स्कूल में हुए थे दो बार फेल, जानें कैसे खड़ी कर दी करोड़ों कंपनी

0

एक आइडिया किसी की भी जिन्दगी बदल सकता है, बस उसमें नयापन होना चाहिए। ऐसी ही कुछ कहानी है जोमैटो के संस्थापक दीपिंदर गोयल की। जिनके दिमाग में अचानक एक आइडिया आया और उन्होंने फूड पोर्टल की शुरुआत कर दी। आज इनके इस फूड वेबसाइट पर 23 देशों के 12 लाख रेस्तरां की जानकारी उपलब्ध है।

2005 में एमटेक की डिग्री पूरी होते ही उन्हें ‘बेन एंड कंपनी’ में बतौर कंसल्टेंट जॉब मिली। लंच के दौरान वे अपने सहकर्मियों को कैफेटेरिया में मेन्यू कार्ड देखने के लिए लंबी लाइन में इंतजार करते हुए देखते। इसमें लोगों का काफी वक्त बर्बाद हो जाता था। दीपिंदर को अपने दोस्तों का समय बचाने के लिए मैन्यू कार्ड स्कैन करके साइट पर अपलोड करने का विचार सूझा। देखते ही देखते साइट पॉपुलर हो गई। हिट पर हिट मिलने लगे। यहीं से दीपिंदर को फूड पोर्टल का आइडिया मिला।

‘फूडीबे डॉट काम’ की शुरुआत

दीपिंदर ने फूड पोर्टल के आइडिया के बारे में सबसे पहले अपने सहकर्मी पंकज चड्ढा से बात की। नौकरी के साथ ही दोनों ने ‘फूडीबे डॉट काम’ की शुरुआत की। उनका मकसद यूजर्स के लिए लोकेशन, कीमत और लोकप्रियता के आधार पर रेस्तरां की खोज को आसान बनाना था। 2009 में फूडीबे से प्रॉफिट मिलने लगा और दीपिंदर ने जॉब छोड़कर पूरा ध्यान पोर्टल पर केंद्रित कर दिया। 2010 में उन्होंने फूडीबे का नाम बदलने का प्लान किया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि यूजर्स को लगे कि यह ई-बे का हिस्सा है। वे खाने की किसी चीज से मिलता-जुलता नाम चाहते थे। इसलिए टोमैटो की तुकबंदी पर ज़ोमैटो नाम फाइनल किया।

छठी कक्षा में हो गए थे फेल

आठवीं कक्षा तक गोयल को पढ़ाई-लिखाई में कई मुश्किलें आईं। छठी कक्षा में फेल होने के बाद उन्हें समझ में आ गया था कि किताबों से दोस्ती करना उसके बस की नहीं है। मगर पढ़ाई तो करनी ही थी। आठवीं कक्षा की परीक्षा में टीचर द्वारा सभी आंसर बताए जाने के बाद क्लास में टॉप किया। इससे उनमें फॉल्स कॉन्फिडेंस भर गया। इस घटना के बाद उन्होंने खुद को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया।

आईआईटी-जेईई क्लीयर किया

9वीं और 10वीं में उनका रिजल्ट अच्छा रहा। फिर उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी में दाखिला ले लिया और पहले ही वर्ष फेल हो गए। उनका कहना था कि वहां के 500 स्टूडेंट्स उनसे बेहतर थे। ऐसे में उनका आगे निकलना असंभव था। उनके जीवन में सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब उन्होंने पहली बार में आईआईटी-जेईई क्लीयर किया। उनका कहना है कि यह परीक्षा स्टूडेंट का माइंडसेट टेस्ट करती है। आपको क्या आता है और क्या नहीं, इस बारे में टेस्ट नहीं करती है।

फिल्मी कहानी से कम नहीं है लव स्टोरी

दीपिंदर की लव-स्टोरी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वे 18 वर्ष के थे तो आईआईटी दिल्ली में उन्होंने पहली बार कंचन जोशी को देखा और देखते ही प्यार हो गया। 6 महीने तक पीछे भागने के बाद कंचन ने हां कही। 2007 में शादी हुई और 2013 में बेटी, सिआरा का जन्म हुआ।

बदल गया जीवन

दीपिंदर का कहना है कि सिआरा के जन्म के बाद सब बदल गया। अब वे ज्यादा तेज कार नहीं चलाते, जबकि उन्हें 190 किमी/घंटे की रफ्तार पर कार दौड़ाना पसंद है। वे सप्ताह में 4 से 5 दिन 7.30 बजे उठकर जिम जाते हैं। वे खाने-पीने की तरफ खास ध्यान देते हैं। इसीलिए पिछले 5-6 साल से उन्हें पेट की कोई शिकायत नहीं हुई है।

Also read : ये हैं यूपी सरकार के पूर्व मंत्री, बेटे की कमाई पर कर रहे हैं जीवन यापन

जिस घर में पीजी में रहे उनसे मिलने आज भी जाते हैं

दीपिंदर का कहना है कि वे यूजर्स तक सबसे पॉपुलर और फेवरेट रेस्तरां के मेन्यू पहुंचाते हैं, लेकिन खुद उन्हें घर का खाना पसंद है। चंडीगढ़ में वे जिस महिला के घर में पीजी रहते थे, उनसे अकसर मिलने जाते हैं। पीजी में उनके दोस्त रहे अभिमन्यु सूद का कहना है कि दीपी भइया (दीपिंदर का प्यार का नाम) रिश्तों को बहुत महत्व देते हैं। वे अपने दोस्तों के साथ जुड़े रहते हैं। उन्हें दूसरों की चिंता भी है। उन्हें क्रिकेट पसंद है। वे कई बार पीजी में खाना बनाकर खिलाते थे।

फैमिली नहीं थी तैयार

उनके लिए अच्छे पैकेज वाली नौकरी छोड़कर खुद का काम करने करने का निर्णय लेना बिलकुल आसान नहीं था। उनका कहना है कि माता-पिता को आंत्रप्रेन्योरशिप के लिए राजी करने में बहुत समय लग गया था। उनके माता-पिता शुरू में बिलकुल खुश नहीं थे। लेकिन उनकी पत्नी हमेशा साथ खड़ी रहीं। कंचन लाइमलाइट से दूर रहना पसंद करती हैं। जब पति को स्टार्टअप में उनकी जरूरत महसूस होती है तो वे पूरा सहयोग देती हैं। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी में मैथ्स प्रोफेसर हैं।

टीम के लिए हैं प्रोटेक्टिव

वे अपनी टीम से बहुत प्यार करते हैं और उन्हें साथ जोड़े रखने के लिए अथक प्रयास भी करते हैं। वे अपनी टीम को लेकर काफी प्रोटेक्टिव हैं। उनका मानना है कि लोगों को साथ जोड़े रखने के लिए सैलरी जरूरी है, लेकिन अगर वे अपना विज़न टीम के साथ बांटेंगे और उन्हें कंपनी का महत्वपूर्ण हिस्सा समझेंगे तो कोई कभी उनको छोड़कर कंपीटिटर के पास नहीं जाएगा।

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More