जानिये क्यों, वैज्ञानिक चमगादड़ से ही कोरोना की वैक्सीन बना रहे?

इसके प्रति समाज में नकारात्मकता की वजह से शोध कम

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चमगादड़ Bat सालों से मनुष्यों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ है। इसका कारण इसके प्रति समाज में एक नकारात्मकता है। इसके शरीर में 500 तरह के वायरस पाये जाते हैं। चूंकि, यह स्तनधारी जीव है मनुष्यों की ही तरह, इस नाते वायरस के संक्रमण का खतरा हमेशा ही बना रहता है।

माना जा रहा कि चमगादड़ से ही कोरोना फैला

कोरोनावायरस से फैली बीमारी कोविड-19 के बारे में शुरू-शुरू में दावा किया गया कि यह चमगादड़ Bat से मनुष्य के शरीर में पहुंचा। अफ़वाह तो इसकी भी फैली कि इसे चीन की किसी प्रयोगशाला में तैयार किया गया है। हालांकि, शोध में ऐसी बातें ग़लत साबित हुई हैं। वायरस के अध्ययन के लिए किए जाने वाले जेनॉमिक सीक्वेंस एनालिसिस से यह बात सामने आयी है कि कोविड-19 का जिनैटिक कॉम्बिनेशन, लगभग 40 साल पूर्व के ख़ोजे जा चुके कोरोना वायरस से मिलता जुलता है। इस वायरस का मनुष्य के शरीर में प्रवेश सीधे Bat से न होकर, पंगोलियन नाम के एक जीव माध्यम से हुआ है। एक शोध में मनुष्य के शरीर में ऐसे ज़ीन्स और रिसेप्टर के पाए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है जो कोरोनावायरस के ज़ीन्स और रिसेप्टर से बिलकुल मिलते-जुलते हैं, जिनकी वजह से ही शायद यह मनुष्यों को आसानी से संक्रमित कर रहा है।

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इसे लेकर अंधविश्वास भी

Bat निशिचर जीव होने के कारण रात में ही सभी क्रियाओं के लिए सक्रिय होते हैं। इनसे जुड़ी नकारात्मक मान्यताओं की बात की जाए तो इन्हें बुरी आत्माओं का साया, भूत-प्रेत और एक रहस्यमय जीव माना जाता है। कहीं-कहीं ऐसी भी मान्यता है कि जहां इनका निवास होता है, वहां खजाना छुपा होता है। भारत के कुछ हिस्सो में इनको खाने के लिए फल-फूल भी दिये जाते हैं, जिसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है।

दो तरह के चमगादड़

अब तक हुए खोज के अनुसार दुनियाभर में स्तनधारी प्रजातियों की संख्या लगभग 6,495 हैं, जिसमें से लगभग 1,400 के आस-पास Bat है। रहन-सहन और खान-पान के आधार पर Bat को दो उपसमूहों- फल खाने और कीट खाने वाली प्रजातियों में विभाजित किया जाता है। पहले उपसमूह के Bat, जिनकी प्रजातियों की संख्या 186 है। मुख्य रूप से पुराने, लम्बे, छायादार पेड़, घनी पत्तियों और पुराने घरों की छतों में रहते है। दूसरे उपसमूह के चमगादड़, आकार में छोटे होते हैं जो पुराने घर, खंडहर, पेड़ और दीवार की दरारों आदि में रहते हैं। इस समूह के चमगादड़ की आंखें नहीं होती हैं। इसलिए ये अपना शिकार और सफ़र अपने शरीर द्वारा उत्पन्न तरंगों की मदद से करते हैं।

bat

एक रात में लगभग 160 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है

दुनियाभर में पाये जाने वाले सभी जीव-जन्तुओं में, Bat ही एकमात्र स्तनधारी जीव है, जो उड़ने में सर्वाधिक सक्षम है। ये एक रात में लगभग 160 किलोमीटर तक की दूरी, खाने के लिए तय करते हैं और लगभग 1,500 किलोमीटर की दूरी मौसमी प्रवास के समय करते हैं।

चमगादड़ ही काम आएगा

अब एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि अब चमगादड़ ही मानव जाति को बचाने के काम आएगा। इस वैज्ञानिक ने चमगादड़ों पर कई साल अध्ययन किया है।
दुनियाभर के शोधकर्ता चमगादड़ों से के अंदर मौजूद 500 से ज्यादा कोरोना वायरसों की खोज कर चुके हैं, जो इंसानों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन चमगादड़ों और वायरसों को ऐसी गुफाओं में खोजा गया है, जहां इनकी पूरी बस्ती है। वैज्ञानिक यहां से चमगादड़ों के जालों, थूक और खून समेत कई तरह के नमूने एकत्रित करते हैं।
जिस वैज्ञानिक ने यह दावा किया है उनका नाम है पीटर डैसजैक।
पीटर दुनिया भर के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को हर तरह के वायरस की जानकारी देते हैं।

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कई वायरसों की ऐंटीबाडी मिली

पीटर डैसजैक ने कहा कि चमगादड़ों के खून में कोरोना और उसके जैसे कई वायरसों से लड़ने वाले एंटीबॉडी मिले हैं। ये एंटीबॉडी चमगादड़ों को कोरोना जैसे कई वायरसों से लड़ने में मदद करते हैं।
पीटर डैसजैक ने कहा कि इन्हीं एंटीबॉडी की मदद से कोविड-19 कोरोना वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीन बनाया जा सकता है।

पीटर डैसजैक ने बताया कि 2003 में सार्स से पहले कोरोना वायरस के बारे में ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ था। उस समय तक सिर्फ दो प्रकार के वायरस के बारे में पता था, जिसे 1960 में खोजा गया था।

भारतीय चमगादड़ की दो प्रजातियों में मिला कोरोना वायरस

कोरोना वायरस आखिर इंसानों तक पहुंचा कैसे? ये एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब दुनिया भर के वैज्ञानिक तलाश रहे हैं। इसी कड़ी में भारतीय वैज्ञानिकों के हाथों एक बड़ी उपलब्धि लगी है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने पहली बार एक अलग किस्म के कोरोना वायरस की पहचान की है। ये वायरस, चमगादड़ में पाया जाने वाला बैट कोरोना वायरस है।
कोरोना वायरस वाली चमगादड़ की यह दो प्रजातियां देश के चार राज्यों केरल, हिमाचल प्रदेश, पुडुचेरी और तमिलनाडु में पाई गई हैं।

पेरोपस प्रजाति के 25 चमगादड़ों में कोरोना

शोधकर्ता और पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआइवी) की वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा डी. यादव के अनुसार केरल, हिमाचल प्रदेश, पुडुचेरी और तमिलनाडु में रोसेटस और पेरोपस नामक प्रजाति के 25 चमगादड़ों में कोरोना के वायरस पाए गए हैं।

मनुष्य में आने की आशंका क्यों?

ऐसा इनके निवास स्थान में लगातार होने वाले परिवर्तन की वजह से होता है क्योंकि इससे इनके मेटाबॉलिज्म में कई प्रकार का फेरबदल होता रहता है, जो कि वायरस के लिए बहुत अनुकूल होता है। झुंड में रहने की वजह से चमगादड़ एक दूसरे के शरीर में वायरस को तेज़ी से फैलाते हैं। चूंकि ये ऐसे जीव हैं जो मनुष्यों आस-पास रहते हैं, इसलिए इनसे मनुष्यों में वायरस के फैलने की आशंका ज़्यादा होती है।

तंत्रिका तंत्र पीठ की तरफ़ पीछे होता है

चमगादड़ भी मनुष्य की तरह ही मैमल होता है। मैमल उन जीवों को कहा जाता है जो स्तनधारी होते हैं, जिनका दिमाग़ और तंत्रिका तंत्र पीठ की तरफ़ पीछे होता है और जो प्रायः झुंड में रहते हैं। चमगादड़ के कुछ जीन भी मनुष्य से मिलते हैं, इसलिए भी इससे मनुष्य में वायरस के आने की आशंका ज़्यादा होती है।

चमगादड़ मनुष्य के लिए लाभदायक भी

चमगादड परागण के साथ ही विभिन्न प्रकार के कीट-पतंगों का शिकार करते हैं, जिन कीट-पतंगों की वजह से मनुष्य और फसलों को तरह-तरफ़ का रोग होता है. चमगादड उनको खाकर फसलों के लिए जैविक कीटनाशक का काम करते हैं।

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