मात्र 40 मीटर की चौड़ाई में सिमटी अयोध्या की सरयू नदी

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22 जनवरी को आयोजित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के लिये अयोध्या को हर तरीके से तैयार किया जा रहा है. सभी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने का काम किया जा रहा है, लेकिन यहां बहने वाली सरयू नदी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. समारोह की वजह से नदी के तट पर भले ही साफ-सफाई कराई जा रही है पर नगर पालिका ने लम्बे समय से इसकी स्वच्छता के लिए कोई ठोस कदम नही उठाया है. नगर में सीवर लाइन की योजना भी लम्बे समय से ठंडे बस्ते मे ही पड़ी है. वहीं लोगों का कहना है कि नदियों के लिए चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान यहां बेअसर ही साबित हो रहे हैं.

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हर रोज 20 नालों को सरयू नदी में होता है डिस्चार्ज

अयोध्या में सरयू नदी के तट पर 3 लाख दिये जलाकर इस बार वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया गया है. साथ ही यह नदी प्रदूषण में भी आये दिन नये रिकार्ड बना रही है. नदी में हर रोज़ क़रीब 20 छोटे-बड़े नाले को डिस्चार्ज किया जाता है, जिससे नदी की गुणवत्ता लगातार कम हो रही है. शहर के सभी बड़े सीवर योजनाओं का काम अधूरा या फिर शुरु ही नहीं हुआ है.
बता दें कि हिमालय के मानसरोवर से निकल कर सरयू नदी बिहार के सारण जिले में गंगा में जाकर मिल जाती है. पहले के समय में सरयू नदी 1.5 किलोमीटर चौडी हुआ करती थी वहीं अब यह 30-40 मीटर में सिमट कर रह गयी है. इसका एक प्रमुख कारण नेपाल में बन रहा पंचेश्वर डैम भी है.

नदी में बहा रहे कारखानों के अपशिष्ट

जब सरयू अयोध्या से गंगा की ओर आती है तब चावल के मिलों, पेट्रोलियम कार्यशालाओं, रेलवे कार्यशालाओं, डेयरी, लॉन्ड्री और अनाज बाजारों के अपशिष्ट इसमें बहा दिये जाते हैं. वहीं अस्पतालों और पैथोलॉजिकल प्रयोगशालाओं से खतरनाक अपशिष्ट भी नदी में छोड़े जाते हैं.

5100 एमपीएन/100 मिलीलीटर तक मल की मात्रा

सरयू का जल स्तर गिरने से इसकी सहायक नदियों में प्रवाह भी कम हो रहा है और क्षेत्र में कृषि पर असर पड़ रहा है. 2012 की समाचार रिपोर्टों के अनुसार नदी के आसपास के क्षेत्रों में पानी का स्तर लगातार गिर रहा है. वहीं हजारों हैंडपंप सूख गए हैं.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 2016 की रिपोर्ट से पता चलता है कि नदी में 3,900 से 5,100 सबसे संभावित संख्या या एमपीएन/100 मिलीलीटर की सीमा में मल कोलीफॉर्म है, जो 2500 एमपीएन/100 मिलीलीटर की मानक मात्रा से अधिक है.
सीपीसीबी 2016 डेटा के अनुसार अयोध्या के मुख्य घाट पर पानी की गुणवत्ता का अधिकतम बीओडी 4 मिलीग्राम/लीटर दिखाता है.
इस नदी पर तत्काल प्रभाव से ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इसकी सफाई से गंगा के स्वास्थ्य में सुधार में भी योगदान मिलेगा. अगर सरकार गंगा को साफ करना चाहती है तो सरयू जैसी सहायक नदियों के प्रदूषण स्तर का भी ध्यान रखना होगा.

भगवान शिव ने दिया था श्राप

रामायण में भगवान राम का सरयू नदी में जल समाधि लेने का उल्लेख है. प्रभु राम के जलसमाधि लेने के कारण भगवान शिव सरयु नदी से क्रोधित हो गए थे. उन्होंने सरयू नदी को श्राप दिया कि उसका जल मंदिर में चढ़ाने के लिए इस्तेमाल नहीं होगा और किसी भी तरह के पूजा-पाठ में प्रयोग नहीं किया जाएगा.
भोलेनाथ से श्राप मिलने के बाद सरयू नदी ने प्रभु के समक्ष क्षमा-याचना की. सरयू ने भोलेनाथ से कहा प्रभु यह तो पहले से निर्धारित था. इसमें उसका कोई दोष नहीं हैं. माता सरयू के विनती करने पर भगवान भोलेनाथ ने कहा कि उनके द्वारा दिया गया श्राप वापस नहीं हो सकता है, लेकिन इतना हो सकता है कि तुम्हारे जल में स्नान करने से लोगों के पाप धुल जाएंगे.
मौजूदा समय में भी महादेव का श्राप सरयू नदी पर लागू है. कहीं भी यज्ञ होता है, तो उसके लिए सात नदियों का जल मंगवाया जाता है. लेकिन इसमें सरयू नदी का जल शामिल नहीं होता है.

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