विनोद मेहता: निर्भीक पत्रकारिता की मशाल
विनोद मेहता जाने माने पत्रकार, आउटलुक पत्रिका के संस्थापक एवं मुख्य संपादक थे। निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का पालन भारतीय राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों में हमेशा से कठिन रहा है। आजादी के बाद भारतीय पत्रकारिता में अलग तरह की चुनौतियां रही हैं। इस दृष्टि से विनोद मेहता ने पिछले 42 वर्षों में भारतीय पत्रकारिता में नए प्रयोगों के साथ निष्पक्ष एवं प्रोफेशनल मानदंड स्थापित किए। ऐसा प्रतिद्वंद्वी विरला ही मिलेगा जिसके पास उनके लिए दो अच्छे शब्द न हों।
जन्म
विनोद मेहता का जन्म 31 मई 1942 में रावलपिंडी में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। उन्हें पत्रकारिता जगत में एक बोल्ड फिगर के रूप में जाना जाता था।
पत्रकारिता में योगदान
विनोद मेहता मौजूदा दौर के सबसे प्रयोगधर्मी संपादक रहे। उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन करियर की शुरुआत प्लेब्वॉय के भारतीय संस्करण ‘डेबोनियर’ के संपादक के तौर पर की। चलताऊ मैगजीन से शुरू हुआ उनका सफर हार्डकोर न्यूज की दुनिया के सबसे कद्दावर संपादक के रूप में पूरा हुआ। उन्होंने अपने इस सफर के दौरान भारत के सबसे पहले साप्ताहिक अखबार, द संडे आब्जर्वर को शुरू किया। इसके बाद इंडियन पोस्ट और इंडिपेंडेंट जैसे अखबारों को संभाला। इसके बाद पायनियर के दिल्ली संस्करण की शुरुआत की और इन सबके बाद करीब डेढ़ दशक तक आउटलुक समूह की दस पत्रिकाओं का संपादन किया।
आउटलुक के संस्थापक
आउटलुक के संस्थापक प्रधान संपादक के तौर पर विनोद मेहता ने भारतीय मैगजीन पत्रकारिता में रुख की ताजगी, मन का खुलापन और स्पर्श की सहजता भरकर उसे फिर ऊर्जावान कर दिया। ये बातें अब भी भारत के प्रमुख अंग्रेजी समाचार साप्ताहिक आउटलुक और उसकी सहयोगी पत्रिकाओं आउटलुक हिंदी, आउटलुक बिजनेस, आउटलुक मनी और आउटलुक ट्रेवलर को दिशा दे रहे हैं।
खुल्लम-खुल्ला कट्टर क्रिकेट प्रेमी और भोजन भट्ट विनोद मेहता सुरुचिपूर्ण गपशप के चुंबक थे। अपनी गपशप वह आउटलुक के अंतिम पृष्ठ पर अपनी बहुपठित डायरियों के जरिये बड़ी दक्षता से पूरी व्यवस्था में खोलकर फैला देते थे। अतिशयोक्ति और भारी-भरकम शब्दों से विनोद मेहता को नफरत थी। महत्वपूर्ण को दिलचस्प बनाना उनकी पत्रिका का सिद्धांत था।
शिखर पर आउटलुक
आउटलुक को अलग बनाने की उनकी जद्दोजहद किसी को भी प्रेरित कर सकती है। मैच फिक्सिंग की खबर हो, या फिर अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के बीच टकराव की खबर हो या फिर राडिया टेप से जुड़े दस्तावेज को प्रकाशित करने का मामला। इन तमाम खबरों पर काम करने के दौरान किस तरह की चुनौतियां सामने थीं, इसको उन्होंने सहज अंदाज में बताया है। एक समय ऐसा आया कि आउटलुक पत्रिका ने भारतीय समाचार पत्रिकाओं में सबसे लोकप्रिय पत्रिका इंडिया टुडे को पीछे छोड़ दिया था।
निष्पक्ष पत्रकारिता
विनोद मेहता ने अटल बिहारी वाजपेयी का पहला इंटरव्यू सत्तर के दशक में डेबोनायर जैसी पत्रिका में किया था और उनके प्रधानमंत्री बनने पर भी उनसे प्रोफेशनल मुलाकात करते रहे। लेकिन आउटलुक पत्रिका में अटलजी के परिजनों के उल्लेख सहित एक सनसनीखेज रिपोर्ट छापने के बाद भाजपा नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार का कोपभाजन उन्हें तथा आउटलुक समूह को बनना पड़ा। फिर भी अटल बिहारी वाजपेयी के प्रति उन्होंने कभी निजी कटुता नहीं पाली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीब होने की धारणा लोगों ने बनाकर रखी थी, लेकिन कांग्रेस नेताओं के कारनामों की तथ्यात्मक रिपोर्ट छापने में उन्होंने कभी संकोच नहीं किया।
निधन
लंबी बीमारी के कारण 8 मार्च, 2015 को विनोद मेहता का निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे। प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया था ‘मेहता खुले और प्रत्यक्ष विचार रखते थे। विनोद मेहता को एक जहीन पत्रकार और लेखक के रूप में याद किया जाएगा। उनके निधन पर उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं।’