‘’बड़ौदा डायनामाइट केस’’ की पूरी कहानी, जॉर्ज फर्नांडिश के निजी सचिव की जुबानी
वाराणसी। साल 1975 में देश में लगे आपातकाल के खिलाफ कई नेताओं ने लड़ाई लड़ी। इन्हीं लोगों में से एक थे जॉर्ज फर्नांडिस।
एक जुलाई 1975 को जॉर्ज फर्नांडिस ने सबसे पहले इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ विरोध का झंडा बुलंद किया था। जॉर्ज फर्नांडिस के जीवन का एक अहम अध्याय ‘‘बड़ौदा डायनामाइट केस’’ भी रहा था, जिसकी चर्चा आज भी होती है। इन्हीं किस्सों को साझा किया जॉर्ज फर्नांडिस के निजी सचिव रह चुके विजय नारायण सिंह ने।
क्या है डायनामाइड केस ?
पुल और रेल एवं सड़क मार्गों को विस्फोट कर उड़ाने के लिए डायनामाइट हासिल करने की साजिश रचने के आरोप में फर्नांडिस को 1976 में गिरफ्तार किया गया था। यह मामला सीबीआई को सौंपा गया था। आपातकाल के दौरान उनके साथ काम चुके विजय नारायण सिंह बताते हैं कि ‘’डायनामाइट खरीद कर सरकार को यह संदेश देने की योजना थी कि वे आपातकाल लगाए जाने के आगे नहीं झुकेंगे। किसी की जान लेने या विस्फोट करने का कोई इरादा नहीं था।‘’ देश में आपातकाल की घोषणा किए जाने पर फर्नांडिस भूमिगत हो गए और उन्होंने आपातकाल लगाए जाने के खिलाफ प्रतिरोध करने और आपराधिक ताकत का प्रदर्शन कर सरकार को डराने का फैसला किया। फर्नांडिस को इस साजिश का सरगना के तौर पर दिखाया गया था और दिल्ली की एक अदालत में सीबीआई द्वारा दाखिल आरोपपत्र में उन्हें आरोपी नंबर एक बनाया गया था। आरोपपत्र में कुल 25 आरोपियों को नामजद किया गया था। सीबीआई की जांच के संबंध में विजय नारायण सिंह बताते हैं कि दिल्ली में सीबीआई हेडक्वार्टर में उन लोगों से सात दिनों तक दिन रात पूछताछ चलती रही। एक अधिकारी जाता तो दूसरा चला आता। तरह-तरह के सवालों का सामना करना पड़ा। लेकिन हमारे इरादे अटल थे। इसके बाद हमें जेल भेज दिया गया।
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