बिहार जातीय जनगणना पर पटना हाईकोर्ट ने लगाई रोक

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बिहार जातीय जनगणना पर पटना हाईकोर्ट तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. बिहार में हो रही जातीय जनगणना पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई के बाद पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने आज यानी गुरुवार को अपना फैसला सुनाया है. पिछले तीन दिनों से पटना हाई कोर्ट में इस मामले में बहस चल रही थी. मंगलवार को याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि जातीय जनगणना कराने का सरकार का फैसला नागरिकों की निजता का हनन है. तो वहीं बिहार सरकार की तरफ से इसपर महाधिवक्ता पीके शाही ने सरकार का पक्ष रखा था और कहा था कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए जातीय जनगणना जरूरी है. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि भारक के संविधान के अनुच्छेद 37 के तहत प्रदेश सरकार का हक है कि वह अपने नागरिकों के बारे में जानकारी लें.

इसके बाद पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था और अब गुरुवार को इसपर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का अंतरिम आदेश पटना हाईकोर्ट ने दिया है. अब इस मामले में अगली सुनवाई तीन जुलाई को होगी.

इसके पहले जातीय जनगणना पर रोक लगाने की मांग को लेकर नालंदा के अखिलेश कुमार सुप्रीम कोर्ट गए थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पटना हाई कोर्ट जाने के निर्देश दिया था और कहा था कि वह अगर पटना हाई कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं होते हैं तो सुप्रीम कोर्ट वापस आ सकते हैं. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट को जल्द सुनवाई पूरी कर अंतरिम आदेश देने का निर्देश दिया था. इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए जातीय जनगणना पर तत्काल रोक लगा दी है. कोर्ट ने अबतक हुई गणना के डेटा को सुरक्षित रखने के आदेश सरकार को दिया है.

जातीय जनगणना से सबको फायदा-सीएम…

जातीय जनगणना पर रोक लगाने की पटना हाईकोर्ट के फैसले से कुछ घंटे पहले ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कहा था जातीय जनगणना सब के हित में है. उन्होंने कहा ये बात उनकी समझ से परे हैं कि लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं. उन्होंने कहा था कि जातीय जनगणना से सबको फायदा होगा. इसके साथ ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना नहीं कराने के लिए केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा था.

दूसरे फेज में है जातीय जनगणना…

पटना हाईकोर्ट के आदेश से पहले बिहार में जातीय जनगणना का दूसरा चरण चल रहा है. जनगणना के काम में शिक्षकों और दूसरे कर्मियों को लगाया गया है. इससे पहले बिहार में जातीय जनगणना कराने के लिए बिहार विधानसभा और विधान परिषद ने प्रस्ताव पारित किया था. जिस पर बिहार की तमाम पार्टियों ने अपनी सहमति जताई थी. इसके बाद सभी दलों का एक प्रतिनिधिमंडल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलने गया था. लेकिन केंद्र ने इससे इंकार कर दिया था. इसके बाद बिहार सरकार ने अपने स्तर से बिहार में जातीय जनगणना करानी शुरू कर दी. जिस पर 500 करोड़ रुपए का खर्च का अनुमान लगाया गया है.

 

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