नर्मदा में विसर्जित होंगी गांधी-कस्तूरबा की धरोहर!

0

राजघाट का जिक्र आते ही नई दिल्ली की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि की तस्वीर आंखों के सामने उभर आती है, मगर देश में एक और राजघाट है, जो मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा नदी के तट पर है। यहां बनाई गई समाधि में महात्मा गांधी ही नहीं, कस्तूरबा गांधी और उनके सचिव रहे महादेव देसाई की देह-राख रखी हुई है।

यह समाधि धरोहर है, मगर इस धरोहर पर विकास का कहर बरपने वाला है। सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाकर गुजरात सरकार द्वारा सारे गेट बंद किए जाने पर इस समाधि का डूबना तय है।

चिंतक, विचारक और लेखक ध्रुव शुक्ल कहते हैं, “देश में सारी सरकारें और राजनीतिक दलों पर एक पागलपन छाया हुआ है, वह है विकास! इस मामले में सभी दल एक हैं। सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ने से नर्मदा नदी का पानी समाधि तक आएगा, सिर्फ यह समाधि ही नहीं डूबेगी, बल्कि गांधीवादियों का तीर्थ और बापू की कल्पना गांव भी डूब जाएंगे।”

शुक्ल आगे कहते हैं कि इस समय देश में दोहरा, तिहरा चिंतन चल रहा है। राजनेता सिर्फ विकास की बात करते हैं, मगर वे कितना विनाश कर रहे हैं, इसकी कोई चर्चा तक करने को तैयार नहीं है। इस दौर में मीडिया को भी नेताओं के कपड़े, उनके जूते, उनका खानपान, फिल्म स्टार की कहानियों के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता या यूं कहें कि देखना ही नहीं चाहते।

संभवत: देश में बड़वानी में नर्मदा नदी के तट पर स्थित एकलौता ऐसा स्थान होगा, जहां तीन महान लोगों की एक साथ समाधि है। यहां गांधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी तीनों महान विभूतियों की देह-राख जनवरी 1965 में लाए थे और समाधि 12 फरवरी, 1965 को बनकर तैयार हुई थी। इस स्थल को राजघाट नाम दिया गया। त्रिवेदी ने इस स्थान को गांधीवादियों का तीर्थ स्थल बनाने का सपना संजोया था।

Also read : अखिलेश के एक और ड्रीम प्रोजेक्ट पर योगी सरकार का चलेगा हथौड़ा !

समाधि स्थल पर एक संगमरमर का शिलालेख लगा है, जिसमें 6 अक्टूबर, 1921 में महात्मा गांधी के ‘यंग इंडिया’ में छपे लेख का अंश दर्ज है। इसमें लिखा है, “हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति और हमारा स्वराज अपनी जरूरतें दिनोंदिन बढ़ाते रहने पर, भोगमय जीवन पर, निर्भर नहीं करते, परंतु अपनी जरूरतों को नियंत्रित रखने पर, त्यागमय जीवन पर, निर्भर करते हैं।”

गुजरात में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाकर 138 मीटर की गई है और उसके सारे गेट 31 जुलाई तक पुनर्वास के बाद बंद होना है, इसके चलते मध्यप्रदेश में नर्मदा घाटी के 192 गांव और एक नगर पानी में डूब जाएंगे। अभी पुर्नवास हुआ नहीं है।

राजघाट वही स्थान है, जहां से नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर कई दशक से आंदोलन करती आ रही हैं। उनकी जवानी भी इसी आंदोलन में निकल गई, फिर भी उन्होंने ऐलान कर रखा है कि राजघाट से पहले उनकी जल समाधि होगी।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सुनीलम् कहते हैं कि राजघाट लोगों का प्रेरणास्रोत रहा है, यहां तमाम गांधीवादियों का कई-कई दिन तक डेरा रहा, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यहां आए। इतना ही नहीं, नर्मदा घाटी की सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता में से एक है। पुरातत्व विभाग सभ्यता की खोज के लिए खुदाई करते हैं और वर्तमान में सभ्यता को डुबोने की तैयारी चल रही है।

वे आगे कहते हैं कि सरदार सरोवर बांध का जलस्तर बढ़ने से सिर्फ गांव, लाखों पेड़ ही नहीं डूबेंगे, बल्कि 40 हजार परिवार बेघर होंगे और लाखों की तादाद में मवेशियों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। मध्यप्रदेश सरकार गुजरात के इतने दवाब में है कि वह कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।

नर्मदा के पानी में राजघाट के डूबने की संभावनाओं को लेकर बड़वानी के जिलाधिकारी तेजस्वी नायक से आईएएनएस ने सवाल किया तो उनका कहना था, कि जो भी स्थान डूब में आ रहे हैं, उनका विस्थापन नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा। प्राधिकरण ने रोडमैप बनाया है, उसी के तहत कार्य चल रहा है।

नर्मदा नदी को राज्य में जीवनदायनी माना जाता है, इसे प्रवाहमान व प्रदूषण मुक्त रखने के लिए राज्य सरकार अभियान चला रही है, रविवार को छह करोड़ 60 लाख पौधे रोपने का दावा किया गया है। वहीं दूसरी ओर सभ्यता, संस्कृति, प्रकृति पर होने वाले आघात पर सब मौन हैं।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More