भंडारी ने बढ़ाया देश का गौरव, ICJ में दोबारा बने जज
हम भारतीय जहां जाते है जीत का परचम लहरा के ही आते है। चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो। ऐसी ही देश का गौरव बढ़ाय़ा है दलवीर भंडारी ने। भंडारी ने इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस मे दोबारा जज के तौर पर चयनित होकर न सिर्फ अपने कुल का बल्कि देश का मान बढाया है।
कब हुआ था आईसीजे का गठन
इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का गठन 1946 में हुआ था। उस दौर में ब्रिटेन दुनिया की बड़ी ताकत था और तब से आज तक आईसीजे में उसका कोई न कोई जज जरूर रहता था।
बधाईयों का लगा ताता
जज की आखिरी सीट के लिए भंडारी और ब्रिटेन के दावेदार के बीच मुकाबला था लेकिन आखिरी क्षणों में ब्रिटेन ने अपने उम्मीदवार को चुनाव से हटा लिया। इस बीच आईसीजे में भारत की जीत पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्विटर पर खुशी जताते हुए लिखा, ‘वंदे मातरम- भारत ने इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चुनाव जीत लिया। जय हिंद।’
न्यायिक संस्था आईसीजे में 15 जज होते हैं
कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के अलग हटने के चलते उसकी ताकत कम हुई और इसी के चलते उसे चुनाव से अपने उम्मीदवार को हटाना पड़ा। नीदरलैंड के हेग स्थित संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी न्यायिक संस्था आईसीजे में 15 जज होते हैं। यह संस्था दो या उससे अधिक देशों के बीच के विवादों के निपटारे करने का काम करती है।
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हर तीन साल बाद आईसीजे में 5 जजों का चुनाव होता है। इन जजों का कार्यकाल 9 साल का होता है। चार राउंड की वोटिंग के बाद फ्रांस के रूनी अब्राहम, सोमालिया के अब्दुलकावी अहमद युसूफ, ब्राजील के एंटोनियो अगुस्टो कैंकाडो, लेबनान के नवाफ सलाम को गुरुवार को आईसीजे के जज के तौर पर चुन लिया गया।
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इन चारों को संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद में आसानी से बहुमत मिल गया था। इसके बाद आखिरी बची सीट पर भारत और ब्रिटेन के बीच कड़ा मुकाबला था। ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड और भारत के दलवीर भंडारी दोबारा निर्वाचन के लिए मुकाबले में थे। 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में ग्रीनवुड को सुरक्षा परिषद में बहुमत मिलता दिख रहा था, जबकि 193 देशों की आम महासभा में भंडारी को समर्थन था।
लेकिन, अंत में सुरक्षा परिषद में भी भंडारी को सपॉर्ट मिला, जबकि कमजोर समर्थन के चलते ब्रिटेन को ग्रीनवुड्स की उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी। इसके चलते सोमवार को भंडारी आसानी से महासभा और परिषद द्वारा चुन लिए गए। आईसीजे से पहली बार बाहर होने पर ब्रिटेन के यूएन ऐंबैसडर मैथ्यू रिक्रॉफ्ट ने कहा, ‘निश्चित तौर पर हमें निराशा हुई है। लेकिन, छह कैंडिडेट्स के बीच निश्चित तौर पर यह कड़ा मुकाबला था।’ उन्होंने कहा कि युनाइटेड किंगडम की ओर से कोर्ट के काम को पहले की तरह सपॉर्ट मिलता रहेगा।
क्या कहते है जानकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता नित्य प्रकाश तिवारी ने बताया कि आईसीजे में कुल 15 सदस्य होते है जिनमें से भंडारी के फेवर में जाते देख बाकी 14 फेवर में थे। चुनाव के दौरान जीत भंडारी के पाले में जाती देख ब्रिटेन के सदस्य ने अपना नाम वापस ले लिया। तिवारी ने बताया की आईसीजे में किसी स्टेट की रिजर्व सीट नहीं होती इस लिए ये जीत अपने देश के लिए बहुत ही खास है।
(साभार – एनबीटी)
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