नैयर ने अमेरिका के नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर भारत लौटे तो सरकार के मातहत बतौर सूचना अधिकारी काम करने लगे। हालांकि यहां पर भी इनके अंदर का पत्रकार जिंदा रहा, जिसने इनके न्यूज एजेंसी यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) में जाने का रास्ता साफ किया।
नैयर यूएनआई में वे बतौर संपादक चले गए। यूएनआई के प्रायोजक ‘द हिन्दू’, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘अमृत बाजार पत्रिका’, ‘हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड’, ‘आनंद बाजार पत्रिका’, ‘नेशन’ और ‘डेकन हेराल्ड’ थे। कुलदीप नैयर ने न सिर्फ यूएनआई को स्थापित किया, बल्कि इसे ब्रेकिंग और खास खबर का अड्डा बना दिया। यूएनआई के बाद उन्होंने पी.आई.बी. ‘द स्टैट्समैन’ ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे। कुलदीप नैयर 25 वर्षों तक ‘द टाइम्स’ लन्दन के संवाददाता भी रहे।
कलम को नहीं दिया विराम
आपातकाल के साथ जैसे जयप्रकाश नारायण, जनता पार्टी का नाम जुड़ा है, कुछ-कुछ वैसे ही कुलदीप नैयर का भी। 1975 के उन वर्षों को याद करें तो वे बड़े गहमा-गहमी के वर्ष थे। यूनिवार्ता की स्थापना और शुरूआत करके वे स्टैंट्समैन में उन दिनों काम कर रहे थे। 1977 के दौर में वह ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में आए।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में कुलदीप नैयर ‘बिटवीन द लाइन्स’ नाम से कॉलम लिखते थे। इसमें वे सरकार के क्रिया-कलाप की खूब खिंचाई करते थे। हालांकि, तब आपातकाल लागू था। फिर भी उन्होंने अपनी कलम नहीं रोकी। सत्ता की तानाशाही के खिलाफ वे लिखते रहे। आखिरकार सरकार ने उनकी कलम को विराम देने के लिए उन्हें जेल का रास्ता दिखा दिया था।
रचनाएं
सन 1985 से उनके द्वारा लिखे गए ‘सिण्डिकेट कॉलम’ विश्व के अस्सी से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। ‘बिटवीन द लाइन्स’, ‘डिस्टेण्ट नेवर: ए टेल ऑफ द सब कॉनण्टीनेण्ट’, ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’, ‘वाल एट वाघा, इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप’, ‘इंडिया हाउस’, ‘स्कूप’ (सभी अंग्रेजी में) जैसे किताबों के अलावा ‘द डे लुक्स ओल्ड’ के नाम से प्रकाशित कुलदीप नैयर की आत्मकथा भी काफी चर्चित रही है।
आत्मकथा
कुलदीप नैयर की आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइंस’ अंग्रेजी में छपी उसके फौरन बाद हिंदी में राजकमल प्रकाशन से उसका हिंदी अनुवाद ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ आजादी से आज तक के भारत की अंदरुनी कहानी के नाम से आया है। कुलदीप नैयर की आत्मकथा इस मायने में थोडी अहम है कि उसमें आजाद भारत की राजनीति का इतिहास है।
मानवाधिकार की लड़ाई में रहे आगे
कुलदीप नैयर मानवाधिकार से जुड़े मामलों में वे हर जगह खड़े दिखाई देते हैं। अन्ना आंदोलन हो, निर्भया को इंसाफ दिलाने की बात हो या फिर विनायक सेन का मुद्दा इनके अधिकार की लड़ाई को लेकर वे हमेशा अगली कतार में खड़े रहे। 2000 के बाद वे हर साल 14/15 अगस्त को बाघा बार्डर पर एक शांति मार्च का नेतृत्व करते हैं। वे पाकिस्तान से भारतीय कैदियों की रिहाई और भारत से पाकिस्तानी कैदियों को मुक्त कराने के काम में जुटे हुए हैं।
‘स्कूप’ के लिए मशहूर
कुलदीप नैयर पत्रकारिता और राजनीति में अपने सार्थक प्रयास के लिए पहचाने जाते हैं। वे अनेक स्कूप (जो खबर किसी को न मिले) के लिए मशहूर हैं। उदाहरण के तौर पर कुलदीप नैयर ने ही सबसे पहले यह खबर 1976 में दी कि इंदिरा गांधी लोकसभा का चुनाव कराने जा रही हैं। तब देश में आपातकाल का दौर चल रहा था।
पुरस्कार
नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी द्वारा ‘एल्यूमिनी मेरिट अवार्ड’ (1999)। सन 1990 में ब्रिटेन के उच्चायुक्त नियुक्त किए गए। सन 1996 में भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजे गए प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य भी रहे। अगस्त, 1997 में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। 2014 में सरहद संस्था की ओर से दिया जाने वाला संत नामदेव राष्ट्रीय पुरस्कार कुलदीप नैयर को मिला। इसले अलावा 23 नवंबर 2015 को उन्हें पत्रकारिता में आजीवन उपलब्धि के लिए रामनाथ गोयनका स्मृ़ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।