देश में एक जिला ऐसा, जहां सरकारी दफ्तरों में पहले होता है राष्ट्रगान, फिर कोई काम

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सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाहॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने का आदेश दे दिया है। कोर्ट के इस आदेश के बाद सोशल मीडिया पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली। हमें यह सोचना पड़ेगा कि आखिर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा आदेश क्यों देना पड़ा? जाहिर सी बात है कि हममें कहीं न कहीं कोई कमी रह गई है। हमारे राष्ट्र प्रेम और देशभक्ति की भावना में कुछ हद तक गिरावट आई है। सोचिए अगर हम अपने दिन की शुरुआत राष्ट्रगान से करें तो कैसा होगा ? इससे हमारे मन में देशभक्ति की भावना भी जगेगी और अपने काम के प्रति इमानदारी भी रहेंगे। ऐसा ही कुछ करने का प्रयास कर रही हैं, बिहार के वैशाली जिले की डीएम रचना पाटिल।

रचना ने जिले भर के सरकारी दफ्तरों में सराहनीय बदलाव किया है। उन्होंने ये सुनिश्चित करवाया है कि सरकारी दफ्तरों में कामकाज शुरू होने से पहले सारे कर्मचारी मिलकर राष्ट्रगान गाएंगे और ऐसा हो भी रहा है। पूरे देश में सरकारी दफ्तरों में शायद ही ऐसा कोई दूसरा उदाहरण मिले,जहां प्रतिदिन सबसे पहले सभी मिलकर ‘जन गण मन..’ गाते हों फिर हाजिजरी लगती है। इसके अलावा रचना ने एक और काम किया है, उन्होंने लेटकमर्स के लिए दफ्तर के गेट बंद करवा दिए हैं, साथ ही बोर्ड पर रोज नया ‘थॉट्स आफ द डे’ लिखा जा रहा है। यह सब होने के बाद वैशाली जिले के सरकारी दफ्तरों में जनता-जनार्दन की समस्याएं सुनी जाती हैं। अब यहां के दफ्तरों में फाइलें तेजी से सरकने लगी हैं, जिससे लोगों की शिकायतों में कमी आ रही है।

अपने इस अनोखे प्रयोग से 2010 बैच की आईएएस अधिकारी वैशाली की डीएम रचना पाटिल काफी खुश हैं। वो सकारात्मक बदलाव महसूस करती हैं। इस बारे में रचना ने बताया कि”मैं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में पली-बढ़ी हूं। बचपन में स्कूल जाती थी,तो सबसे पहले प्रार्थना होती थी। हम सभी मिलकर ‘जन गण मन..’ गाते थे। आगे की जिंदगी में ऐसे मौके कम आते हैं। पर,जब मैं आईएएस बनी और वैशाली में कलेक्टर बनकर आई तो लगा कि राष्ट्रगान के दैनिक गायन से न सिर्फ हम अपने भीतर ऊर्जा का संचार कर सकते हैं, बल्कि स्वयं को अनुशासित भी कर सकते हैं। इसलिए 1 जनवरी,2016 से वैशाली में इसकी शुरुआत कर दी।”

रचना कहती हैं कि‘‘लोगों देखकर अच्छा लगता है कि कलेक्टरेट में कोई पांच सौ सरकारी कर्मचारी तय समय पर साथ मिलकर राष्ट्रगान को गा रहे हैं। यहां कोई बड़ा-छोटा नहीं होता। सभी के बोल साथ-साथ चलते हैं।”

कलेक्टरेट के बाद रचना पाटिल ने पूरे वैशाली के अधीनस्थ सरकारी दफ्तरों में भी इसे आवश्यक कर दिया है।रचना पाटिल कहती हैं कि ‘जन गण मन…’ की क्लास के कई फायदे मिल रहे हैं। “समय से दफ्तर में हाजिरी बढ़ गई है। राष्ट्रगान के बाद लेटकमर्स के लिए गेट बंद कर दिए जाते हैं। फिर लेट आए कर्मी को कारण बताना होता है। समझ सकते हैं, रोज बहाने नहीं गढ़े जा सकते हैं।”

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रचना पाटिल बताती हैं कि ‘थॉट्स आफ द डे’ को भी उन्होंने रोज के काम का हिस्सा बना लिया है। बोर्ड पर ‘आज का सुविचार’ कोई भी लिख सकता है। तैयार होकर आने वालों की संख्या बढ़ रही है।

जिलाधिकारी की मानें,तो अधिकारी-कर्मचारी के बीच नए प्रयोग से न सिर्फ ‘कम्युनिकेशन गैप’, बल्कि ‘मेंटल गैप’ भी कम हुआ है।वह कहती हैं कि हां,सही है कि इस दैनिक अभ्यास में थोड़ा वक्त लगता है।लेकिन आगे की हकीकत और बड़ी जीत यह है कि कार्यालय में काम का संस्कार बदल गया है। सभी निश्चित समय से अपने दफ्तर में होते हैं। काम तेजी से होने लगा है। पेंडिंग काम कम हुआ है। संचिकाओं के निष्पादन ने तेजी पकड़ ली है। आफिस से ‘बाबू’ के गायब होने की जनता की शिकायतें अब कम मिलती हैं।

हां,’जन गण मन…’ के दैनिक गायन की सुखद दिनचर्या के अलावा रचना पाटिल ने सबों के लिए सरकारी ‘ड्रेस कोड’ को भी अनिवार्य कर दिया है। कैजुअल ड्रेस में आने की मनाही कर दी गई है। मतलब जिंस-टीशर्ट वैशाली के कलेक्टरेट में अब नहीं चलेगा। धोती-कुर्ता पर रोक नहीं है। रचना कहती हैं कि यह जरुरी है। आप काम करने को दफ्तर जा रहे हैं, तो फिर कैजुअल तो कुछ भी नहीं चलेगा। सब कुछ अनुशासित दिखना चाहिए। रचना कहती हैं कि बदलाव बेहतरी के लिए है। आगे सबको अच्छा लगेगा। मैं स्वयं मानीटर करती हूं। बच्चे जब ड्रेस में स्कूल जाते हैं,तो आवश्यक काम करने को आप दफ्तर क्यों कैजुअली जायेंगे?

 

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