वंदे मातरम: 146 वर्ष पहले हुई थी इस महान गीत की रचना, स्वाधीनता संग्राम के आंदोलन में काफी महत्वपूर्ण रहा स्थान, जानें यादगार किस्से और अनसुने फैक्ट्स

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आज से करीब 146 वर्ष पहले 20 दिसंबर को वंदे मातरम की रचना हुई थी. इस महान गीत को देश प्रेम के इतिहास में सबसे ज्यादा लोकप्रियता और इज्जत मिली. आज हम आपको इस गीत से जुड़े कुछ यादगार किस्से और अनसुने फैक्ट्स के बारे में बताएंगे जिसे आपने शायद ही कहीं सुने व पढ़ें होंगे. अधिकतर लोगों के बीच राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत को लकर कन्फ्यूजन रहता है. तो बता दें कि वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा हासिल है.

वंदे मातरम गीत को प्रसिद्ध बंगाली कवि एवं लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने रचा था. उन्होंने इस गीत की रचना 20 दिसंबर, 1876 को की थी, जो बाद में भारत के स्वाधीनता संग्राम के आंदोलन का ओजस्वी नारा भी बना और क्रांतिकारियों की आत्मा से उठने वाला देशगान भी.

 

Bankim Chandra Chattopadhyay Vande Matram

 

26 जून, 1838 को जन्मे बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम गीत की रचना मूलतः संस्कृत में की थी, जिसमें भारत माता को देवी दुर्गा के रूप में निरूपित किया गया था. 13 बेहतरीन और यादगार उपन्यासों के लेखक और पत्रकार के रूप में चर्चित रहे बंकिमचंद्र ने वंदे मातरम की रचना अपने उपन्यास आनंदमठ के एक अंश के तौर पर नहीं की थी. वर्ष 1870 के दशक में इस गीत की रचना के बाद वर्ष 1882 में जब बंकिमचंद्र ने अपना उपन्यास आनंदमठ तैयार किया, तब इस गीत को भी उसमें शामिल किया.

 

Bankim Chandra Chattopadhyay Vande Matram

 

8 अप्रैल, 1894 को बंकिमचंद्र के निधन के बाद वर्ष 1896 में सबसे पहले गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर ने वंदे मातरम को गाया था. टैगोर के इस गीत को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक राजनीतिक सम्मेलन में जब गाया तो यह देखते ही देखते आंदोलनकारियों के बीच लोकप्रिय होता चला गया. वर्ष 1905 के बंगाल विभाजन से जुड़े राष्ट्रीय आंदोलन में यह गीत मार्चिंग गीत के तौर पर प्रसिद्ध हुआ.

 

Bankim Chandra Chattopadhyay Vande Matram

 

वंदे मातरम गीत की प्रसिद्धि इतनी बढ़ी कि ब्रिटिश राज में वंदे मातरम गीत और आनंदमठ उपन्यास को प्रतिबंधित कर दिया गया. इस प्रतिबंध के खिलाफ लगातार ब्रिटिश हुकूमत का विरोध किया गया और इस विरोध में वंदे मातरम तराना ही गूंजा करता था. ब्रिटिश राज में उन जेलों से यह गीत समवेत सुरों में गूंजता था, जहां क्रांतिकारियों को ठूंसा या कैद कर दिया जाता था. भारत को जब ब्रिटिश सत्ता से आज़ादी मिली तब इस गीत और उपन्यास पर लगे प्रतिबंध को हटाया जा सका.

 

Bankim Chandra Chattopadhyay Vande Matram

 

राष्ट्रवादी चिंतक और दार्शनिक श्री अरविंदो ने वंदे मातरम गीत को बंगाल का राष्ट्रीय गान बनाए जाने की पुरज़ोर वकालत की थी. अरविंदो ने ही इस गीत की सार्वभौमिकता और व्यापकता को देखते हुए इसे अंग्रेज़ी में अनुवाद भी किया था, जिसे देश विदेश में काफी लोकप्रियता भी मिली थी. मदनलाल ढींगरा, प्रफल्ल चाकी, खुदीराम बोस, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह और सूर्यसेन ही नहीं, करोड़ों क्रांतिकारियों के जीवन और बलिदान में यह गीत शामिल रहा. नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नेशनल आर्मी के गीत के तौर पर वंदे मातरम को ही चुना था.

 

Bankim Chandra Chattopadhyay Vande Matram

 

 

वंदे मातरम को राष्ट्रगीत बनाने पर जहां जिन्ना ने ऐतराज़ जताया था तो महात्मा गांधी की इच्छा से जवाहर लाल नेहरू ने पहले दो अंतरों को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने की पैरवी की थी. एक रोचक फैक्ट यह है कि भीकाजी कामा ने वर्ष 1907 में भारत को जो पहला राष्ट्रीय ध्वज बनाया था, उसमें वंदे मातरम को एकदम बीचों बीच लिखा गया था.

 

Bankim Chandra Chattopadhyay Vande Matram

 

वंदे मातरम के पहले दो अंतरों को अक्टूबर, 1937 में राष्ट्रीय कांग्रेस की वर्किंग कमेटी ने राष्ट्रगीत के तौर पर कबूल किया था. आज़ादी के बाद जब संविधान निर्माण हुआ तब 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगीत के तौर पर वंदे मातरम के अक्षरों पर मुहर लगी.

 

Bankim Chandra Chattopadhyay Vande Matram

 

देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने तब कहा था कि राष्ट्र गीत को राष्ट्रगान जन-गण-मन के बराबर ही तवज्जो और सम्मान मिलना चाहिए.

 

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